कई साल पहले, मेरी पत्नी को खरीदी गयी किसी चीज़ से थोड़ी छूट मिली थी l यह कुछ ऐसा नहीं था जिसकी उसने अपेक्षा की थी यह सिर्फ ई-मेल में दिखा था l लगभग उसी समय, एक अच्छे मित्र ने उसके साथ दूसरे देश में अपार आवश्यकताओं के साथमहिलाओं के विषय साझा किया, उद्यमी-दिमाग वाली महिलाएँ जो शिक्षा और व्यवसाय के माध्यम से बेहतर बनाने की कोशिश कर रहीं थीं l हालाँकि, जैसा कि अक्सर होता है, उनका पहला अवरोध वित्तीय था l 

मेरी पत्नी ने उस छूट को लिया और इन महिलाओं की मदद के लिए समर्पित सेवा को एक लघु-ऋण दिया l ऋण के चुका देने के बाद, उसने फिर से बार-बार ऋण दिया, और अब तक इस तरह के सत्ताईस निवेश कर चुकी है l मेरी पत्नी कई चीजों का आनंद लेती है, परन्तुउन महिलाओं के जीवनों में जिनसे उसकी मुलाकात कभी नहीं हुयी है, खुशहाली के विषय अपडेट प्राप्त करने जैसी मुस्कराहट शायद ही उसके चेहरे पे दिखाई देती है l 

हमें अक्सर इस वाक्याँश के अंतिम शब्दों पर जोर दिया जाना सुनाई देता है – “परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम करता है” (2 कुरिन्थियों 9:7) – और सही भी है l लेकिन हमारे देने के बारे में एक विशिष्ट गुण है – यह “अनिच्छा से या मज़बूरी के तहत” नहीं किया जाना चाहिए, और हमें “किफ़ायत” से बोने के लिए नहीं बुलाया गया है (पद.6-7) l एक शब्द में, हमारा देना “हर्ष से” होना चाहिए l और जबकि हम में से प्रत्येक थोड़ा अलग तरीके से देगा, हमारे चेहरे हमारे हर्ष के सबूत बताने के स्थान हैं l