Month: नवम्बर 2019

यह तो अद्भुत था!

यह सातवें कक्षा का पहली क्रॉस-कंट्री(छोटी) प्रतियोगिता थी, लेकिन वह दौड़ना नहीं चाहती थी l यद्यपि वह इस आयोजन की तैयारी में लगी हुयी थी, वह ख़राब प्रदर्शन से डरती थी l फिर भी, उसने बाकी सभी के साथ दौड़ आरम्भ की l बाद में, एक के बाद दूसरे धावकों ने दो मील की दौड़ पूरी करके समापन रेखा पार की – अनिच्छुक धावक को छोड़कर सभी l अंत में, उसकी माँ, जो अपनी बेटी को दौड़ पूरी करते हुए देख रही थी, ने दूर एक अकेला व्यक्ति को देखी l माँ उस परेशान प्रतियोगी को ढाढ़स देने उस समापन रेखा तक गयी l इसके बदले, जब वह युवा धाविका ने अपनी माँ को देखा, वह पुकार उठी, “यह तो अद्भुत था!”

अंत में समाप्त करने के विषय क्या अद्भुत हो सकता है? समाप्त करना!

लड़की कुछ कठिन कोशिश करके उसे पूरा किया था! पवित्र वचन कड़ी मेहनत और परिश्रम का सम्मान करता है, एक अवधारणा जो अक्सर खेल या संगीत या अन्य चीजों के माध्यम से सीखी जाती है जिन्हें दृढ़ता और प्रयास की आवश्यकता होती है l

नीतिवचन 12:24 कहता है, “कामकाजी लोग प्रभुता करते हैं, परन्तु आलसी बेगार में पकड़े जाते हैं l” ये बुद्धि के सिद्धांत – प्रतिज्ञाएँ नहीं – अच्छी प्रकार परमेश्वर की सेवा करने में सहायता कर सकते हैं l

हमारे लिए परमेश्वर की योजना में कार्य हमेशा शामिल था l पतन से पहले भी, आदम को [वाटिका में] “काम” करना था और “उसकी रक्षा” करनी थी (उत्पत्ति 2:15) l और हमारे द्वारा किया गया कोई भी प्रयास “तन मन से” होना चाहिए (कुलुस्सियों 3:23) l आइये हम उसके द्वारा दी गयी शक्ति में कार्य करें – और परिणाम उसपर छोड़ दें l

“मैं समस्त संसार से प्रेम करती हूँ”

मेरी तीन वर्षीय भतीजी, जेना की एक अभिव्यक्ति है, जो मेरे हृदय को हमेशा द्रवित करता है l जब वह किसी वस्तु से प्यार करती है (वास्तव में उससे प्यार करती है), चाहे वह केला मलाई मिठाई हो, उछाल पट (trumpolines) पर कूदना हो, या फ़्रिसबी(एक प्रकार का खेल) हो, वह ऊंची आवाज़ में बोलती है, “मैं इससे प्यार करती हूँ – समस्त संसार को!” (“समस्त संसार” और नाटकीय तौर से अपनी बाहों से इशारा करती है)

कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है, पिछली बार कब मैंने ऐसा प्यार करने की हिम्मत की थी? कुछ भी अपने अधीन नहीं रखा था, पूरी तौर से अभय?

यूहन्ना ने बार-बार लिखा, “परमेश्वर प्रेम है” (1 यूहन्ना 4:8, 16), शायद इसलिए कि यह सच्चाई कि परमेश्वर का प्रेम – हमारा क्रोध, भय, या लज्जा नहीं – सच्चाई की सबसे गहरी बुनियाद है, हम सयानों के लिए “हासिल करना” कठिन है l संसार हमें उन शिविरों के आधार पर विभाजित करती है जिससे हम सबसे अधिक डरते हैं – और ज़यादातर हम इसमें शामिल हो जाते हैं, वास्तविकता की हमारी पसंदीदा दृष्टि को चनौती देनेवाली आवाजों की अनदेखी करते हैं या उन्हें खलनायक बना देते हैं l

