“पापा, मुझे मत छोड़िए!”

“मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा l मैं तुम्हें थामे हुए हूँ l मैं वादा करता हूँ l”

मैं छोटा था और मुझे जल से डर लगता था; किन्तु मेरे पिता चाहते थे कि मैं तैरना सीख जाऊं l वे जानबूझकर मुझे तरणताल के गहरे हिस्से में ले जाते थे, जहां पर वे ही मेरा एकमात्र सहारा होते l तब वे मुझे तनाव मुक्त होना और तैरना सिखाते थे l

यह केवल तैरना सीखना नहीं था; यह भरोसा रखने की सीख थी l मेरे पिता मुझसे प्रेम करते थे, यह मैं जानता था और वे जानबूझकर मुझे हानि कभी भी नहीं पहुँचाएंगे, किन्तु मैं फिर भी डरता था l मैं कस कर उनके गले से लिपट जाता था जब तक कि मुझे उनकी ओर से सुरक्षा का निश्चय नहीं मिलता था l अंततः उनके धीरज और कोमलता के कारण मैं तैरना सीख गया l किन्तु पहले मुझे उनपर भरोसा करना ज़रूरी था l

जब मैं कठिनाई में डूबा हुआ महसूस करता हूँ, मैं उन बीते हुए पलों को स्मरण करता हूँ l वे मुझे परमेश्वर का अपने लोगों के लिए आश्वासन याद दिलाते हैं : “तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं . . . तुम्हें उठाए रहूँगा l मैं ने तुम्हें बनाया और मैं तुम्हें उठाए रहूँगा” (यशायाह 46:4) l

शायद हम हमेशा परमेश्वर की भुजा को अपने नीचे महसूस नहीं करेंगे, किन्तु प्रभु की प्रतिज्ञा है कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा (इब्रानियों 13:5) l जब हम उसकी देखभाल और प्रतिज्ञाओं में विश्राम करते हैं, वह हमें उसकी विश्वासयोग्यता में भरोसा करना सिखाता है l वह हमें हमारी चिंताओं से उबारता है कि हम उसमें नयी शांति पा सकें l