फसल तक विश्वासयोग्य
एक स्त्री को मैं जानता हूँ जिसने एक स्थानीय पार्क में एक कार्यक्रम आयोजित की और पड़ोस के बच्चों को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया l वह अपने पड़ोसियों के साथ अपने विश्वास को साझा करने के अवसर के विषय उत्तेजित थी l
उसने अपने तीन नाती-पोते और दो हाई स्कूल विद्यार्थियों को उसकी सहायता करने के लिए तैयार किया, उन्हें काम दिया, कई खेल और दूसरी गतिविधियों की योजना बनायी, भोजन तैयार किया, बच्चों को बताने के लिए यीशु के विषय बाइबल की एक कहानी तैयार की, और उनके इकट्ठे होने का इंतज़ार किया l
पहले दिन एक भी बच्चा नहीं आया l या दूसरे दिन l या तीसरे दिन l फिर भी, हर दिन मेरे मित्र ने अपने नाती-पोते और सहयोगियों के साथ उस दिन की गतिविधियों को पूरा किया l
चौथे दिन, उसने एक परिवार को निकट ही पिकनिक मानते देखा और बच्चों को खेल में भाग लेने के लिए आमंत्रित की l एक छोटी लड़की आई, आनंद में भाग ली, उनके साथ भोजन की, और यीशु के विषय कहानी सुनी l शायद अभी से सालों बाद वह उसे याद करेगी l किसे मालुम है कि परिणाम क्या होगा? परमेश्वर, गलतियों की किताब से, हमें उत्साहित करता है, “हम भले काम करने में साहस न छोड़े, क्योंकि यदि हम ढीले न हों तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे l इसलिए जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करे” (6:9-10) l
संख्या अथवा सफलता के दृश्य मानकों की चिंता न करें l हमारा काम है कि वह हमें जो काम देता है उसके प्रति विश्वासयोग्य रहें और फिर परिणाम उस पर छोड़ दें l परमेश्वर परिणाम निर्धारित करता है l
निराशाजनक स्थानों में उज्जवल पुंजदीप
जब मेरे पति और मैं कर्नाटक राज्य के एक छोटे, बीहड़ स्थान की खोज कर रहे थे, तो मैंने एक चट्टानी, सूखी जगह पर एक सूरजमुखी का पौधा देखा, जहाँ काँटेदार नागफनी(cactus) और अन्य खरपतवार उगे हुए थे l यह घरेलू सूरजमुखी जितना लंबा तो नहीं था, लेकिन वह उतना ही उज्ज्वल था - और मुझे खुशी महसूस हुई l
इस उबड़-खाबड़ स्थान में यह अप्रत्याशित उज्ज्वल स्थान मुझे याद दिलाता है कि कैसे यीशु में विश्वासियों के लिए भी, जीवन, बंजर और निराश लग सकता है l मुसीबतें अजेय लग सकती हैं, और भजनकार दाऊद के रोने की तरह, हमारी प्रार्थनाएँ कभी-कभी अनसुनी सी महसूस होती हैं : “हे यहोवा, कान लगाकर मेरी सुन ले, क्योंकि मैं दिन और दरिद्र हूँ” (भजन संहिता 86: 1) l उसकी तरह, हम भी आनंद के लिए लालायित होते हैं (पद.4) l
लेकिन दाऊद आगे बढ़ते हुए घोषित करता हैं कि हम एक विश्वासयोग्य (पद.11), “दयालु और अनुग्रहकारी परमेश्वर” (पद.15), की सेवा करते हैं (पद.15), जो उन्हें जो उसे “पुकारते हैं उन सभों के लिए . . . अति करुनामय है” (पद.5) l वह निश्चय उत्तर देता है (पद.7) l
कभी-कभी उजाड़ स्थानों में, परमेश्वर एक सूरजमुखी भेजता है - एक उत्साहजनक शब्द या एक मित्र की ओर से एक पत्र; एक आरामदायक पद या बाइबल सन्देश; एक सुन्दर सूर्योदय – जो हमें आशा के साथ एक हलके कदम से आगे बढ़ने में मदद करता है l यहां तक कि जब हम उस दिन का इंतज़ार करते हैं, जब हम अपनी कठिनाई से परमेश्वर के छुटकारा का अनुभव करेंगे, हम भजनकार के साथ घोषणा करने में शामिल हों, “ तू महान् और आश्चर्यकर्म करनेवाला है, केवल तू ही परमेश्वर है” (पद.10) l
परमेश्वर के साथ कार्य करना
