पचास से अधिक वर्षों तक, मेरे पिताजी ने अपने संपादन में उत्कृष्टता के लिए प्रयास किया l उनका जुनून केवल गलतियों की तलाश करना नहीं था, बल्कि प्रतिलिपि को स्पष्टता, तर्क, प्रवाह, और व्याकरण के संदर्भ में बेहतर बनाना था l पिताजी ने अपने सुधारों के लिए बजाय एक लाल के, हरे रंग के कलम का इस्तेमाल किया । हरे रंग का कलम जो उन्हें “मित्रवत” लगा, जबकि लाल रंग के काट(slash) एक नौसिखिया या कम आत्मविश्वास वाले लेखक के लिए अप्रिय हो सकते हैं l उनका उद्देश्य धीरे-धीरे एक बेहतर तरीका बताना था l
जब यीशु ने लोगों को सुधारा, तो उसने प्यार में ऐसा किया l कुछ परिस्थितियों में – जैसे कि जब वह फरीसियों के पाखंड का सामना कर रहा था (मत्ती 23)—उसने उन्हें कठोरता से डांटा, फिर भी उनके लाभ के लिए l लेकिन अपने मित्र मार्था के मामले में, केवल एक सौम्य सुधार की ज़रूरत थी (लूका 10:38–42) l जबकि फरीसियों ने उनकी फटकार का असंतोषजनक रूप से प्रत्युत्तर दिया, मार्था सबसे प्यारे मित्रों में से एक बनी रही (यूहन्ना 11:5) l
सुधार असहज हो सकता है और हम में से कुछ ही इसे पसंद करते हैं l कभी-कभी, हमारे अभिमान के कारण, इसे शालीनता से ग्रहण करना कठिन होता है l नीतिवचन की पुस्तक बुद्धि के बारे में बहुत बात करती है और संकेत करती है कि “सुधार पर मन लगाना” बुद्धि और समझ का प्रतीक है (15:31–32) l
परमेश्वर का प्रेमपूर्ण सुधार हमें अपनी दिशा को समायोजित करने और अधिक निकटता से उसका अनुसरण करने में मदद करता है l जो लोग इसका इनकार करते हैं उन्हें कड़ी चेतावनी दी जाती है (पद.10), लेकिन जो लोग पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा इसका प्रत्युत्तर देते हैं वे बुद्धि और समझ प्राप्त करेंगे (पद.31-32) l