जल से बढ़कर
चर्च की मेरी शुरूआती बचपन की यादें एक पास्टर का गलियारे में चलकर, हमें चुनौती देने की है, “अपने बप्तिस्मा के जल को याद करें l” “जल को याद करें?” मैंने खुद से पूछा l आप जल को किस तरह याद कर सकते हैं? वह आगे बढ़कर सभी लोगों पर जल छिड़कने लगे, जिससे एक किशोर होने के कारण मैं हर्षित किया और भ्रमित भी l
हम बप्तिस्मा के विषय विचार क्यों करें? जब एक व्यक्ति बप्तिस्मा लेता है, इसमें जल से बढ़कर और बहुत कुछ है l बप्तिस्मा संकेत है कि किस प्रकार यीशु में विश्वास के द्वारा, हम उसे “पहन लेते हैं” (गलातियों 3:27) l या दूसरे शब्दों में, यह उत्सव मानना है कि हम उसके हैं और वह हमारे साथ और हमारे अन्दर जीवित है l
मानो यदि वह पर्याप्त रूप से महत्वपूर्ण नहीं है, यह परिच्छेद हमें बताता है कि यदि हमने मसीह को पहन लिया है हमारी पहचान उसी में पाई जाती है l हम परमेश्वर की संतान हैं (पद.26) l वैसे तो, परमेश्वर के साथ हमारा मेल विश्वास के द्वारा हुआ है – पुराना नियम की व्यवस्था के पालन से नहीं (पद.23-25) l हम लिंग, संस्कृति और स्थिति द्वारा एक दूसरे के खिलाफ विभाजित नहीं हैं। हम स्वतंत्र हैं और मसीह के द्वारा एकता में लाये गए हैं और अब उसके हैं (पद.29) l
इसलिए बप्तिस्मा और उसके हर एक प्रतीक को याद करने के बहुत अच्छे कारण हैं l हम केवल उस कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं परन्तु यह कि हम यीशु के हैं और परमेश्वर की संतान बन गए हैं l हमारी पहचान, भविष्य, और आत्मिक स्वतंत्रता उसी में पायी जाती है l
उकसानेवालों को बढ़ावा न दें
क्या आपने कभी यह उक्ति सुनी है, “उकसानेवालों को बढ़ावा न दें” (Don’t feed the trolls”) l “ट्रोल्स” आज के डिजिटल संसार में एक नयी समस्या की ओर इशारा करता है – ऑनलाइन यूजर जो ख़बरों या सोशल मीडिया चर्चा समिति के बारे में बार-बार इरादतन विद्रोहजनक और हानिकारक टिप्पणियाँ पोस्ट करते रहते हैं l परन्तु ऐसे टिप्पणियों को नज़रंदाज़ करना – उकसानेवालों को बढ़ावा न देना – उनके लिए किसी संवाद को पटरी से उतारना कठिन बना देता है l
अवश्य ही, ऐसे लोगों का सामना करना कोई नयी बात नहीं है जो असलियत में उत्पादक संवाद में रूचि नहीं रखते हैं l “उकसानेवालों को बढ़ावा न दें” नीतिवचन 26:4 का आधुनिक समतुल्य हो सकता है, जो चेतावनी देता है कि अभिमानी, ग्रहण न करनेवाले के साथ बहस करना, उनके स्तर तक नीचे उतरने का जोखिम है l
और इसके बावजूद . . . सबसे अड़ियल दिखाई देने वाला व्यक्ति भी परमेश्वर की छवि का अमूल्य धारक है l यदि हम दूसरों को ख़ारिज करने में जल्दबाज़ है, हम अभिमानी और परमेश्वर के अनुग्रह को अस्वीकार करनेवाले बन जाने के खतरे में हो सकते हैं (देखें मत्ती 5:22) l