फिर भी धोखे और शक्ति के संघर्ष के बीच (पद.5-6), परमेश्वर के प्रेम का सत्य बना रहता है, एक प्रकाश जो अँधेरे में चमकता है, हमें विनम्रता, विश्वास और प्रेम का मार्ग सीखने के लिए निमंत्रित करता है (1:7-9; 3:18). कोई बात नहीं है कि किस दर्दनाक सच को प्रकाश उजागर करता है, हम जान सकते हैं कि हम अभी उस अवस्था में भी प्यार किये जाते हैं (4:10; रोमियों 8:1) l

जब जेना मेरी ओर झुककर मुझसे फुसफुसाती है, “मैं पूरी दुनिया से प्यार करती हूँ!” मैं भी वापस फुसफुसाती हूँ, “मैं पूरी दुनिया से प्यार करती हूँ!” और मैं एक सौम्य अनुस्मारक के लिए आभारी हूँ कि हर पल मैं असीम प्रेम और अनुग्रह में सुरक्षित हूँ l

आशा कभी न छोड़े

जब मेरी सहेली को कैंसर का निदान मिला, तो डॉक्टर ने उसे अपने सभी मामले व्यवस्थित करने की सलाह दी l अपने पति और छोटे बच्चों के विषय चिंता करते हुए, उसने मुझे फोन किया l मैंने अपने आपसी मित्रों के साथ उसका तत्काल प्रार्थना अनुरोध साझा किया l हमें प्रसन्नता हुयी जब एक दूसरे डॉक्टर ने उसे कभी उम्मीद न छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया और पुष्टि की कि उसकी टीम अपनी ओर से उसकी मदद के लिए पूरी कोशिश करेगी l हालाँकि कुछ दिन दूसरों की तुलना में कठिन थे, उसने अपने खिलाफ कड़ी बाधाओं के बजाय परमेश्वर पर ध्यान केन्द्रित किया l उसने कभी हार नहीं मानी l

मेरी सहेली का दृढ विश्वास मुझे लूका 8 में हताश महिला की याद दिलाता है l बारह साल से चल रही पीड़ा, निराशा और अलगाव के कारण, उसने पीछे से यीशु से संपर्क किया और अपने हाथ को उसके वस्त्र की छोर की ओर बढ़ाया l उसके तत्काल चंगाई ने उसके विश्वास के कार्य का अनुसरण किया : लगातार उम्मीद करना . . .  विश्वास करना कि यीशु वह करने में सक्षम था जो दूसरे नहीं कर सकते थे . . . इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसकी स्थिति कितनी ससंभव दिखाई दे रही थी (पद.43-44) l

हम दर्द का अनुभव कर सकते हैं जो अंतहीन महसूस होता है, ऐसी परिस्थितियाँ जो निराशाजनक दिखती हैं, या प्रतीक्षा जो असहनीय लगती हैं l हम उन क्षणों को सहन कर सकते हैं जब हमारे खिलाफ कठिनाईयों को ऊँचा और व्यापक रूप से ढेर किया जाता है l हम उस चंगाई का अनुभव नहीं कर सकते हैं जिसकी हमें इच्छा है, जब हम मसीह पर भरोसा करना जारी रखते हैं l लेकिन फिर भी, यीशु हमें उसके निकट पहुँचने के लिए आमंत्रित करता है, उस पर भरोसा करने के लिए और कभी आशा नहीं छोड़ने के लिए, और यह विश्वास करने के लिए कि वह हमेशा सक्षम है, हमेशा भरोसे के योग्य है, और हमेशा पहुँच के भीतर है l

अगला काम करें

आखिरी बार कब आप किसी की मदद करने के लिए विवश हुए थे, केवल किसी प्रतिक्रिया के बिना उस क्षण के गुज़रने के लिए? द 10-सेकंड रूल (The 10-Second Rule) में, क्लेयर डी ग्रेफ का सुझाव है कि दैनिक प्रभाव उन तरीकों में से एक हो सकता है जिसमें परमेश्वर हमें एक गहरी आध्यात्मिक सैर के लिए बुलाता है, आज्ञाकारिता का जीवन जो उसके लिए प्रेम से प्रेरित है l 10-दूसरा नियम आपको प्रोत्साहित करता है कि “आप विवेकी तौर पर अगली बात करें जो यीशु आपसे चाहते हैं,” और उसे तुरंत करें  “इससे पहले कि आप अपना मन बदल लें l”

