खूबसूरती से बोझिल
मैं घोर अँधकार में जागी l मैं तीस मिनट से अधिक नहीं सो पायी थी और मेरे दिल को अहसास हुआ कि नींद जल्दी नहीं आएगी l एक सहेली का पति हॉस्पिटल में पड़ा था, जिसे भयानक खबर मिली थी, “कैंसर वापस आ गया है – मस्तिष्क और अब रीढ़ में l” मेरी सहेली के लिए मेरा सम्पूर्ण व्यक्तित्व दुखित था l कितना भारी बोझ है! और फिर भी, किसी प्रकार प्रार्थना की मेरी पवित्र चौकसी द्वारा मेरी आत्मा उभारी गयी l आप कह सकते हैं कि मैंने खूबसूरती से उनके लिए बोझ महसूस किया l यह कैसे हो सकता है?
मत्ती 11:2-20 में, यीशु हमारी थकी हुयी आत्माओं के लिए आराम देने की प्रतिज्ञा करता है l असाधारण रूप से, उसका विश्राम तब मिलता है जब हम उसके जूए के नीच झुकते हैं और उसके बोझ को ग्रहण करते हैं l पद 30 में वह स्पष्ट करता है, “मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हल्का है l” जब हम यीशु को अपनी पीठ से अपना बोझ उठाने की अनुमति देते हैं और फिर अपने आप को यीशु के जूए से बांधते हैं, तब हम उसके साथ जोते जाकर, उसके साथ और जिसकी भी वह अनुमति देता है के साथ कदम मिलाकर चलते हैं l जब हम उसके जूए के नीचे झुकते हैं, हम उसके कष्टों में हिस्सा लेते हैं, जो आख़िरकार हमें उसके आराम में भी हिस्सा लेने की अनुमति देता है (2 कुरिन्थियों 1:5) l
मेरे मित्रों के लिए मेरी चिंता एक भारी बोझ थी l फिर भी मुझे यह आभारी लगा कि परमेश्वर मुझे प्रार्थना में ले जाने अनुमति देंगे l धीरे-धीरे मैं सो गयी और जागी भी – फिर भी खूबसूरती से बोझिल थी लेकिन अब यीशु के साथ चलने के आसान जूए और हलके बोझ के तहत l
अंत तक फलदायी
यद्यपि लेनोर डनलप चौरानवे वर्ष की युवा थी, उसका मस्तिष्क तेज़, उसकी मुस्कराहट उज्जवल, और यीशु के लिए उसके संक्रामक प्रेम को बहुतों ने महसूस किया था l हमारे चर्च के युवाओं की संगती में उसे खोजना असामान्य नहीं था; उसकी उपस्थिति और भागीदारी ख़ुशी और प्रोत्साहन के श्रोत थे l लेनोर का जीवन इतना जीवंत था कि उसकी मृत्यु ने हमारी असावधानी में हमें पकड़ लिया l एक शक्तिशाली धावक की तरह, वह जीवन भर समापन रेखा पर छाई रही l उसकी ऊर्जा और उसका उत्साह ऐसा था कि, अपनी मृत्यु के कुछ ही दिन पहले, उसने सोलह सप्ताह का एक पाठ्यक्रम पूरा क्या था, जिसमें यीशु के सन्देश को दुनिया के लोगों तक ले जाने पर ध्यान केन्द्रित किया गया था l
लेनोर का फलदायी, परमेश्वर को आदर देनेवाला जीवन भजन 92:12-15 में वर्णित जीवन को दर्शाता है l यह भजन उन लोगों के नवोदित, प्रस्फुटित और फलदायी जीवन होने का वर्णन करता है, जिनका जीवन परमेश्वर के साथ एक सही संबंद में निहित (पद.12-13) l चित्रित किये गए दो पेड़ क्रमशः अपने फल और लकड़ी के लिए मूल्यवान थे; इनके साथ भजनकार जीवन शक्ति, समृद्धि और उपयोगिता की भावना को अधिकार में कर लेता है l जब हम प्रेम करने, साझा करने, मदद करने, और दूसरों को मसीह के पास लाने में अपने जीवन को उदीयमान् और फूलते हुए देखते हैं हमें आनंदित होना चाहिए l
यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जिन्हें हम “वरिष्ठ” या “अनुभवी” मानते हैं, जड़वत और फलदायी होने में विलम्ब कभी नहीं होता है l लेनोर का जीवन यीशु के द्वारा परमेश्वर में गहराई से जड़वत था और इसकी और परमेश्वर की भलाई की गवाही देता है (पद.15) l हमारा जीवन भी ऐसा हो सकता है l
सच्ची, गहरी अभिलाषा