वह, कुछ हद तक स्पष्ट करता है क्यों नीतिवचन 26:5 बिलकुल विपरीत मार्गदर्शन पेश करता है l यह हर एक स्थिति में सर्वश्रेष्ठ तौर से प्रेम प्रगट करने का निर्णय है क्योंकि यह परमेश्वर पर दीन, प्रार्थनामय भरोसा से ही संभव है (देखें कुलुस्सियों 4:5-6) l कभी हम जोर से बोलते हैं, और दूसरे समयों में, शांत रहना ही उत्तम है l
परन्तु हर एक स्थिति में, हम यह जानने में शांति पाते हैं कि वही परमेश्वर जो हमें अपने निकट लाया जब हम उसके प्रति कठोर विरोधी थे (रोमियों 5:6) हर एक व्यक्ति के हृदय में सामर्थी रूप से कार्य कर सकता है l जब हम मसीह के प्रेम को साझा करने का प्रयास करते हैं हम उसकी बुद्धिमत्ता में विश्राम करें l
एकता
1722 में मोरावियन मसीहियों(Moravian Christians) का एक छोटा समूह, जो वहां निवास करते थे जो वर्तमान में चेक गणराज्य है, को एक उदार जर्मन शासक के रियासत में सताव से पनाह मिली l चार वर्षों के अन्दर, 300 से अधिक लोग वहां आ गए l परन्तु सताव सह रहे शरणार्थियों का एक आदर्श समुदाय बनने की बजाए, बंदोबस्त मतभेदों से भर गया l मसीहियत पर भिन्न दृष्टिकोण होने से विभाजन उत्पन्न हो गया l जो उन्होंने आगे किया एक छोटा विकल्प था, परन्तु उससे एक अविश्वसनीय जागृति आरम्भ हो गयी l उन्होंने उन बातों पर ध्यान देना आरम्भ किया जिनसे वे सहमत थे न कि असहमति की बातों पर l परिणाम एकता थी l
प्रेरित पौलुस ने प्रबलता से इफिसुस की कलीसिया के विश्वासियों को एकता में रहने के लिए उत्साहित किया l पाप हमेशा परेशानी, स्वार्थी इच्छाएँ, और संबंधों में विरोध उत्पन्न करेगा l परन्तु उनकी तरह जो “मसीह में जीवित किये गए थे” इफिसियों को अपनी नयी पहचान को व्यवहारिक तरीकों से जीने के लिए बुलाया गया था (इफिसियों 5:2) l प्राथमिक रूप से, उन्हें “मेल के बंधन में आत्मा की एकता रखने का यत्न [करना था]” (4:3) l
यह एकता मानवीय सामर्थ्य द्वारा प्राप्त केवल साधारण सोहार्द नहीं है l हमें “सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की [सहना है]” (पद.2) l मानवीय दृष्टिकोण से, ऐसा करना असंभव है l हम अपने सामर्थ्य से एकता प्राप्त नहीं कर सकते हैं परन्तु परमेश्वर की सिद्ध सामर्थ्य से जो “हम में कार्य करता है” (3:20) l
कीमत जो भी हो
पॉल, एपोसल ऑफ़ क्राइस्ट(Paul, Apostle of Christ)) फिल्म कलीसिया के आरंभिक दिनों के सताव पर एक निर्भीक अवलोकन है l फिल्म के बाल कलाकार भी प्रगट करते हैं कि यीशु का अनुसरण करना कितना खतरनाक था l नेकनामियों में सूचीबद्ध इन भूमिकाओं पर विचार करें : स्त्री जिसे पीटा गया; पुरुष जिसे पीटा गया; मसीही पीड़ित व्यक्ति 1, 2, और 3 l
मसीह के साथ पहचान अक्सर एक ऊंची कीमत मांगती है l और संसार के अधिकतर भाग में, यीशु का अनुसरण करना अभी भी खतरनाक है l आज कलीसिया में अनेक लोग उस प्रकार के सताव से सम्बंधित हो सकते हैं l हालाँकि, हममें से कुछ एक, समय से पूर्व ही “सताए हुए” महसूस कर सकते हैं – जब भी हमारे विश्वास का उपहास होता है हम क्रोधित होते हैं या हम शंकित होते हैं कि हमारे विश्वास के कारण हमें पदोन्नति नहीं दी गयी l
