यरूशलेम में एक डाक घर में हर दिन, कार्यकर्ता अवितरणीय चिट्ठियों के ढेर को इस प्रयास में छांटते हैं कि वे प्राप्तकर्ता तक पहुँच जाएं l उनमें से कई चिट्ठियाँ विशेष रूप से चिन्हित एक डिब्बा “परमेश्वर को भेजी गयी” में पहुँच जाती हैं l 

हर साल लगभग एक हज़ार ऐसे पत्र यरूशलेम पहुँचते हैं, जो बस परमेश्वर या यीशु को संबोधित होता है l उनके साथ क्या करना है, इससे हैरान होकर, एक कार्यकर्ता यरूशलेम की पश्चिमी दीवार तक पत्र ले जाने लगा ताकि उन्हें अन्य पत्रों के साथ पत्थर के खण्डों के बीच रख दे l अधिकांश पत्र नौकरी, जीवनसाथी या अच्छे स्वस्थ्य की मांग करते हैं l कुछ लोग क्षमा का अनुरोध करते हैं, अन्य केवल धन्यवाद देते हैं l एक व्यक्ति ने परमेश्वर से पुछा की क्या उसकी मृत पत्नी उसके सपनों में दिखाई दे सकती है क्योंकि वह उसे फिर से देखने के लिए तरस रहा है l प्रत्येक प्रेषक का मानना था कि परमेश्वर सुनेंगे, यदि केवल परमेश्वर तक पहुंचा जा सकता है l 

इस्राएलियों ने जंगल में यात्रा करते हुए बहुत कुछ सीखा l एक सबक यह था कि उनका परमेश्वर उस समय ज्ञात अन्य देवताओं की तरह नहीं था – जो दूर, बहरे, भौगोलिक रूप से सीमित हों, केवल लम्बी तीर्थयात्रा या अंतर्राष्ट्रीय मेल द्वारा पहुँच में हों l जब भी हम उससे प्रार्थना करते हैं, तो “हमारा परमेश्वर यहोवा,  . . . [हमारे समीप रहता है] (व्यवस्थाविवरण 4:7) l अन्य लोग क्या दावा कर सकते थे? यह क्रन्तिकारी समाचार था!

परमेश्वर यरूशलेम में निवास नहीं करता है l वह हमारे बहुत निकट है, हम जहां भी हैं l कुछ लोगों को अभी भी इस मौलिक सच्चाई को जानना है l काश उनमें से हर एक पत्र का जवाब दिया जा सकता : परमेश्वर आपके बिलकुल निकट है l तुरंत उससे बातें करें l