यीशु कहते हैं, “यदि तुम मुझ से प्रेम रखते है, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे” (युहन्ना 14:15) l हम सोच सकते हैं, मैं उससे प्रेम करता हूँ, लेकिन मैं उसकी इच्छा और उसके अनुसरण के विषय कैसे निश्चित हो सकता हूँ? अपनी बुद्धिमत्ता में, यीशु ने बाइबल में पायी जानेवाली बुद्धिमत्ता को बेहतर समझने और उसका अनुसरण करने का प्रबंध किया है l उसने एक बार कहा था, “मैं पिता से विनती करूँगा और वह तुम्हें एक और सहायक देगा कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे l अर्थात् सत्य का आत्मा” (पद.16-17) l यह आत्मा के काम के द्वारा से है, जो हमारे साथ है और हममें है, कि हम यीशु की “आज्ञाओं को [मानना और पालन करना सीख सकते हैं]” (पद.15) – हमारे सम्पूर्ण दिन में उसके विवेकी बातों का अनुभव करते हुए प्रत्युत्तर देकर (पद.17) l   

बड़ी और छोटी बातों में, आत्मा हमें भरोसे के साथ विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है कि कौन सी बातों से परमेश्वर का सम्मान होगा और उसके और दूसरों के लिए उसका प्रेम प्रगट होगा (पद.21) l

अब भयभीत नहीं

जब इथियोपिया की पुलिस ने उसके अपहरण के एक सप्ताह के बाद उसे पाया, तो वह घने काले बाल वाले तीन शेरों से घिरी हुयी थी जैसे कि वह उनकी थी l सात लोगों ने उस बारह वर्षीय लड़की का अपहरण करके उसे जंगल में ले जाकर उसे पीटा था l आश्चर्यजनक रूप से, हालाँकि, शेरों का एक छोटा झुण्ड लड़की के रोने की आवाज़ सुनकर आया और हमलावरों को खदेड़ दिया l पुलिस अधिकारी वोंदिमू ने एक पत्रकार को बताया, “[शेरों ने] उस समय तक उसका पहरा दिया जब तक कि हम उसे ढूँढ नहीं लिए और फिर वे उसे एक उपहार की तरह छोड़कर जगल में चले गए l”

ऐसे दिन भी होते है जब हिंसा और बुराई जिस प्रकार इस लड़की पर हावी हुयी थी हम पर भी हावी होकर, हमें बिना किसी उम्मीद और भय के छोड़ देती है l प्राचीन काल में, यहूदा के लोगों ने इसका अनुभव किया था l क्रूर सेना ने उन पर आक्रमण किया और वे किसी भी प्रकार भाग न सके l भय ने उन्हें भस्म कर दिया l हालाँकि, परमेश्वर ने हमेशा अपने लोगों के साथ अपनी निरंतर उपस्थिति को नवीकृत किया : “इस्राएल का राजा यहोवा तेरे बीच में है, इसलिए तू फिर विपत्ति न भोगेगी” (सपन्याह 3:15) l जब हमारी तबाही हमारे विद्रोह के परिणामस्वरूप होती है, तब भी परमेश्वर हमारे बचाव में आताह है l हम सुनते हैं, “तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे बीच में है, वह उद्धार करने में पराक्रमी है” (पद.17) l

जो भी मुसीबतें हमें घेर लेती हैं, जो भी बुराइयाँ है, यीशु – यहूदा का शेर – हमारे साथ है (प्रकाशितवाक्य 5:5) l कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कितना अकेला महसूस करते हैं, हमारा मजबूत उद्धारकर्ता हमारे साथ है l इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सा डर हमें नाश करता है, हमारा परमेश्वर हमें भरोसा दिलाता है कि वह हमारी ओर है l