1497 के फरवरी में, गिरोलामा सेवोनारोला नाम के एक भिक्षु/सन्यासी ने एक आग आरंभ की l इस बात को आगे बढ़ाते हुए, वह और उसके शिष्यों ने ऐसी वस्तुएं इकठ्ठा किये जो शायद लोगों को पाप करने की ओर आकर्षित कर सकते हैं या जिससे उनके धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करने में लापरवाही हो सकती थी – जिसमें कलाकृतियाँ, सौन्दर्य प्रसाधन, वाद्ययंत्र, और वस्त्र सम्मिलित थे l नियुक्त दिन में, निस्सारता सम्बंधित हज़ारों सामग्रियां इटली के फ्लोरेंस शहर में एक सार्वजनिक चौराहे में इकट्ठी करके उनको आग के हवाले कर दी गयी l इस घटना को निस्सारता(Vanity) का अलाव/उत्त्सवाग्नि संबोधित किया गया l

संभवतः सेवोनारोला ने पहाड़ी उपदेश के चकित करनेवाले कुछ एक कथनों में अपने कठोर कार्यों के लिए प्रेरणा खोजी हो l “यदि तेरी दाहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर फेंक दे,” यीशु ने कहा, [और] “यदि तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाए, तो उस को काटकर फेंक दे” (मत्ती 5:29-30) l परन्तु यदि हम यीशु के शब्दों की शब्दशः व्याख्या करते हैं, हम उपदेश के मुख्य बिंदु से चूक जाते हैं l यह पूरा उपदेश सतह से गहरे में जाने के विषय है, बाहरी विकर्षण और परीक्षाओं पर अपने व्यवहार को दोष देने की अपेक्षा अपने हृदयों की दशा पर केन्द्रित होना l

निस्सारता(Vanity) का अलाव/उत्त्सवाग्नि ने वस्तुओं और कलाकृतियों को नष्ट करने का एक बड़ा दिखावा था, परन्तु यह असम्भाव्य है कि इस प्रक्रिया में उसमें शामिल लोगों के हृदय बदले हों l केवल परमेश्वर ही किसी हृदय को बदल सकता है l इसीलिए भजनकार की प्रार्थना थी, “हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर” (भजन 51:10) l यह हमारा हृदय ही है जो महत्वपूर्ण है l