Month: जुलाई 2019

सेवाकालीन प्रशिक्षण

ब्राज़ील की एक कंपनी की एक प्रबंधक ने अपने ऑफिस के अभिरक्षकों से एक लिखित रिपोर्ट मांगी l प्रतिदिन वह जानना चाहती थी प्रत्येक कमरे को किसने साफ़ किया, कौन से कमरे छूट गए, और कर्मचारियों ने प्रत्येक कमरे में कितना समय लगाया l पहला “दैनिक रिपोर्ट” एक सप्ताह बाद आया, जो अधूरा था l

जब प्रबंधक ने इस पर ध्यान दिया, उन्होंने पाया कि अधिकतर कर्मचारी असाक्षर थे l वह उनको कार्य मुक्त कर सकती थी, परन्तु उन्होंने उनके लिए साक्षरता कक्षाएं आरंभ करवायीं l पांच महीनों के भीतर, सभी लोग बुनियादी स्तर पर पढ़ना सीख गए थे और उन्होंने अपना काम जारी रखा l

परमेश्वर अक्सर हमारे संघर्षों को उसके लिए काम करते रहने के लिए अवसर के रूप में उपयोग करता है l पतरस का जीवन अनुभवहीनता और गलतियों से चिन्हित था l पानी पर चलने की कोशिश करते समय उसका विश्वास डगमगा गया l यीशु को मंदिर का कर देना चाहिए या नहीं वह इसके विषय अनिश्चित था (मत्ती 17:24-27) l उसने क्रूसीकरण और पुनरुत्थान सम्बंधित मसीह की भविष्यवाणी का भी इनकार किया (16:21-23) l हर एक मामले के द्वारा यीशु ने पतरस को अपने विषय सिखाया वह कौन था – प्रतिज्ञात मसीह (पद.16) l पतरस ने सुना और सीखा जो उसे आरंभिक कलीसिया की स्थापना में जानना ज़रूरी था (पद.18) l

यदि आज आप किसी पराजय से हतोत्साहित हैं, तो याद रखें कि यीशु उसका उपयोग आपको सिखाने और अपनी सेवा में आगे ले जाने के लिए कर सकता है l वह पतरस की कमज़ोरियों के बावजूद उसके साथ कार्य करता रहा, और वह हमें भी अपने द्वितीय आगमन तक अपने राज्य को बनाने में लगातार उपयोग करता रहेगा l

चीजों को सम्पूर्ण बनाना

एक डाक्यूमेंट्री(दस्तावेज़ी फिल्म) लुक एंड सी : वेन्डेल बेरी का चित्र(Look & See: A Portrait of Wendell Berry), में रचयिता बेरी कहते हैं कि किस तरह तलाक हमारे संसार की स्थिति की व्याख्या करता है l हम एक दूसरे से,  हमारे इतिहास से, देश से, अलग किये जाते हैं l चीजें जिन्हें सम्पूर्ण रहना चाहिए था खंडित की जाती हैं l जब हमसे पुछा जाता है कि इस दुखद सच्चाई के विषय हमें क्या करना चाहिए, बेरी ने कहा, “हम सभी बातों को पुनः सम्पूर्ण नहीं बना सकते हैं l हम केवल दो चीजों को लेते हैं और उन्हें एक कर देते हैं l” हम दो खंडित चीजें को लेकर उन्हें एक बना देते हैं l

“धन्य हैं वे, जो मेल करानेवाले हैं,” यीशु ने हमसे कहा (मत्ती 5:9) l मेल कराने का अर्थ है शालोम लाना l और शालोम का सन्दर्भ संसार को सही करना है l एक धर्मवैज्ञानिक शालोम को इस प्रकार चित्रित करता है “विश्वव्यापी खुशहाली, सम्पूर्णता और सुख . . . l [यह] वैसा है जैसे चीजों को होना चाहिए l” शालोम खंडित को लेकर सम्पूर्ण बनाना है l यीशु के मार्गदर्शन अनुसार, हम भी चीजों को सही करने का प्रयत्न करें l वह हमें मेल करानेवाले, “पृथ्वी का नमक” और “जगत की ज्योति” बनने की चुनौती देता है (पद.13-14) l

संसार में मेल करानेवाले बनने के बहुत तरीके हैं, प्रतिदिन हम टूटेपन से संघर्ष करें न कि उसके आगे हार मान लें l परमेश्वर की सामर्थ्य में, हम किसी मित्रता को नहीं टूटने देने या संघर्ष कर रहे किसी पड़ोस को कमजोर न होने देने, या बेपरवाही और अकेलापन का चुनाव न करें l टूटे स्थानों को ढूंढें, भरोसा करते हुए कि परमेश्वर उनको पुनः सम्पूर्ण बनाने में हमें बुद्धि और कौशल देगा l

बस एक साँस

बॉबी की अचानक मृत्यु ने मुझे मृत्यु की कठोर सच्चाई और जीवन की अल्पता याद दिलायी l मेरे बचपन की सहेली केवल चौबीस वर्ष की थी जब बर्फीले सड़क पर एक दुखद दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी l एक बिगड़े परिवार में उसका पालन-पोषण हुआ, अभी हाल ही में वह उन्नति करती हुयी दिखाई दे रही थी l यीशु में एक नयी विश्वासिनी, उसका जीवन इतना जल्दी कैसे समाप्त हो सकता था?

