एक युवा माँ होकर, मैंने अपनी बेटी के पहले साल का सनद(document) रखा l हर महीने, मैंने उसमें बदलाव और विकास देखने के लिए उसके फोटो खींचे l एक पसंदीदा फोटो में वह स्थानीय किसान से ख़रीदे गए कद्दू में जो खोखला किया गया था बैठी खिलखिलाती दिखाई दे रही थी l मेरा जिगर का टुकड़ा उस बड़े कद्दू में बैठी हुयी थी l वह कद्दू बाद में सूख कर ख़त्म हो गया, किन्तु मेरी बेटी निरंतर उन्नति करती और बढ़ती गयी l

जिस प्रकार पौलुस यीशु कौन है की सच्चाई जानने का वर्णन करता है, उससे मैं उस फोटो को याद करती हूँ l वह यीशु का हमारे हृदय में वास करने को मिट्टी के बरतन में रखे धन से तुलना करता है l हमारे लिए यीशु के कार्य का स्मरण “चारों ओर से क्लेश . . . भोगने” (2 कुरिन्थियों 4:8) की स्थिति के बावजूद हमें संघर्षों में धीरज धरने में साहस और सामर्थ्य देता है l हमारे जीवनों में परमेश्वर की सामर्थ्य के कारण, जब हम “गिराए . . . जाते हैं, पर नष्ट नहीं होते हैं,” हम यीशु का जीवन प्रगट करते हैं (पद.9) l

उस कद्दू की तरह जो नष्ट हो गया, हम अपने संघर्षों में टूट-फूट महसूस करेंगे l किन्तु उन चुनौतियों के बावजूद यीशु में हमारा आनंद बढ़ता जाएगा l हमारा उसका जानना अर्थात् हमारे जीवनों में उसकी सामर्थ्य का कार्य वह धन है जो हमारे दुर्बल मिट्टी के शरीरों में है l हम कठिनाई में उन्नति कर सकते हैं क्योंकि उसकी सामर्थ्य हमारे अन्दर कार्य करती है l