मैं बहुत परेशान था और रात में जाग कर आगे-पीछे चलते हुए प्रार्थना करने लगा lसच में कहूँ, तो मेरा रवैया परमेश्वर के प्रति प्रार्थनापूर्ण समर्पण का नहीं था, बल्कि सवाल और गुस्से का था lकोई आराम नहीं मिलने पर, मैं बैठ गया और एक बड़ी खिड़की के बाहर रात के आकाश को घूरने लगा lमेरा ध्यान अप्रत्याशित रूप से तारों पर केन्द्रित हो गया – वे तीन तारे जो पूरी तरह से व्यवस्थित हैं और जो अक्सर स्पष्ट रातों में दिखाई देते हैं l मैं खगोल विज्ञान सेबस इतना समझ सकता था कि वे तीन तारे एक दूसरे से सैंकड़ों प्रकाश वर्ष(light years)दूर हैं l

मुझे अहसास हुआ कि मैं उन तारों के जितना करीब जाऊँगा, वे उतना ही कम पंक्तिबद्ध दिखाई देंगे l फिर भी मेरे दूर के दृष्टिकोण से, वे आकाश में सावधानी से पंक्तिबद्ध दिखायी देते थेl उस पल, मुझे अहसास हुआ कि मैं यह देखने के लिए अपने जीवन के बहुत करीब था कि परमेश्वर क्या देखता है l उसकी बड़ी तस्वीर में, सब कुछ सही पंक्ति में है l

प्रेरित पौलुस, जब परमेश्वर के अंतिम उद्देश्यों का सारांश पूरा करता है, उसके अन्दर से प्रशंसा का एक भजन फूटता है (रोमियों 11:33-36) l उसके शब्द हमारे परम परमेश्वर के की ओर हमारी निगाहें उठाते हैं, जिनके तरीके समझने या खोजने की हमारी सीमितक्षमतासे परे हैं (पद.33) l फिर भी जो आकाश में और पृथ्वी पर सभी चीजों को एक साथ थामता है, वह हमारे जीवन के प्रत्येक विवरण के साथ बहुत निकट से और प्रेमपूर्वक शामिल है (मत्ती 5:25-34; कुलुस्सियों 1:16) l

जब चीजें भ्रामक लगें, परमेश्वर की दिव्य योजनाएं हमारी भलाई और परमेश्वर के आदर और महिमा के लिए खुलती है l