कभी-कभी जीवन बहुत ही छोटा और दुःख भरा दिखाई देता है l भजन 39 में भजनकार दाऊद अपने दुःख पर विलाप करते हुए पुकारता है : “हे यहोवा, ऐसा कर कि मेरा अंत मुझे मालूम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिससे मैं जान लूँ कि मैं कैसा अनित्य हूँ! देख, तू ने मेरी आयु बालिश्त भर की रखी है, और मेरी अवस्था तेरी दृष्टि में कुछ है ही नहीं l सचमुच सब मनुष्य कैसे भी स्थिर क्यों न हों तौभी व्यर्थ ठहरे हैं” (पद.4-5) l जीवन छोटा है l यदि हम एक सौ वर्ष भी जीवित रहें, हमारा पृथ्वी पर का जीवन समस्त समय में मात्र एक बूंद है l

और फिर भी, दाऊद के साथ, हम कह सकते हैं, “मेरी आशा तो [प्रभु की] ओर लगी है” (पद. 7) l हम भरोसा कर सकते हैं कि हमारे जीवनों में सार्थकता है l यद्यपि हमारा शरीर क्षीण होता जाता है, विश्वासी होने के कारण हमें भरोसा है कि हमारा “भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है” – और एक दिन हम उसके साथ अनंत जीवन का आनंद उठाएंगे (2 कुरिन्थियों 4:16-5:1) l हमें यह ज्ञात है क्योंकि परमेश्वर ने “हमें बयाने में आत्मा . . . दिया है”! (5:5) l

शेखी मारना

वास्तविक होने का अर्थ क्या होता है? छोटे बच्चों की पुस्तक द वेलवेटीन रैबिट(The Velveteen Rabbit) में इस बड़े प्रश्न का उत्तर दिया गया है l यह नर्सरी(शिशु सदन) में खिलौनों और वेलवेटीन खरगोश की कहानी है जिसमें वह वास्तविक बनने के लिए एक बच्चे को उसे प्यार करने की अनुमति देता है l एक और खिलौना वृद्ध और बुद्धिमान स्किन घोड़ा था l उसने “मशीनी खिलौने को शेखी मारते और इठलाते देखा था, और धीरे-धीरे टूटकर . . . और समाप्त होते देखा था l” वे प्रभावशाली और अच्छे दिखाई देते थे, किन्तु जब प्रेम करने की बात आयी उस समय उनका शेखी बघारना आख़िरकार व्यर्थ निकला l

शेखी मारना प्रबलता से आरम्भ होता है, परन्तु आखिर में यह धूमिल हो जाता है l यिर्मयाह तीन ऐसे क्षेत्र बताता है जहां यह प्रगट है : “बुद्धिमत्ता . . . ताकत . . . धन” (यिर्मयाह 9:23) l बुद्धिमान वृद्ध नबी अपने लम्बे अनुभव से एक या दो बातें जानता था, और उसने प्रभु की सच्चाई द्वारा ऐसे घमण्ड का सामना किया : “परन्तु जो घमण्ड करे वह इसी बात पर घमण्ड करे, कि वह मुझे जानता और समझता है, कि मैं ही वह यहोवा हूँ l (पद.24) l

आइए हम, बच्चे, अपने परमेश्वर, हमारे अच्छे पिता के विषय घमण्ड करें l उसके महान प्रेम की कहानी में, आप और हम एक अद्भुत तरीके से बढ़ते हैं और अधिकाधिक वास्तविक बनते जाते हैं l

सर के पीछे आँखें

मैं बचपन में अन्य बच्चों की तरह ही शरारती थी और परेशानी से बचने के लिए अपनी बुरी आदतें छिपाने की कोशिश करती थी l इसके बावजूद अक्सर मेरी माँ मेरी गलतियाँ पकड़ लेती थी l मैं याद करके चकित होती हूँ कैसे तुरंत और सही तौर से वह मेरी शरारत के विषय जान लेती थी l जब मैं अचंभित होकर उनसे पूछती थी, वो हमेशा कहती थी, “मेरे सिर के पीछे भी आँखें हैं l” यह, अवश्य ही, मुझे पता लगाने को विवश किया कि क्या वास्तव में उनके सर के पीछे आँखें थीं – क्या अदृश्य आँखें या ऑंखें जो उनके लाल बालों में छिपी हुयी थीं? बड़ी होने पर मैं उनकी सर के पीछे आँखें खोजना बंद कर दी और मैंने जाना कि अब मैं उतनी शरारती नहीं थी l उनकी सतर्क आँखें उनके बच्चों के लिए प्रेमी चिंता का प्रमाण था l

मैं बहुत अधिक अपनी माँ के सतर्क देखभाल के लिए कृतज्ञ हूँ (बावजूद इसके कि कभी-कभी निराश होती थी कि मैं पकड़ी जाती थी), मैं उससे भी अधिक धन्यवादित हूँ कि परमेश्वर स्वर्ग से दृष्टि करके “सब मनुष्यों को निहारता है” (भजन 33:13) l हम जितना करते हैं उससे कहीं अधिक वह देखता है; वह हमारे दुःख, हमारे आनंद, और एक दूसरे के लिए हमारे प्रेम को देखता है l

परमेश्वर हमारा वास्तविक चरित्र देखता है और हमेशा जानता है हमें किसकी ज़रूरत है l सिद्ध दृष्टि से, जो हमारे हृदयों के भीतर भी देखता है, वह उससे प्रेम करनेवालों और उसमें आशा रखनेवालों की हिफाजत करता है (पद.18) l वह हमारा ध्यान देनेवाला और प्रेमी पिता है l