जाहिर है, सामाजिक प्रतिष्ठा का त्याग और हमारे जीवन का बलिदान करने के बीच भारी अंतर है l वास्तविक रूप से, हालांकि, स्व-हित, वित्तीय स्थिरता और सामाजिक स्वीकृति हमेशा गहन मानव प्रेरक रही है l हम इसे यीशु के कुछ आरंभिक विस्वासियों के कार्यों में देखते हैं l प्रेरित युहन्ना बताता है कि, यीशु के क्रूसीकरण से कुछ दिन पहले, यद्यपि अनेक इस्राएली अब तक उसका तिरस्कार कर रहे थे (युहन्ना 12:37), बहुत से “अधिकारियों में से बहुतों ने उस पर विस्वास किया” (पद.42) l हालाँकि, “[वे] प्रगट रूप में नहीं मानते थे . . . क्योंकि मनुष्यों की ओर से प्रशंसा उनको परमेश्वर की ओर से प्रशंसा की अपेक्षा अधिक प्रिय लगती थी” (पद. 42-43) l
आज भी हम मसीह में अपने विश्वास को छुपाए रखने के लिए सामाजिक तनाव का सामना करते हैं (और उससे भी अधिक) l कीमत कुछ भी हो, हम ऐसे समाज के रूप में एक साथ खड़े रहें जो मनुष्य की प्रशंसा से अधिक परमेश्वर के अनुमोदन के खोजी हों l
जो भी हम करते हैं
सी. एस. लयूईस ने सरप्राइज्ड बाई जॉय(Surprised by Joy) पुस्तक में स्वीकार किया कि झटकारते हुए, संघर्ष-अनुक्रिया करते हुए, क्रोधित, और बच निकलने के लिए हर दिशा में देखने के बाद तैतीस वर्ष की उम्र में उन्होंने मसीहियत को ग्रहण किया l लयूईस के अपने व्यक्तिगत प्रतिरोध, उसकी गलतियाँ, और जिन बाधाओं का उन्होंने सामना किया था, के बावजूद, प्रभु ने उन्हें विश्वास का साहसी और रचनात्मक समर्थक बना दिया l लयूईस परमेश्वर की सच्चाई और प्रेम को शक्तिशाली लेखों और उप्नयासों के द्वारा घोषित किया जो आज भी पढ़े और अध्ययन किया जाते हैं, और उनकी मृत्यु के पचपन वर्षों से अधिक के बाद भी साझा किये जाते हैं l उनका जीवन उनके विश्वास को प्रतिबिंबित करता है कि एक व्यक्ति “एक और लक्ष्य निर्धारित करने या एक नया दर्शन/स्वप्न देखने के लिए कभी भी बहुत बूढ़ा नहीं होता है l”
जब हम योजना बनाते हैं सपनों का पीछा करते हैं, परमेश्वर हमारे उद्देश्यों को शुद्ध कर सकता है और हम जो भी करते हैं उनको उसे समर्पित करने के लिए हमें सशक्त बनाता है (नीतिवचन 16:1-3) l सबसे साधारण कार्यों से लेकर महानतम चुनौतियों तक, हम अपने सर्शक्तिमान सृष्टिकर्ता की महिमा के लिए जीवन जी सकते हैं, जिसने “सब वस्तुएँ विशेष उद्देश्य के लिए बनाई हैं” (पद.4) l हर एक कार्य, हर एक शब्द, और हर एक विचार हृदय को छू जानेवाली आराधना का प्रगटीकरण हो सकता है, हमारे प्रभु के आदर में एक त्यागपूर्ण उपहार, जब वह हमारी हिफाजत करता है (पद.7) l
परमेश्वर हमारी सीमाओं, हमारी शर्तों, या तय करने या छोटे सपने देखने की हमारी प्रवृति द्वारा सीमित नहीं किया जा सकता है l जब हम – उसके प्रति समर्पित और उसपर निर्भर होकर –उसके लिए जीने का निर्णय करते हैं वह हमारे लिए अपनी योजनाएं पूरी करेगा l जो हम करने में सक्षम हैं उसके साथ, उसके लिए, और केवल उसके कारण किये जा सकते हैं l