एक विश्वासी महिला के अंतिम संस्कार में उपस्थित होने के कारण मेरा हृदय भरा हुआ है l उसका जीवन असाधारण नहीं था l वह केवल अपने चर्च, पड़ोसी, और मित्रों के बीच में लोकप्रिय थी l परन्तु वह, उसके सात बच्चे, और 21 नाती-पोते यीशु से प्रेम करते थे l वह सरलता से हंसती थी, उदारतापूर्वक सेवा करती थी, और दूसरों के मन में लम्बे समय तक बस सकती थी l

सभोपदेशक कहता है, “भोज के घर जाने से शोक ही के घर जाना उत्तम है” (7:2) l “बुद्धिमान का मन शोक करनेवालों के घर की ओर लगा रहता है” क्योंकि हम वहाँ पर सबसे महत्वपूर्ण सबक सीखते हैं (7:4) l न्यू यॉर्क टाइम्स के स्तम्भ लेखक डेविड ब्रुक्स कहते हैं कि दो प्रकार के सद्गुण हैं : जो रिज्यूमे/आत्मकथा में अच्छे लगते हैं और दूसरा जो आप चाहेंगे कि आपके अंतिम संस्कार के समय आपके विषय कहे जाएँ l 

कभी-कभी ये मेल खाती हैं, यद्यपि अक्सर वे प्रतिस्पर्धा करती हुयी दिखाई पड़ती हैं l जब शंका हो, हमेशा अपनी अपनी प्रशस्ति/बड़ाई करनेवाले गुणों का चुनाव करें l

कफ़न में लिपटी महिला के पास कोई रिज्यूमे नहीं था, किन्तु उसके बच्चों ने गवाही दी कि “उन्होंने हमेशा नीतिवचन 31 का अभ्यास किया” और एक धर्मी स्त्री का जीवन जीया l उन्होंने उनको यीशु से प्रेम करने और दूसरों की देखभाल करने के लिए प्रेरित किया l जिस प्रकार पौलुस कहता है, “मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूँ” (1 कुरिन्थियों 11:1), इसलिए उपरोक्त पदों ने हमें अपनी माँ का अनुकरण करने के लिए चुनौती दी जैसे वह यीशु का अनुकरण करती थी l

आपके अंतिम संस्कार के समय क्या बोला जाएगा? आप क्या चाहेंगे कि बोली जाए? अपनी प्रशस्ति/बड़ाई के गुण विकसित करने में देर नहीं हुयी है l यीशु में विश्राम करें l उसका उद्धार हमें जो सबसे महत्वपूर्ण है के लिए जीने में स्वतंत्र करता है l