मेरा पोता मनोरंजन पार्क में रोलर कोस्टर(टेढ़ा-मेढ़ा घुमावदार रेल-पथ) लाइन के निकट गया और ऊँचाई-अनिवार्यता संकेत से अपनी पीठ सटा कर यह देखने के लिए खड़ा हो गया कि क्या वह सवारी करने के लिए बड़ा है या नहीं l जब उसका सिर निशान से अधिक हो गया वह ख़ुशी से चीख उठा l

जीवन का बहुत कुछ काफी “बड़ा” होने के विषय है, है कि नहीं? एक चालाक की परीक्षा देना l मतदान करना l विवाह करना l मेरे पोते की तरह, हम अपने जीवन को बड़े होने के लिए तरसते हैं l

नए नियम के समय में, बच्चों को प्यार किया जाता था, लेकिन समाज में तब तक बहुत महत्व नहीं दिया गया जब तक कि वे “एक ख़ास उम्र के” नहीं हो जाते थे और घर में योगदान कर सकते थे और व्यस्क विशेषाधिकारों के साथ आराधनालय में प्रवेश कर सकते थे l यीशु ने दरिद्रों, रोगियों और यहाँ तक कि बच्चों का स्वागत करके अपने दिन के मानकों को तोड़ दिया l तीन सुसमाचार (मत्ती, मरकुस, और लूका) माता-पिता को छोटे बच्चों को यीशु के पास लाने के लिए कहते हैं ताकि वह उन पर हाथ रखे और उनके लिए प्रार्थना करें (मत्ती 19:13; मरकुस 10:16) l

व्यस्क जिसको असुविधा के रूप में देख रहे थे शिष्यों ने उसके लिए उनको फटकार लगाई l इस पर, यीशु “क्रोधित”  हुआ (मरकुस 10:14) और उसने अपनी बाँहों को छोटे बच्चों के लिए खोल दिया l उसने अपने राज्य में उनका मान बढ़ाया और सभी को बच्चों की तरह बनने की चुनौती दी – उनकी भेद्यता/कोमलता को अपनाने और उसे जानने के लिए उनकी आवश्यकता (लूका 18:17)। यह हमारी बच्चों की सी जरूरत है जो हमें उसके प्रेम को प्राप्त करने के लिए “बड़ा” बनाती है l