अपनी 1962 की मैक्सिको यात्रा के दौरान, बिल ऐश ने एक अनाथालय में पवनचक्की हैंड पंप(windmill hand pump) को ठीक करने में मदद की l पंद्रह साल बाद, जरूरतमंद गांवों को साफ पानी उपलब्ध कराने में मदद करके ईश्वर की सेवा करने की गहरी इच्छा से प्रेरित होकर बिल ने एक गैर-लाभकारी संगठन की स्थापना की l उन्होंने कहा, गाँव के गरीबों के लिए सुरक्षित पेयजल लाने की इच्छा वाले दूसरों को खोजने के लिए “परमेश्वर ने मुझे ‘समय का अधिकतम लाभ उठाने के लिए’ जगाया l” बाद में, 100 से अधिक देशों के हजारों पास्टर और सुसमाचार प्रचारकों के अनुरोध के माध्यम से सुरक्षित पानी की वैश्विक आवश्यकता के बारे में जानने के बाद, बिल ने दूसरों को सेवा के प्रयासों में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया l
परमेश्वर हमें विभिन्न तरीकों से उसके और दूसरों के साथ सेवा करने के लिए स्वागत करता है l जब कुरिन्थुस के लोगों ने तर्क दिया कि वे किन शिक्षकों को पसंद करते हैं, तो प्रेरित पौलुस ने यीशु के सेवक और अपुल्लोस, के एक सहयोगी के रूप में अपनी भूमिका की पुष्टि की, जो आध्यात्मिक विकास के लिए पूरी तरह से परमेश्वर पर निर्भर था (1 कुरिन्थियों 3: 1-7) l वह हमें याद दिलाता है कि सभी कार्यों में ईश्वर प्रदत्त मूल्य है (पद. 8) l उसकी सेवा करते हुए दूसरों के साथ काम करने के विशेषाधिकार को स्वीकार करते हुए, पौलुस हमें एक दूसरे का निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करता है जब वह हमें प्यार में बदलता है (पद.9) l
यद्यपि हमारे पराक्रमी पिता को अपने महान कार्यों को पूरा करने के लिए हमारी सहायता की आवश्यकता नहीं है, फिर भी वह हमें समर्थ करता है और अपने साथ साझेदारी करने के लिए आमंत्रित करता है l
केवल भरोसा
तीन सौ बच्चों को कपड़े पहनाए गए और नाश्ते के लिए बैठाया गया और नाश्ता के लिए धन्यवाद की प्रार्थना की गई l लेकिन भोजन नहीं था! अनाथालय के निदेशक और मिशनरी जॉर्ज म्युलर (1805-1898) के लिए इस तरह की स्थिति असामान्य नहीं थी l यहाँ यह देखने का एक और अवसर था कि परमेश्वर कैसे प्रदान करेगा l म्युलर की प्रार्थना के कुछ ही मिनटों बाद, एक डबल रोटी बनाने वाला(baker) जो पिछली रात को सो न सका था दरवाजे पर दिखाई दिया l यह देखते हुए कि अनाथालय रोटी का उपयोग कर सकता है, उसने डबल रोटी के तीन खेप बनाए थे l थोड़ी ही देर में, शहर का दूधवाला(town milkman) दिखाई दिया l अनाथालय के सामने उसकी गाड़ी खराब हो गई थी l दूध को खराब होने से बचाने के लिए, उसने इसे म्युलर को दे दिया l
चिंता, धबराहट, और आत्म-तरस के समयों का अनुभव करना स्वाभाविक है जब हमारे सुख/स्वास्थ्य के लिए आवश्यक संसाधनों - भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य, वित्त/पैसा, मित्रता - की कमी होती है l 1 राजा 17:8-16 हमें याद दिलाता है कि एक ज़रुरात्मन्द विधवा के अनापेक्षित श्रोतों द्वारा परमेश्वर की मदद पहुँच सकती है l “मेरे पास एक भी रोटी नहीं है केवल घड़े में मुट्ठी भर मैदा और कुप्पी में थोड़ा सा तेल है” (पद.12) l इससे पहले एक कौवा था जिसने एलिय्याह के लिए प्रबंध किया था (पद.4-6) l हमारी जरूरतों को पूरा करने की चिंता हमें कई दिशाओं में ढूँढने के लिए भेज सकती है l प्रबंध करनेवाले के रूप में परमेश्वर की स्पष्ट दृष्टि जिसने हमारी जरूरतों को पूरा करने का वादा किया है मुक्तिदायक हो सकता है l इससे पहले कि हम समाधान की तलाश करें, क्या हम पहले उसकी तलाश करने में सावधान हो सकते हैं l ऐसा करने से हमारा समय, ऊर्जा और निराशा बच सकती है l