प्रोफेसर ने चर्च में परमेश्वर के साथ अपनी पहली मुठभेड़ का वर्णन करने के बाद बोली, “मुझे ऐसा लगा कि मैंने एक जीवित (विद्युत्) तार को छू लिया है l” उसने सोचा, “इस जगह पर कुछ हो रहा है, मुझे पता नहीं यह क्या है?” वह उस क्षण को याद करती है जब अलौकिक की संभावना के लिए उसके पहले नास्तिक विश्वदृष्टि ने अनुमति दी थी l आख़िरकार वह पुनर्जीवित मसीह की रूपान्तरित करनेवाली वास्तविकता में विश्वास करनेवाली थी l 

एक जीवित तार को छूना – जिस दिन निश्चित रूप से पतरस, याकूब और युहन्ना को भी इसी तरह महसूस हुआ होगा जब यीशु उन्हें एक पहाड़ पर ले गया, जहाँ उन्होंने एक अद्भुत रूप-परिवर्तन देखा l मसीह का वस्त्र . . . उज्ज्वल” हो गया (मरकुस 9:3) और एलिय्याह और मूसा प्रगट हुए – एक घटना जिसे आज हम रूपांतरण के रूप में जानते हैं l 

पहाड़ से उतरते हुए, यीशु ने शिष्यों से कहा कि वे किसी को भी यह ने बताएँ कि उन्होंने क्या देखा है जब तक कि वह जी नहीं उठता है (पद.9) l लेकिन उन्हें यह भी पता नहीं था कि “जी उठने” का क्या अर्थ है?” (पद.10) l 

यीशु के विषय शिष्यों की समझदारी अधूरी थी, क्योंकि वे उस नियति की कल्पना नहीं कर सकते थे जिसमें उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान शामिल था l लेकिन अंततः उनके पुनारुथित प्रभु के साथ उनका अनुभव उनके जीवनों को पूरी तरह से बदलने वाला था l अपने जीवन के अंत में, पतरस ने मसीह के रूपांतरण के साथ अपने मुठभेड़ का वर्णन उस समय के रूप में किया जब शिष्य “उसके प्रताप को [देखने वाले] पहले प्रत्याक्ष्साक्षी थे”  (2 पतरस 1:16) l 

जैसा कि प्रोफ़ेसर और शिष्यों ने सीखा, जब हम यीशु की सामर्थ्य का सामना करते हैं तो हम “जीवित तार” को छूते हैं l यहाँ कुछ हो रहा है l जीवित मसीह हमें बुलाता है l