Month: अगस्त 2020

एक महान कार्य

सुरक्षा गार्ड ने टेप का एक टुकड़ा देखकर उसे हटा दिया जो एक दरवाजे को बंद होने से रोक रहा था l बाद में, जब उसने दरवाजे को जांचा,  तो पाया कि इसमें फिर से टेप लगा दिया गया था l उसने पुलिस को फोन किया, जिन्होंने पांच चोरों को गिरफ्तार किया l

वाशिंगटन डी.सी. अमेरिका में, एक प्रमुख राजनीतिक दल के मुख्यालय, वाटरगेट भवन में काम करते हुए, युवा गार्ड ने केवल अपनी नौकरी को गंभीरता से लेते हुए और उसे अच्छी तरह से करते हुए अपने जीवन के सबसे बड़े राजनीतिक घोटाले को उजागर किया था l

नहेम्याह ने यरूशलेम के चारों ओर की दीवार को फिर से बनाना शुरू किया — एक ऐसा काम जिसे उसने बहुत गंभीरता से लिया l प्रोजेक्ट के अंत में, पड़ोसी प्रतिद्वंद्वियों ने उससे पास के एक गाँव में मिलने के लिए कहा l एक दोस्ताना निमंत्रण की आड़ में एक घातक जाल था (नहेम्याह 6: 1-2) l फिर भी नहेम्याह की प्रतिक्रिया से उसके दृढ़ विश्वास की गहराई का पता चलता है : “मैं तो भारी काम में लगा हूँ, वहां नहीं जा सकता; मेरे इस छोड़कर तुम्हारे पास जाने से वह काम क्यों बंद रहे?’ (पद.3) l

हालाँकि वह निश्चित रूप से कुछ अधिकार रखता था, लेकिन नहेम्याह ने नायक के पैमाने पर बहुत ऊंचे श्रेणी में नहीं होगा l वह एक महान योद्धा नहीं था,  कवि या नबी नहीं था,  राजा या ज्ञानी नहीं था l वह एक पियाऊ/साकी(cup-bearer) था जो ठेकेदार बन गया था l फिर भी वह मानता था कि वह परमेश्वर के लिए कुछ महत्वपूर्ण कर रहा है l काश हम उसे गंभीरता से लें जो उसने हमें उसकी शक्ति और प्रावधान में करने के लिए दिया है l

उद्देश्य पर जीना

“हम छुट्टी पर जा रहे हैं!” मेरी पत्नी ने उत्साह से हमारे तीन वर्षीय पोते अजय को बताया जब हम अपनी यात्रा के पहले चरण में घर से निकले l छोटे अजय ने उन्हें विचारमग्न ढंग से देखकर कर जवाब दिया, “मैं छुट्टी पर नहीं जा रहा हूँ। मैं एक मिशन पर जा रहा हूँ!”

हमें यकीन नहीं है कि हमारे पोते ने "एक मिशन पर" जाने की अवधारणा को कहां प्राप्त किया,  लेकिन उसकी टिप्पणी ने मुझे विचारने के लिए कुछ दिया, जब हम हवाई अड्डे पर गए : जब मैं इस छुट्टी पर जा रहा हूँ और कुछ दिनों के लिए अवकाश लेता हूँ,  क्या मैं इस बात को ध्यान में रख रहा हूँ कि मैं अभी भी “मिशन पर हूँ” और प्रत्येक क्षण परमेश्वर के साथ और उसके लिए जी सकूँ?  क्या मुझे अपने हर काम में उसकी सेवा करना याद है?

प्रेरित पौलुस ने रोमी साम्राज्य की राजधानी रोम में रहने वाले विश्वासियों को “आशा में आनंदित; क्लेश में स्थिर; प्रार्थना में नित्य” (रोमियों 12:11) लगे रहने के लिए उत्साहित किया l उसका कहना था कि यीशु में हमें अपना जीवन उद्देश्य और उत्साह के साथ जीना है l यहां तक ​​कि सबसे नीरस क्षण नए अर्थ प्राप्त करते हैं जब हम परमेश्वर की ओर आशा से देखते हैं और उसके उद्देश्यों के लिए जीते हैं l

जब हम ट्रेन में अपने-अपने सीटों पर बैठ गए, मैंने प्रार्थना की, “प्रभु, मैं आपका हूँ l इस सैर में जो कुछ आप मेरे लिए रखे हैं, मुझे उसे याद रखने में मदद करें l”

हर दिन उसके साथ एक अनंत महत्वपूर्ण मिशन है!

