अभी हाल ही में मेरी नानी ने मुझे ढेर सारी पुरानी तस्वीरें भेजीं, और जब मैं उनको देख रही थी, एक ने मेरा ध्यान खींच लिया l उसमें, मैं दो वर्ष की हूँ, और मैं चूल्हे के पास बैठी हुयी हूँ l दूसरी ओर, मेरे पिता मेरी माँ के कंधे पर हाथ रखे हुए हैं l दोनों प्रेम और आनंद भाव से मुझे निहार रहे हैं l

मैंने इस तस्वीर को अपने कपड़े की आलमारी पर लगा दिया, जहाँ मैं इसे प्रतिदिन सुबह देखती हूँ l यह उनका मुझसे प्रेम करने की अच्छी ताकीद है l यद्यपि, सच्चाई यह है, कि अच्छे माता-पिता का प्रेम भी अधूरा है l मैंने इस तस्वीर को सुरक्षित किया क्योंकि यह मुझे याद दिलाता है कि यद्यपि मानव प्रेम कभी-कभी चूक जाता है, परमेश्वर का प्रेम कभी नहीं चूकता है – और वचन अनुसार, परमेश्वर मुझे उसी तरह निहार रहा है जैसे मेरे माता-पिता इस तस्वीर में मुझे निहार रहे हैं l

नबी सपन्याह इस प्रेम का वर्णन इस प्रकार करता है जो मुझे चकित करता है l वह वर्णन करता है कि परमेश्वर गाता हुआ अपने लोगों के लिए मगन होता है l परमेश्वर के लोग इस प्रेम को अर्जित नहीं किये थे l वे अवज्ञाकारी थे या परस्पर करुणा से व्यवहार नहीं किये थे l किन्तु सपन्याह ने प्रतिज्ञा दी कि अंत में, परमेश्वर का प्रेम उनकी हार से अधिक महत्वपूर्ण होगा l परमेश्वर उनके दंड को क्षमा करेगा (सपन्याह 3:15), और वह उनके लिए आनंदित होगा (पद.17) l वह अपने लोगों को अपनी बाहों में इकठ्ठा करेगा, उनको घर लौटा लाएगा, और उनको पुनर्स्थापित करेगा l

प्रति भोर विचार करने योग्य यही प्रेम है l