हमारा परिवार, हम सब पांच लोग, क्रिसमस की छुट्टियों में रोम घूमने गए l मुझे याद नहीं कब मैंने कभी भी इससे अधिक लोगों को एक स्थान पर ठसाठस देखा है l जब हम भीड़ के बीच से मार्ग बनाते हुए निकलकर वैटिकन और कोलिज़ीयम जैसे दर्शनीय स्थलों को देखने गए, मैंने बार-बार अपने बच्चों से “स्थितिपरक अभिज्ञता”-ध्यान दें आप कहाँ हैं, कौन आपके आसपास है, और क्या हो रहा है-के अभ्यास पर बल दिया l हम ऐसे संसार में रहते हैं, देश और विदेश, जो सुरक्षित स्थान नहीं है l और मोबाइल फ़ोन और इअर बड्स(हेड फोन) का उपयोग करते हुए, बच्चे (और बड़े इस सम्बन्ध में) हमेशा अपने आसपड़ोस की जानकारी का अभ्यास नहीं करते हैं l

स्थितिपरक अभिज्ञता l फिलिप्पियों 1:9-11 में वर्णित फिलिप्पी के विश्वासियों के लिए यह पौलुस की प्रार्थना का एक पहलु है l उनकी परिस्थितियों के विषय कौन/क्या/कहाँ से सम्बंधित उसकी इच्छा उनके लिए सर्वदा-बढ़ता हुआ विवेक था l किन्तु व्यक्तिगत सुरक्षा के कुछ लक्ष्य की अपेक्षा, पौलुस एक श्रेष्ठ उद्देश्य के साथ प्रार्थना किया कि परमेश्वर के पवित्र लोग मसीह के प्रेम के अच्छे भंडारी बन सकें जो उन्होंने प्राप्त किया है, “सर्वोत्तम” को पहचाने, “पवित्र एवं निर्दोष” जीवन जीएँ, और भले गुणों से भर जाएँ जो केवल यीशु उत्पन्न कर सकता है l इस प्रकार का जीवन इस जागरूकता से निकलता है कि हमारे जीवनों में परमेश्वर ही वो है, और उसपर हमारा बढ़ता हुआ भरोसा ही है जिससे उसे प्रसन्नता मिलती है l और प्रत्येक और सभी परिस्थितियाँ ही हैं जहां हम उसके महान प्रेम की अधिकता में से साझा कर सकते हैं l