परमेश्वर द्वारा नामित

नटखट l मीठी l मोटे l ये कुछ 'उपनाम' हैं जिन्हें हम अपने बच्चों को देते हैं l इन नामों में से अधिकांश उनके चरित्र, उनकी शारीरिक रूप का वर्णन करने के लिए बनाए गए हैं, या वे प्रीतिकर होने के लिए होते हैं l

उपनाम केवल बच्चों तक ही सीमित नहीं हैं - हम उन्हें बाइबिल में भी इस्तेमाल होते हुए पाते हैं l उदाहरण के लिए, यीशु ने प्रेरित याकूब और यूहन्ना को "गर्जन के पुत्र" कहा (मरकुस 3:17) l किसी के द्वारा खुद को उपनाम देना पवित्रशास्त्र में दुर्लभ है, फिर भी ऐसा तब होता है जब नाओमी नाम की एक महिला लोगों से उसे "मारा" पुकारने को कहती है, जिसका अर्थ है "कड़वाहट" (रूत 1:20), क्योंकि उसके पति और दो बेटों की मृत्यु हो गई थी l उसने महसूस किया कि ईश्वर ने उसके जीवन को कड़वा बना दिया है (पद. 21) l

खुद को दिया गया नया नाम नाओमी उसके साथ न रह सका,  हालांकि, वे विनाशकारी नुकसान उसकी कहानी का अंत नहीं थे l उसके दुःख के बीच में, परमेश्वर ने उसे रूत के रूप में, एक युवा बहु से आशीषित किया था,  जिसने अंततः पुनर्विवाह किया और एक पुत्र को जन्म दिया, जिससे नाओमी को फिर से एक परिवार मिला l

यद्यपि उन कठिनाइयों के आधार पर जिन्हें हमने अनुभव किये हैं या जो गलतियाँ हमने की हैं, हम  कभी-कभी अपने आप को “असफल” या “अप्रिय” जैसे कड़वे उपनाम देने के लिए लुभाए जा सकते हैं,  वे नाम हमारी कहानियों का अंत नहीं है l हम उन उपनामों के स्थान पर हमें परमेश्वर द्वारा दिया गया नाम, “प्रिया” दे सकते हैं (रोमियों 9:25), और उन तरीकों की तलाश कर सकते हैं , जिसके द्वारा वह हमारे लिए सबसे चुनौतीपूर्ण समय में भी प्रबंध करता है l

बुलबुले में रहना

मुझे यकीन है कि हम में से कई बच्चे खेलते समय साबुन के "बुलबुले" उड़ा चुके हैं l  इन बड़े और छोटे अर्धपारदर्शी पोलकों को चमकते हुए हवा में तैरते देखना एक परम आनंद है l ये मंत्रमुग्ध करने वाले "बुलबुले" केवल सुंदर नहीं हैं, लेकिन वे हमें जीवन के बारे में याद दिलाते हैं जो एक छोटी सी अनिश्चितता है l

हम कई बार महसूस कर सकते हैं कि हम "बुलबुले" में रह रहे हैं, अनिश्चित है कि हमारे पास जीवन की दौड़ में प्रतिस्पर्धा करने या खत्म करने के लिए क्या है l जब हम ऐसा महसूस कर रहे होते हैं, तो यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यीशु में हम अपनी नियति के विषय अनिश्चित नहीं हैं l परमेश्वर के बच्चों के रूप में,  उसके राज्य में हमारा स्थान सुरक्षित है (यूहन्ना 14: 3) l हमारा विश्वास उसी से निकलता है जिसने यीशु को "आधारशिला" चुना है, जिस पर हमारा  जीवन निर्मित है, और उसने हमें "जीवित पत्थर" होने के लिए चुना जो परमेश्वर की आत्मा से भरा हुआ है,  ऐसे लोग बनने में सक्षम जैसे परमेश्वर की इच्छा थी (1 पतरस 2:5-6) l

मसीह में, हमारा भविष्य सुरक्षित है जब हम उसमें आशा रखते हैं और उसका अनुसरण करते हैं (पद.6) l क्योंकि “[हम] एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्वर की) निज प्रजा [हैं], इसलिए कि जिसने [हमें] अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट [करें[“ (पद.9) l

यीशु के निगाहों में हम “बुलबुले पर” नहीं हैं l हम “चुना हुआ और बहुमूल्य” हैं (पद.4) l