
ठीक वहीं हमारे साथ
उसका पूरा ध्यान सबसे ऊपर वाली शेल्फ पर था, जहाँ स्पैगेटी की चटनी का शीशे का जार रखा हुआ था। मैं भी परचून की उस पंक्ति में उसी शेल्फ को देखते हुए उसके साथ ही खड़ा हुआ निर्णय लेने का प्रयास कर रहा था। परन्तु मेरी उपस्थिति से बेखबर, वह अपनी दशा में खोई हुई थी। मुझे उस ऊंची शेल्फ से कोई समस्या नहीं थी क्योंकि मैं बहुत लम्बा व्यक्ति हूँ। परन्तु दूसरी ओर वह लम्बी नहीं थी, बिल्कुल भी नहीं। मैं बोल पड़ा और सहायता करने के लिए कहा। चौंकते हुए उसने कहा, मैंने तो आपको वहाँ खड़े हुए बिलकुल भी नहीं देखा। हाँ, कृपया मेरी सहायता कर दीजिए।”
शिष्यों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी-भूखी भीड़, बियाबान स्थान और समय हाथों से फिसला जा रहा था-तो उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “यह सुनसान जगह है और देर हो रही है; लोगों को विदा किया जाए कि वे बस्तियों में जाकर अपने लिये भोजन मोल लें।” (मत्ती 14:15) । जब यीशु के द्वारा उन्हें लोगों का ध्यान रखने की चुनौती दी गई, तो उन्होंने उत्तर दिया, “यहाँ हमारे पास... ” (पद.17) l उनका पूरा ध्यान तो बस अपनी घटी की ओर था। परन्तु ठीक वहीं उनके साथ यीशु खड़ा था, न केवल रोटी को बढ़ाने वाला, बल्कि स्वयं जीवन की रोटी।
जब हम अपनी चुनौतियों में फंस जाते और अपने सीमित दृष्टिकोण के द्वारा उनका समाधान निकालने का प्रयास कर रहे होते हैं, तो हम पुनर्जीवित मसीह की स्थायी उपस्थिति को भूल जाते हैं। बियाबान पहाड़ियों से परचून स्टोर की पंक्तियों तक और हर किसी स्थान पर, वह इम्मानुएल है-परमेश्वर ठीक वहीँ हमारे साथ, कठिनाई में सर्वदा उपस्थित सहायता।

पीड़ा में एक उद्देश्य?
जब सिउ फेन को पता चला कि उनके गुर्दे खराब हो गए हैं और अब उन्हें पूरे जीवन भर डायलिसिस करवाने की आवश्यकता पड़ेगी, तो वह हार मान लेना चाहती थी। सेवानिवृत्त और अकेली, यीशु पर लम्बे समय से विश्वासी, उस महिला को जीने का कोई उद्देश्य दिखाई नहीं दिया। परन्तु मित्रों ने उन्हें डटे रहने और डायलिसिस करवाने और उसकी सहायता के लिए परमेश्वर पर भरोसा रखने के लिए कायल किया।
दो साल बाद, उसने अपने अनुभव के जैसा ही कुछ पाया, जब उनकी भेंट दुर्बल कर देने वाली बिमारी वाली कलीसिया की एक मित्र से हुई। वह महिला भी अकेली थी, कुछ लोग ही समझ सकते थे कि वह महिला कैसे समय से गुजर रही थी। परन्तु सिउ फेन उसकी शारीरिक और भावनात्मक पीड़ा को समझ सकती थी और उसके साथ व्यक्तिगत रूप से सम्बन्ध रख सकती थी। उसके अपने अनुभव ने उन्हें उस महिला के साथ-साथ चलने और उसे वह आराम देने के योग्य बनाया, जो उसे दूसरे लोग नहीं दे पाए थे। उसने कहा “अब मैं देख रही हूँ, कि परमेश्वर अभी भी मुझे कैसे इस्तेमाल कर सकता है।”
यह समझना कठिन हो सकता है कि हम दुःख क्यूँ उठाते हैं। परन्तु फिर भी परमेश्वर हमारी पीड़ाओं को अनपेक्षित रूप से इस्तेमाल कर सकता है। परीक्षाओं में जब हम आराम और प्यार के लिए उसकी ओर मुड़ते हैं, तो यह हमें दूसरों की सहायता करने के लिए भी सशक्त करता है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पौलुस ने अपनी पीड़ाओं में उद्देश्य को देखना सीख लिया था: इसने उसे परमेश्वर के आराम को ग्रहण करने का अवसर प्रदान किया, जिसे फिर वह दूसरों को आशीष देने के लिए इस्तेमाल कर सका (2 कुरिन्थियों 1:3-5) । हमें अपनी पीड़ा और दुःख से बचने के लिए नहीं कहा गया है, परन्तु हम ढाढ़स के साथ परमेश्वर की योग्यता में इसे भले के लिए प्रयोग कर सकते हैं।

