अभी हाल ही में हम दोनों पति-पत्नी अपने कॉलेज पुनर्मिलन समारोह में उपस्थित होने लिए केलिफोर्निया के सैंटा बारबरा गए – वह शहर जहाँ हम पैतीस वर्ष पूर्व एक दूसरे से मिले थे और प्रेम करने लगे थे l हमनें उन अनेक स्थानों को घूमने की भी योजना बनायी जहाँ हम अपने युवावस्था के कुछ सर्वोत्तम समय बिताए थे l परन्तु जब हम उस स्थान को गए जहाँ हमारा पसंदीदा मेक्सीकन रेस्टोरेंट हुआ करता था, हमें भवन निर्माण सामग्री स्टोर मिला l रेस्टोरेंट और चार दसक तक समाज की उसकी सेवा के यादगार के रूप में ताडय लोह (wrought iron) का एक तख्ता दीवार पर लटका हुआ था l

मैं उजाड़ परन्तु अभी तक परिचित उस संकरे मार्ग को एक टक देखता रहा, जहां एक समय रंगीन मेज़ और चमकीले छाते प्रसन्नता बिखेरते थे l हमारे चारोंओर इतना कुछ बदल गया था! फिर भी इस बदलाव के मध्य, परमेश्वर की विश्वासयोग्यता नहीं बदलती l दाऊद ने मर्मस्पर्शी ढंग से ध्यान दिया : “मनुष्य की आयु घास के समान होती है, वह मैदान के फूल के समान फूलता है, जो पवन लगते ही ठहर नहीं सकता, और न वह अपने स्थान में फिर मिलता है l परन्तु यहोवा की करुणा उसके डरवैयों पर युग युग, और उसका धर्म उनके नाती-पोतों पर भी प्रगट होता रहता है” (भजन 103:15-17) l दाऊद इस भजन का अंत इन शब्दों से करता है : “हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह!” (पद.22) l

प्राचीन दार्शनिक हेराक्लितुस(philosopher Heraclitus) ने कहा, “आप उसी नदी में दो बार कदम नहीं रख सकते हैं l” हमारे चारोंओर जीवन हमेशा बदल रहा है, परन्तु परमेश्वर हमेशा एक सा है और अपनी प्रतिज्ञाएं पूरी करने के लिए हमेशा भरोसेमंद है! पीढ़ी से पीढ़ी तक उसकी विश्वासयोग्यता और प्रेम पर भरोसा किया जा सकता है l