Month: जनवरी 2020

बदले के स्थान पर

1956 में जिम इलियट और चार मिशनरियों को हुआवरनी आदिवासियों(Huaorani tribesmen) द्वारा मार दिए जाने के बाद, किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि आगे क्या होगा l जिम की पत्नी, एलिज़ाबेथ, उसकी युवा बेटी और एक अन्य मिशनरी की बहन ने स्वेच्छा से उन लोगों के बीच अपना घर बनाने का चुनाव किया, जिन्होंने उनके प्रियजनों की हत्या की थी l उन्होंने हुआवरनी समुदाय में रहने, उनकी भाषा सीखने और उनके लिए बाइबल का अनुवाद करने में कई साल बिताए l इन महिलाओं की क्षमा और दयालुता की गवाही ने हुआवरनी लोगों को उनके लिए परमेश्वर के प्रेम के विषय आश्वास्त किया और कईयों ने यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण किया l 

जो एलिज़ाबेथ और उसके मित्रों ने किया वह बुराई के बदले बुराई नहीं बल्कि उसका बदला  अच्छाई (रोमियों 12:17) से देने का एक अविश्वसनीय उदाहरण है l प्रेरित पौलुस ने रोम की कलीसिया को अपने कार्यों से उस रूपांतरण को दिखाने के लिए प्रोत्साहित किया जो परमेश्वर उनके जीवनों में लाया था l पौलुस के मन में क्या था? उनको बदला लेने की स्वाभाविक इच्छा से परे जाना था; इसके बदले, उन्हें अपने बैरियों की ज़रूरतों को पूरा करके प्रेम दिखाना था, जैसे कि खाना या पानी का प्रबंध करना l 

ऐसा क्यों करें? पौलुस पुराने नियम से एक लोकोक्ति कहता है : “यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसको रोटी खिलाना; और यदि वह प्यासा हो तो उसे पानी पिलाना” (पद.20; नीतिवचन 25:21-22) l प्रेरित यह प्रगट कर रहा था कि विश्वासियों ने अपने शत्रुओं पर जो दया दिखाई, वह उन्हें जीत सकती है और उनके दिलों में पश्चाताप की आग को जला सकती है l 

आंधी का पीछा करना

“कोलकाता और अन्य स्थानों के कुछ मौसम के प्रति उत्साही लोगों के लिए “चक्रवात का पीछा करना” एक शौक है, वे तूफानों के नमूनों को समझने और बिजली की चमक की फोटो खींचने और उसके बाद परिणामों को समझने के लिए इनका अध्ययन करना चाहते हैं l जबकि हम में से अधिकाँश संभावित घातक मौसम के बीच खुद को डालने से बचते हैं, इनमें से कुछ अनुसरणकर्ताओं(aficionados) ने विभिन्न शहरों में इन चक्रवातों का पीछा करने और पीछा करने के लिए सोशल मिडिया के माध्यम से अमुह बनाए हैं l 

मेरे अनुभव में, हालाँकि, मुझे जीवन में तूफानों का पीछा करने की ज़रूरत नहीं है – वे मेरा पीछा करते हुए लगते हैं l यह अनुभव भजन 107 में दिखाई देता है जब वह तूफ़ान में फंसे नाविकों का वर्णन करता है l उनके अपने ही गलत निर्णयों के परिणाम उनका पीछा कर रहे थे लेकिन भजनकार कहता है, “वे संकट में यहोवा की दोहाई देते हैं, और वह उनको सकेती से निकालता है l वह आंधी को शांत कर देता है और तरंगें बैठ जाती हैं l तब वे उनके बैठने से आनंदित होते हैं, और वह उनको मन चाहे बंदरगाह में पहुँचा देता है” (भजन 107:28-30) l  

चाहे जीवन के तूफ़ान हमारे स्वयं के हों या टूटे हुए संसार में रहने के परिणामस्वरूप, हमारे पिता इनसे अधिक महान है l जब तूफान हमारा पीछा कर रहे हैं, तो वह अकेले उन्हें शांत करने में सक्षम है – या हमारे भीतर के तूफ़ान को शांत करने के लिए l 

जो तुम्हारे पास है उसे लेकर आओ

“पत्थर का सूप (Stone Soup)” कई संस्करण के साथ एक पुरानी कहानी, एक भूखे आदमी के बारे में बताती है जो एक गाँव में आता है, लेकिन कोई भी उसके लिए थोड़ा सा भोजन भी नहीं देता है l वह एक बर्तन में पानी और एक पत्थर डालकर आग पर चढ़ा देता है l चकित होकर, गाँव वाले उसे देखते हैं जब वह अपने “सूप” को चलाना शुरू करता है l आखिरकार, मिश्रण में डालने के लिए एक दम्पति आलू लाते है; दूसरे के पास कुछ गाजर है l एक व्यक्ति एक प्याज़ डालता है, एक और व्यक्ति मुट्ठी भर जौ डालता है l एक किसान थोड़ा दूध दे देता है l आखिर में, “पत्थर का सूप” स्वादिष्ट सूप बन जाता है l 

यह कहानी साझा करने के महत्त्व को दर्शाती है, लेकिन यह हमें याद दिलाती है कि हमारे पास क्या है, तब भी जब यह महत्वहीन लगता है l युहन्ना 6:1-14 में हमें एक ऐसे लड़के के बारे में पढ़ते हैं, जो एक बड़ी भीड़ में अकेला व्यक्ति प्रतीत होता है, जिसने कुछ खाना लेकर आने के बारे में सोचा था l मसीह के शिष्यों के पास लड़के की पांच रोटियों और दो मछलियों के दोपहर के भोजन का बहुत कम उपयोग था l लेकिन जब यह समर्पित कर दिया गया, तो यीशु ने इसे बढ़ाया और हज़ारों भूखे लोगों को खिलाया!