एक तीखी आवाज़ वाला एक चूहा, रिपीचीप शायद द क्रॉनिकल्स of नार्निया(The Chronicles of Narnia’s) फिल्म का सबसे बहादुर चरित्र है l उसने अपनी छोटी तलवार को घुमाते हुए लड़ाई में कूद पड़ा l उसने भय को ख़ारिज कर दिया जब उसने डॉन ट्रीडर पर डार्कनेस द्वीप की ओर को यात्रा की l रिपीचीप के साहस का रहस्य? यह असलान(शेर/lion) के देश में जाने की अभिलाषा से गहराई से जुड़ा था l उसने कहा, “यह मेरे हृदय की अभिलाषा है l” रिपीचीप जानता था कि वह वास्तव में क्या चाहता था, और यह उसे उसके राजा की ओर ले गया l
यरीहो का एक दृष्टिहीन व्यक्ति, बरतिमाई, अपने सामान्य स्थान पर बैठकर सिक्कों के लिए अपना कटोरा बजा रहा था जब उसने यीशु और भीड़ को आते हुए सुना l वह चिल्लाया, “हे दाऊद की संतान, यीशु, मुझ पर दया कर!” (मरकुस 10:47) l भीड़ ने उसे चुप कराने की कोशिश की, लेकिन बरतिमाई को रोका नहीं जा सका l
मरकुस कहता है, “[यीशु ठहर गया]” (पद.49) l भीड़ के बीच में यीशु बरतिमाई को सुनना चाहता था l यीशु ने पूछा, “तू क्या चाहता है?” (पद.51) l
उत्तर स्पष्ट लग रहा था; निश्चित रूप से यीशु जानता था l लेकिन उसका मानना था कि बरतिमाई को अपनी गहरी इच्छा व्यक्त करने की अनुमति देने में शक्ति थी l “मैं देखना चाहता हूँ,” बरतिमाई ने कहा (पद.51) l और यीशु ने बरतिमाई को घर भेजा जिसने पहली बार रंग, सुन्दरता, और मित्रों के चेहरे देखे l
सभी इच्छाओं की पूर्ति तुरंत नहीं होती है (और इच्छाओं को रूपान्तरित होना चाहिए), लेकिन यहाँ जो विशेष है कि कैसे बरतिमाई अपनी इच्छा जानता था और इसे यीशु के पास ले गया l अगर हम ध्यान देंगे, तो हम जानेंगे कि हमारी सच्ची इच्छाएँ और लालसाएं हमें हमेशा उसके पास ले जाएंगी l
परदेशी से प्रेम करना
मेरे परिवार की एक सदस्या के एक अलग धर्म में परिवर्तित होने के बाद, मसीही मित्रों ने मुझे उसे यीशु के पास लौटने के लिए “मनाने” का आग्रह किया l मैंने खुद को पहली बार अपने परिवार की सदस्या से यीशु की तरह प्यार करने की कोशिश करते हुए पाया – सार्वजनिक स्थानों पर भी जहाँ कुछ लोगों ने “विदेशी-दिखने” वाले उसके वस्त्रों पर नाक भौं चढ़ाए l अन्य लोगों ने भी असभ्य टिप्पणियाँ की l “अपने घर जाओ!” एक व्यक्ति ने अपने ट्रक पर से उस पर चिल्लाया, नहीं जानते हुए या जाहिर तौर पर परवाह करते हुए कि वह पहले से ही “घर” पर है l
मूसा ने उन लोगों के प्रति व्यवहार करने का एक और कोमल तरीका सिखाया, जिनके वस्त्र या विश्वास अलग महसूस होते हैं l और दया के नियम सिखाते हुए, मूसा ने इस्राएल की संतानों को निर्देश दिया, “तुम परदेशी को न सताना और न उस पर अंधेर करना, क्योंकि मिस्र देश में तुम भी परदेशी थे” (निर्गमन 23:9) l यह अध्यादेश सभी परदेशियों, पूर्वाग्रह और दुर्व्यवहार के प्रति संवेदनशील लोगों के लिए परमेश्वर की चिंता व्यक्त करता है, और यह निर्गमन और लैव्यव्यवस्था 19:33 में दोहराया गया है l
इसलिए जब मैं अपने परिवार के सदस्य के साथ बात करने के लिए समय बिताती हूँ – एक रेस्टोरेंट में, एक पार्क में, एक साथ टहलने या बैठने और अपने सामने वाले पोर्च के नीचे – मैं सबसे पहले उसे उसी दया और सम्मान को दिखाने की तलाश करती हूँ जो अनुभव मैं चाहती हूँ l यह यीशु के मधुर प्रेम को उसे याद दिलाने का एक सबसे अच्छा तरीका है, उसको अस्वीकार करने के लिए उसका अपमान करके नहीं, बल्कि उसे प्यार करते हुए, जैसा कि वह हम सभी से प्यार करता है – अद्भुत अनुग्रह के साथ l