एक संग्रहालय में, मैं प्राचीन दीपों/चिरागों के प्रदर्शनी के निकट ठहर गया l एक संकेत ने दर्शाया कि वे इस्राएल के हैं l नक्काशीदार डिजाइनों से सजे, इन अंडाकार आकर के मिटटी के बर्तनों में दो छिद्र थे – एक ईंधन के लिए, और एक बाती के लिए l हालाँकि इस्राएली आमतौर पर उन्हें दीवार के आलों(alcove) में इस्तेमाल करते थे, लेकिन काफी छोटा होने के कारण वह किसी व्यक्ति के हाथ की हथेली में फिट हो जाता था l

शायद इस तरह के छोटे प्रकाश ने राजा दाऊद को एक प्रशंसा गीत लिखने के लिए प्रेरित किया जिसमें उसने कहा, “हे यहोवा, तू ही मेरा दीपक है, और यहोवा मेरे अंधियारे को दूर करके उजियाला कर देता है” (2 शमूएल 22:29) l दाऊद ने इन शब्दों को परमेश्वर द्वारा युद्ध में विजय देने के बाद गाया l अपने ही देश के अन्दर और बाहर दोनों के प्रतिरोधियों ने छिपकर उसे मारने का इरादा किया था l परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध के कारण, दाऊद अँधेरे में दुबका नहीं l वह उस भरोसे के साथ शत्रु के साथ मुकाबले में आगे बढ़ा जो परमेश्वर की उपस्थिति से आता है l परमेश्वर की सहायता के साथ, वह उन चीजों को स्पष्ट रूप से देख सकता था ताकि वह अपने लिए, अपने सैनिकों के लिए और अपने राष्ट्र के लिए अच्छे निर्णय ले सके l

दाऊद ने अपने गीत में जिस अन्धकार का वर्णन किया है, उसमें दुर्बलता, पराजय और मृत्यु का डर था l हममें से बहुत से लोग उसी प्रकार की चिंताओं के साथ जीते हैं, जो घबराहट और तनाव पैदा करते हैं l जब अँधेरा हम पर दबाव डालता है, हम शांति पाते हैं कि परमेश्वर हमारे साथ भी है l जब तक हम यीशु से आमने सामने नहीं मिलेंगे, तब तक पवित्र आत्मा की दिव्य ज्योंति हमारे मार्ग को रोशन करने के लिए हमारे अंदर रहती है l