कभी-कभी मुझे संदेह होता है कि मेरी बिल्ली टॉम FOMO (fear of missing out) लापता होने के डर की बुरी दशा से ग्रस्त है l जब मैं किराने का सामान लेकर घर आती हूँ, तो टॉम सामग्री का निरीक्षण करने के लिए दौड़ता है l जब मैं सब्जियां काट रही होती हूँ, तो वह अपने पिछले पैरों के बल खड़ा होकर सामग्री को ध्यान से देखते हुए मुझसे उसे साझा करने के लिए बिनती करता है l लेकिन जब मैं वास्तव में टॉम को उसकी पसंद की वस्तु पकड़ा देती हूँ, वह उसमें रूचि छोड़कर, ऊब की अप्रसन्नता के साथ चल देता है l 

लेकिन मेरे लिए अपने छोटे दोस्त पर कठोर होना पाखण्ड होगा l वह अधिक के लिए मेरी खुद की अतृप्त भूख को दर्शाता है, मेरी धारणा कि “अभी” कभी नहीं पर्याप्त है l 

पौलुस के अनुसार, संतोष स्वाभाविक नहीं है – यह सीखा जाता है (फिलिप्पियों 4:11) l अपने दम पर, हम अपने विचार से उसे पूरी तरह से आगे बढाते हैं, जिससे हम संतुष्ट होने का विचार रखते हैं, अगली बात पर बढ़ते हुए हम जान जाते हैं कि यह भी संतुष्ट नहीं करेगा l अन्य समयों पर, हमारा असंतोष चिंतावश किसी भी और सभी संदिग्ध खतरों से खुद को बचाने का रूप लेता है l 

व्यंगात्मक रूप से, कभी-कभी यह अनुभव से आता है कि लुढ़ककर असली ख़ुशी में जाने के लिए हम सबसे अधिक किससे डरते थे l सबसे बुरा अनुभव करने के बाद जो जीवन पेश करता है, पौलुस पहली बार सच्चे संतोष के “रहस्य” (पद.11-12) की गवाही दे सकता था – रहस्मय वास्तविकता कि जब हम पूर्णता की लालसा को परमेश्वर की ओर उठाते हैं, तो हम न समझाया जा सकने योग्य शांति का अनुभव करते हैं (पद.6-7), जो मसीह की सामर्थ्य, सुन्दरता और अनुग्रह की अथाह गहराई में ले जाता है l