
हर कहानी उसका नाम फुसफुसाती है
मैंने मनमौजी ढंग से बच्चों की सचित्र बाइबल खोलकर अपने पोते के लिए पढ़ना आरंभ कर दिया l तुरंत ही हम सम्मोहित हो गए जब परमेश्वर के प्रेम और प्रबंध की कहानी गद्य के रूप में खुलने लगी l अंश को चिन्हित करके, मैंने पुस्तक को पलटकर शीर्षक को एक बार फिर पढ़ना चाह : द जीसस स्टोरीबुक बाइबल : हर कहानी उसका नाम फुसफुसाती है l
हर कहानी उसका नाम फुसफुसाती है l हर एक कहानी l
अपने पुनरुत्थान के बाद, यीशु ने अपने दो चेलों से इम्माऊस के मार्ग पर मुलाकात की जिन्होनें उसे नहीं पहचाना और वह अपने संभावित उद्धारकर्ता की मृत्यु पर निराशा से संघर्ष कर रहे थे (लूका 24:19-24) l उनकी “आशा थी कि यही इस्राएल को छुटकारा देगा” (पद.21) l उसके बाद लूका लिखता है कैसे यीशु ने उनको आश्वस्त किया : “तब उसने[यीशु ने] मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ करके सारे पवित्शास्त्र में से अपने विषय में लिखी बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया” (पद. 27) l
हर कहानी उसका नाम फुसफुसाती है, कठिन कहानियाँ भी, क्योंकि वे हमारे संसार की व्यापक बर्बादी और एक छुटकारा देनेवाले की हमारी ज़रूरत दर्शाती हैं l हमें अपने पास वापस लाने के लिए, हर एक कार्य, घटना, हस्तक्षेप उसके अड़ियल प्रिय लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा अभिकल्पित छुटकारे की ओर इशारा करते हैं l

परमेश्वर के प्रति ईमानदार
मेरे तीन वर्ष के पोते का दिन खराब ढंग से शुरू हुआ l वह अपना पसंदीदा शर्ट ढूढ़ नहीं पा रहा था l जूते जो वह पहनना चाहता था बहुत ही भड़कीला था l वह अपनी दादी से परेशान और उनपर क्रोधित होने के बाद बैठकर रोने लगा l
“तुम इतना परेशान क्यों हो?” मैंने पूछा l हम थोड़े समय तक बाते करते रहे और उसके शांत होने के बाद, मैंने कोमलता से पूछा, “क्या तुम अपनी दादी के लिए अच्छे रहे हो?” वह विचारपूर्वक अपने जुते की ओर देखकर उत्तर दिया, “नहीं, मैं बुरा था, मुझे क्षमा करें l”
मेरा दिल उसके पक्ष में गया l अपने किये का इनकार करने की बजाए, वह ईमानदार था l आनेवाले क्षणों में हम यीशु से क्षमा और बेहतर करने के लिए सहायता मांगे l
यशायाह 1 में, परमेश्वर उन गलतियों के लिए अपने लोगों का सामना करता है जो उन्होंने की थीं l रिश्वत और अन्याय अदालतों में व्याप्त था, और अनाथों और विधवाओं से भौतिक लाभ उठाया जाता था l फिर भी परमेश्वर करुणा से प्रतियुत्तर देकर, यहूदा के लोगों से अपनी गलती मानकर उससे फिरने को कहता है : “आओ हम आपस में वादविवाद करें : तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों तौभी वे हिम के समान उजले हो जाएँगे” (यशायाह 1:18) l
परमेश्वर हमसे चाहता है कि हम अपने पापों के विषय उसके सामने खुले हुए हों l वह प्यार से क्षमा के साथ ईमानदारी और पश्चाताप की ज़रूरत पूरा करता है : “यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9) l इसलिए कि हमारा परमेश्वर करुनामय है, नयी शुरुआत हमारा इंतज़ार कर रही है!

