वर्षों पहले, जब मैं स्की(बर्फ पर फिसलना) करना सीख रहा था, मैंने नीचे की ओर दिखाई देनेवाले हलके ढलान पर अपने बेटे जोश का पीछा किया l उसपर नज़र रखते हुए मैं उसे देख न सका कि वह पहाड़ पर सबसे खड़ी ढाल पर मुड़ गया, और मैं खुद को पूरी तरह से अनियंत्रित उस ढलान पर डगमगाते हुए पाया l अवश्य ही, मैं निराश हुआ l

भजन 141 दर्शाता है कि किस तरह हम सरलता से पाप के ढलान पर खुद को फिसलते हुए पाते हैं l प्रार्थना उन ढलानों में सतर्क रहने का एक तरीका है : “मेरा मन किसी बुरी बात की ओर फिरने न दे” (पद.4) एक निवेदन है जो लगभग वास्तव में प्रभु की प्रार्थना को प्रतिध्वनित करता है: “और [मुझे] परीक्षा में न ला, परन्तु [मुझे] बुराई से बचा” (मत्ती 6:13) l अपनी भलाई में, परमेश्वर इस प्रार्थना को सुनता है और उसका उत्तर देता है l

और उसके बाद मैं इस भजन में अनुग्रह का एक और कारक पाता हूँ : एक विश्वासयोग्य मित्र l “धर्मी मुझ को मारे तो यह कृपा मानी जाएगी, और वह मुझे ताड़ना दे, तो यह मेरे सिर पर का तेल ठहरेगा; मेरा सिर उससे इन्कार न करेगा” (भजन 141:5) l परीक्षाएं छली होती हैं l हम हमेशा सतर्क नहीं होते हैं कि हम गलत कर रहे हैं l एक सच्चा मित्र निष्पक्ष हो सकता है l “जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य हैं” (नीतिवचन 27:6) l डांट स्वीकार करना कठिन है, परन्तु यदि हम चोट लगने को “भलाई” के रूप में देखते हैं यह अभ्यंजन बन सकता है जो हमें पुनः आज्ञाकारिता के पथ पर ला देता है l

हम एक भरोसेमंद मित्र की ओर से सच्चाई के प्रति तैयार रहें और प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर पर निर्भर रहें l