मैंने एक बार किसी को यह कहते सुना, “आपको पांच हज़ार को नहीं खिलाना है l आपको बस अपनी रोटियाँ और मछलियां पहुंचानी हैं l” जिस तरह यीशु ने एक व्यक्ति के भोजन को लेकर उसे किसी की अपेक्षाओं या कल्पना से कहीं अधिक गुणित कर दिया (पद.11), वह हमारे समर्पित प्रयासों, गुणों, और सेवा को स्वीकार करेगा l वह केवल चाहता है कि जो हमारे पास है हम उसे उसके पास लाने के लिए इच्छुक हो l 

आत्मा के साथ चलना

10 हज़ार घंटे l लेखक मैल्कम ग्लैडवेल बताते हैं कि किसी भी शिल्प में निपूर्ण बनने के लिए इतना समय लगता है l यहाँ तक कि सभी समय के महानतम कलाकारों और संगीतकारों के लिए, उनकी जबरदस्त जन्मजात प्रतिभा विशेषज्ञता के स्तर को हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं थी जो वे अंततः प्राप्त करनेवाले थे l उन्हें हर एक दिन अपने शिल्प में तल्लीन होने की ज़रूरत थी l 

जैसा कि यह अजीब लग सकता है, हमें एक समान मानसिकता की ज़रूरत है जब यह पवित्र आत्मा की सामर्थ्य में जीना सीखना है l गलातियों में, पौलुस कलीसिया को परमेश्वर के लिए अलग होने के लिए प्रोत्साहित करता है l लेकिन पौलुस ने समझाया कि यह केवल नियमों के एक सेट का पालन करने से हासिल नहीं किया जा सकता है l इसके बजाय हमें पवित्र आत्मा के साथ चलने के लिए करता है l गलातियों 5:16 में पौलुस जिस यूनानी शब्द का उपयोग “चलने”  के लिए किया है, उसका शाब्दिक अर्थ है किसी चीज़ के इर्द-गिर्द घूमना या यात्रा करना(peripateo)  l इसलिए पौलुस के लिए, आत्मा के साथ चलना प्रत्येक दिन आत्मा के साथ यात्रा करना था – यह उसकी सामर्थ्य का सिर्फ एक बार का अनुभव नहीं है l 

हम प्रतिदिन आत्मा से भरे रहने के लिए प्रार्थना करें – आत्मा के कार्य के अधीन होने के लिए जब वह परामर्श, मार्गदर्शन, तसल्ली देता है, और मगज़ हमारे साथ रहता है l और जब हम “आत्मा के चलाए चलते” हैं (पद.18), हम उसकी आवाज़ सुनने और उसके मार्गदर्शन का अनुसरण करने में बेहतर और बेहतर जाते हैं l पवित्र आत्मा, मैं आज आपके साथ चल सकूं, और हर दिन!

समय की गति कम करना

1840 के दशक में इलेक्ट्रिक घड़ी का आविष्कार होने के बाद से बहुत कुछ बदल गया है l हम अब स्मार्ट घड़ियों, स्मार्ट फोन और लैपटॉप पर समय देखते हैं जीवन की सम्पूर्ण गति तेज़ प्रतीत होती है – यहाँ तक कि हमारे “”इत्मीनान” से चलने की गति भी तेज़ होती जा रही है l यह विशेष रूप से शहरों में सच है और विद्वानों का कहना है कि यह स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है l एक अमेरिकी प्रोफेसर कहते हैं, “हम केवल तेजी से और तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और जितनी जल्दी हो सके लोगों की ओर लौट रहे हैं l यह हमें सोचने को मजबूर कर रह है कि सब कुछ अभी होना चाहिए l”

बाइबल के भजनों का एक सबसे प्राचीन लेखक, मूसा, ने समय पर विचार किया l वह हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर जीवन के समय को नियंत्रित करता है l “क्योंकि हज़ार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं जैसा कल का दिन जो बीत गया, या जैसे रात का एक पहर” (भजन 90:4) l 

इसलिए, समय प्रबंधन का रहस्य अधिक तेज या धीमी गति से आगे बढ़ना नहीं है l यह परमेश्वर में निवास करना है, उसके साथ अधिक समय बिताना है l तब हम एक दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाते है, लेकिन पहले उसके साथ – जिसने हमें बनाया (139:13) और जो हमारे उद्देश्य और योजनाएं जानता है (पद.16) l 

पृथ्वी पर हमारा समय हमेशा के लिए कायम नहीं रहेगा l फिर भी हम इसे बुद्धिमानी से प्रबंधित कर सकते हैं, घड़ी देखकर नहीं, बल्कि हर दिन परमेश्वर को देकर l जिस प्रकार मूसा कहता है, “हम को अपने दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान बन जाएँ” (भजन 90:12) l तब, परमेश्वर के साथ हम हमेशा समय पर, अब और हमेशा के लिए रहेंगे l