शांति कैसे मिलेगी?
“आप शांति के विषय क्या सोचते हैं?” साथ में दोपहर का भोजन खाते समय मेरे मित्र ने पूछा l “शांति?” मैंने घबराकर उत्तर दिया l “मैं निश्चित नहीं हूँ – आप क्यों पूछ रहे हैं?” उसका उत्तर था, “अरे, जब तुम चर्च आराधना के समय अपने पैरों को हिला रही थी मैंने सोचा कि शायद तुम किसी बात के विषय क्षुब्ध थी l क्या तुमने उस शांति के विषय विचार किया है जो परमेश्वर अपने प्रेम करनेवालों को देता हैं?”
कुछ वर्ष पहले उस दिन, मुझे अपने मित्र के प्रश्न से ठेस पहुंचा था, किन्तु इससे मैं एक नयी यात्रा पर चल पड़ी l मैंने बाइबल में खोजना शुरू कर दिया कि किस प्रकार परमेश्वर के लोगों ने शांति और स्वास्थ्य के वरदान को, कठिनाई के समय भी गले लगाया है l जब मैंने कुलुस्सियों के नाम पौलुस की पत्री पढ़ी, मैंने प्रेरित के निर्देश को कि मसीह की शांति उनके हृदय में राज्य करे पर गहन चिंतन किया (कुलुस्सियों 3:15) l
पौलुस एक ऐसी कलीसिया को लिख रहा था जहाँ वह पहले कभी नहीं गया था किन्तु उनके विषय अपने मित्र इपफ्रास से सुना था l वह चिंतित था कि झूठी शिक्षा का सामाना करने के दौरान, वे मसीह की शांति को खो रहे थे l परन्तु उनको उलाहना देने के बजाए, पौलुस ने उनको मसीह में भरोसा करने के लिए उत्साहित किया, जो उन्हें निश्चितता और आशा दे सकता था (पद.15) l
हम सब ऐसे समयों का सामना करेंगे जब हम अपने हृदयों में मसीह की शांति के अधिकार का आलिंगन या उसका इनकार करने का चुनाव कर सकते हैं l जब हम यीशु को अपने अन्दर निवास करने के लिए उसकी ओर मुड़ते हैं, वह हमें कोमलता से चिंता और फ़िक्र से जो हमें दबाते हैं निकलेगा l जब हम उसकी शांति को खोजते हैं, हम भरोसा करते हैं कि वह अपने प्रेम के साथ हमसे पेश आएगा l

क्या आप अभी भूखे हैं?
थॉमस को मालूम था उसे क्या करना था? भारत में एक निर्धन परिवार में जन्म लिया और अमरीकियों द्वारा गोद लिया गया, और भारत लौटने पर उसने अपने ही गृह शहर के बच्चों को खौफ़नाक स्थिति में देखा l इसलिए वह जान गया उसे सहायता करनी होगी l वह अमरीका लौटकर, अपनी शिक्षा समाप्त करके, ढेर सारा पैसा जमा करके, भविष्य में भारत लौटने की योजना बनाने लगा l
उसके बाद, याकूब 2:14-18 पढ़ने के बाद जिसमें प्रेरित प्रश्न करता है, “यदि कोई कहे कि मुझे विश्वास है पर वह कर्म न करता हो, तो इससे क्या लाभ?” थॉमस ने अपने मातृभूमि में एक छोटी लड़की को उसने अपनी माँ से चीखते सुना : “परन्तु माँ, मैं तो अभी भूखी हूँ!” उसने उन दिनों को याद किया जब वह भी बचपन में बहुत ही भूखा था – कूड़ेदानों में भोजन ढूढ़ता था l थॉमस ने सहायता करने के लिए वर्षों तक इंतज़ार नहीं कर सकता था l उसने निर्णय किया, “मैं अभी सहायता करना आरंभ करूँगा!!”
वर्तमान में इस अनाथालय में जिसे उन्होंने आरंभ किया था पचास बच्चे हैं जिन्हें भरपूर भोजन मिलता है और उनकी उचित देखभाल की जाती है और वे यीशु के बारे में सीखते हैं और शिक्षा भी प्राप्त कर रहे हैं – यह सब इसलिए क्योंकि एक व्यक्ति ने समझ लिया कि परमेश्वर उन्हें क्या करने को बुला रहा है और वह इस काम को टाल नहीं सकता है l
याकूब का सन्देश हम सब पर लागू होता है l यीशु मसीह में हमारा विश्वास हमें बहुत लाभ देता है – उसके साथ एक सम्बन्ध, बहुतायत का जीवन, और भविष्य की एक आशा l परन्तु इसका कुछ भी लाभ नहीं यदि हम आगे बढ़कर ज़रुरतमंदों की मदद नहीं करते हैं? क्या आप उस चीख को सुन रहे हैं : “मैं तो अभी भूखा हूँ!”