खज़ाने की खोज
गड़ा हुआ खज़ाना। यह एक बच्चे की कहानी की किताब जैसा लगता है। परन्तु एक विलक्ष्ण करोड़पति फॉरेस्ट फेन्न रॉकी माउंटेन्स में कहीं 2 करोड़ मूल्य के जवाहरात और सोने के सन्दूक के छोड़े होने का दावा करते हैं। अनेक लोग इसकी खोज में जा चुके हैं। वास्तव में चार लोगों ने तो इस छिपे हुए धन को खोजने में अपनी जान तक गवाँ दी है।
नीतिवचन का लेखक हमें ठहरने और विचार करने के लिए एक तर्क प्रदान करता है: क्या किसी भी प्रकार का खज़ाना ऐसी खोज के योग्य है? नीतिवचन 4 में एक पिता अपने पुत्र को किस प्रकार उचित रूप से रहने के लिए लिख रहा है, वह सलाह दे रहे है कि किसी भी कीमत पर बुद्धि को खोजना उचित है (पद 7) । वह कहता है कि बुद्धि सम्पूर्ण जीवन भर हमारा मार्गदर्शन करेगी, हमें लड़खड़ाने से बचाएगी और हमें सम्मान का मुकुट पहनाएगी (पद 8-12) । हज़ारों वर्ष पश्चात, याकूब, यीशु का एक शिष्य भी बुद्धि के महत्व पर बल देता है। वह लिखता है “जो ज्ञान ऊपर से आता है वह पहले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है।” जब हम बुद्धि को खोजते हैं, तब हम अपने जीवन में सब प्रकार की भली वस्तुओं को भरपूरी से प्राप्त करते हैं।
बुद्धि की खोज करना अंततः, सब प्रकार की बुद्धि और समझ के स्रोत, परमेश्वर की खोज करना है । और जो बुद्धि ऊपर से आती है, उस गड़े हुए खज़ाने से कहीं अधिक मूल्यवान है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

कोई तुलना नहीं
मेरी मित्र सू की टिप्पणी-उसके पति के साथ दोपहर के भोजन पर अनौपचारिक रूप से की गई-पर मैं जोर से हंसा और इसपर मैंने विचार भी किया। सोशल मीडिया एक उत्तम वस्तु भी हो सकती है, जो हमें वर्षों और मीलों दूर बैठे मित्रों के साथ सम्पर्क में रहने और उनके लिए प्रार्थना करने में सहायता कर सकती है। परन्तु यदि हम सावधान नहीं हैं, तो यह जीवन का एक अवास्तविक दृष्टिकोण भी बना सकती है। जब हम “बढ़िया बातों” को और बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया हुआ देखते हैं, तो हम दूसरों के जीवन को बिना किसी कठिनाई वाला होने का विचार करने की ओर पथभ्रष्ट हो सकते हैं, और हम इस बात पर आश्चर्य करने लगते हैं कि हम ने क्या गलत किया है।
दूसरों के साथ अपनी तुलना करना नाखुश रहने का सबसे बढ़िया नुस्खा है। जब शिष्यों ने आपस में एक-दूसरे से तुलना की (देखें लूका 9:46; 22:24), यीशु ने इसे उसी समय समाप्त करवा दिया। अपने पुनरुत्थान के ठीक बाद यीशु ने पतरस को बताया कि वह अपने विश्वास के लिए किस प्रकार दुःख उठाएगा। तब पतरस यूहन्ना की ओर मुड़ा और पूछा, “प्रभु इसका क्या हाल होगा?” यीशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं चाहूँ कि वह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे इससे क्या? तू मेरे पीछे हो ले।” (यूहन्ना 21:21-22) ।
यीशु ने पतरस का ध्यान बेकार की तुलना की सबसे अच्छी दवा की ओर किया। जब हमारे मन परमेश्वर और उसने हमारे लिए क्या किया की ओर केन्द्रित होते हैं, तो हमारा अपने ऊपर से ध्यान हट जाता है और हम उसके पीछे चलने के लिए ललायित रहते हैं। संसार की प्रतिस्पर्धा के दबाव और तनाव के स्थान पर वह हमें अपनी प्रेममय उपस्थिति और शान्ति देता है। उसकी तुलना किसी के साथ नहीं की जा सकती।