मेरा एक बेटा ब्रायन, हाई स्कूल बास्केटबॉल कोच है l एक साल, जब उसकी टीम वाशिंगटन स्टेट बास्केटबॉल टूर्नामेंट के दौरान बॉल को आगे की तरफ ले जाने की कोशिश कर थी, शहर के नेक-नियत लोगों ने पूछा, “क्या तुम लोग पूरे वर्ष जीतोगे?” दोनों ओर के खेलाड़ी और कोच तनावग्रस्त हो गए, इसलिए ब्रायन ने एक आदर्श-वाक्य(motto) अपना लिया : “आनंद के साथ खेलें!”

मैंने इफिसुस के प्राचीनों से कहे गए पौलुस के शब्दों पर विचार किया : “कि मैं अपनी दौड़ को [प्रेम के साथ] पूरी करूँ” (प्रेरितों 20:24) उसका लक्ष्य उस सेवा कार्य को पूरी करना था जिसे यीशु ने उसे दिया था l मैंने इन शब्दों को अपना आदर्श वाक्य और अपनी प्रार्थना बना  ली है : “मैं भी अपनी दौड़ को आनंद के साथ पूरी कर सकूँ l” या जिस प्रकार ब्रायन कहता है, “मैं भी आनंद के साथ खेल सकूँ!” और बहरहाल, ब्रायन की टीम ने उस वर्ष स्टेट चैंपियनशिप जीत ली l

हममें से हर एक के पास चिड़चिड़ा होने के लिए सारे अच्छे कारण हैं : संसार की खबरें, दैनिक तनाव, स्वास्थ्य समस्याएँ l तिस पर भी, यदि हम उससे मांगते हैं, परमेश्वर हमें ऐसा आनंद दे सकता है जो इन परिस्थितियों से आगे जाती है l हम उसे पा सकते हैं जिसे यीशु ने कहा, “मेरा आनंद” (यूहन्ना 15:11) l

आनंद यीशु की आत्मा का फल है (गलातियों 5:22) l इसलिए हम प्रति भोर याद से उससे सहायता मांगे : “मैं आनंद से खेल सकूँ!” लेखक रिचर्ड फोस्टर ने कहा, “प्रार्थना करना बदलना है l यह महान अनुग्रह है l परमेश्वर कितना भला है जो एक मार्ग बनाता है जहाँ आनंद हमारे जीवन पर अधिकार कर लेता है l