छोटे से छोटे की सेवा
उसका नाम स्पेंसर है l लेकिन हर कोई उसे “स्पेंस” पुकारता है l वह हाई स्कूल में स्टेट ट्रैक चैंपियन था; फिर वह एक पूर्ण शैक्षणिक छात्रवृत्ति पर एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ने चला गया l वह अब अमेरिका के सबसे बड़े शहरों में से एक में रहता है और रासायनिक इंजीनीयरिंग(chemical engineering) के क्षेत्र में बहुत सम्मानित है l लेकिन अगर आप स्पेंस से उसकी सबसे बड़ी उपलब्धियों के बारे में पूछते, तो वह उन चीजों में से किसी का भी उल्लेख नहीं करता l वह उत्साहपूर्वक उन यात्राओं के बारे में जो वह हर कुछ महीनों में एक जरूरतमंद राष्ट्र का करता है आपको बताता जो वह उस देश के सबसे गरीब क्षेत्रों में उसकी सहायता से स्थापित किए गए ट्यूशन कार्यक्रम में बच्चों और शिक्षकों की जांच कर सके l और वह आपको बताएगा है कि उनकी सेवा करके उसका जीवन कितना समृद्ध हुआ है l
“इनमें से छोटा से छोटा l” यह एक वाक्यांश है जिसे लोग कई तरह से उपयोग करते हैं, फिर भी यीशु ने इसका उपयोग उन लोगों के विषय में बताने के लिए किया है, जिनके पास संसार के मानकों के अनुसार, हमारी सेवा के बदले में हमें देने के लिए बहुत कम या कुछ भी नहीं है l वे पुरुष और महिलाएं और बच्चे हैं जिन्हें संसार अक्सर अनदेखा कर देता है─यदि उन्हें पूरी तरह से भूल न भी जाए l फिर भी ये बिलकुल वही लोग हैं जिन्हें यीशु यह कहते हुए इस खूबसूरत स्तर तक उठाता है, “तुमने जो [इनके लिए] किया, वह मेरे ही लिए किया” (मत्ती 25:40) l मसीह के अर्थ को समझने के लिए आपके पास एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से कोई डिग्री नहीं होनी चाहिए : “छोटे से छोटे” की सेवा करना उसकी सेवा करने के बराबर है l इसमें केवल एक इच्छुक हृदय की ज़रूरत होती है l
अपूर्ण योजनाएँ
मैं एक नए सामुदायिक केंद्र के निचले तल पर एक पुस्तकालय में घूम रहा था जब एक ऊपरी धमाका ने अचानक कमरे को हिला दिया l कुछ मिनट बाद यह फिर से हुआ, और फिर l एक क्षुब्ध लाइब्रेरियन ने आखिरकार बताया कि एक वेट-लिफ्टिंग क्षेत्र सीधे पुस्तकालय के ऊपर स्थित किया गया था, और हर बार यह आवाज़ होती थी जब कोई वजन गिराता है l वास्तुविद् (architect) और अभिकल्पकों (designer) ने इस अत्याधुनिक सुविधा के कई पहलुओं की सावधानीपूर्वक योजना बनाई थी, फिर भी कोई लाइब्रेरी को इन सभी क्रिया से दूर स्थापित करना भूल गया था l
जीवन में भी, हमारी योजनाएँ अक्सर दोषपूर्ण होती हैं l हम महत्वपूर्ण विचारों की अनदेखी करते हैं l हमारी योजनाएं हमेशा दुर्घटनाओं या आश्चर्यों का कारण नहीं होती हैं l यद्यपि योजना बनाने से हमें वित्तीय घाटा, समय की कमी, और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचने में मदद मिलती है, यहां तक कि सबसे गहन रणनीति भी हमारे जीवनों से सभी समस्याओं को समाप्त नहीं कर सकती हैं l हम अदन के बाद वाले संसार में रहते हैं l
परमेश्वर की मदद से, हम भविष्य के बारे में विवेकपूर्ण रूप से विचार करते हुए संतुलन पा सकते हैं (नीतिवचन 6:6–8) और कठिनाइयों का जवाब दे सकते हैं l परमेश्वर अक्सर हमारे जीवन में अनुमत परेशानी के लिए एक उद्देश्य रखता है l वह इसका उपयोग हममें धैर्य विकसित करने के लिए, हमारे विश्वास को बढ़ाने के लिए, या केवल हमें उसके करीब लाने के लिए कर सकता है l बाइबल हमें याद दिलाती है, “मनुष्य के मन में बहुत सी कल्पनाएँ होती हैं, परन्तु जो युक्ति यहोवा करता है, वही स्थिर रहती है” (नीतिवचन 19:21) l जब हम भविष्य के लिए अपने लक्ष्य और उम्मीदें यीशु को सौंप देते हैं, तो वह हमें वह दिखाएगा कि वह हममें और हमारे द्वारा क्या पूरा करना चाहता है l
प्रशंसा में आनंद की प्राप्ति
जब प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक सी.एस. लुईस ने पहली बार यीशु को अपना जीवन दिया, तो उन्होंने शुरू में परमेश्वर की प्रशंसा करने का विरोध किया l वास्तव में, उन्होंने इसे “एक बाधा” कहा l उनका संघर्ष “उस सुझाव में था कि यह स्वयं परमेश्वर की मांग थी l” लुईस ने आखिर में महसूस किया कि “यह आराधना की जाने की प्रक्रिया में है कि परमेश्वर” अपने लोगों तक “अपनी उपस्थिति का संचार करता है l” उसके बाद हम, “परमेश्वर के साथ पूर्ण प्रेम में, वह चमक जो आइना बिखेरता है” से “जो आइना प्राप्त करता है उस चमक से अधिक” उसमें वह आनंद पाते हैं जो अलग नहीं किया जा सकता है l
नबी हबक्कूक सदियों पहले इस निष्कर्ष पर पहुंचा था l बुराई के विषय जो यहूदा के लोगों पर लक्षित थे परमेश्वर से शिकायत करने के बाद, हबक्कूक ने देखा कि उसकी प्रशंसा करने से आनंद मिलता है─परमेश्वर जो करता है उसमें नहीं, लेकिन इसमें कि वह कौन है l इस प्रकार, एक राष्ट्रीय या विश्व संकट में भी, परमेश्वर फिर भी महान है l जैसा कि नबी ने घोषणा की :
“क्योंकि चाहे अंजीर के वृक्षों में फूल न लगें, और न दाखलताओं में फल लगें, जलपाई के वृक्ष से केवल धोखा पाया जाए और खेतों में अन्न न उपजे, भेड़शालाओं में भेड़-बकरियाँ न रहें, और न थानों में गाय बैल हों, तौभी मैं यहोवा के कारण आनंदित और मगन रहूँगा” (हबक्कूक 3:17-18) l उसने आगे कहा, “और अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर के द्वारा अति प्रसन्न रहूँगा l”
जैसा कि सी.एस. लुईस ने महसूस किया, "पूरी दुनियाँ प्रशंसा से गूंजती है l” इसी तरह हबक्कूक ने हमेशा परमेश्वर की स्तुति करने हेतु आत्मसमर्पण कर दिया, उसमें भरपूर आनंद प्राप्त किया जिसकी “गति अनंत काल से एक सी है l”
अस्वीकृत के लिए आश्रय
जॉर्ज व्हाइटफ़ील्ड (1714–1770) इतिहास के सबसे प्रतिभाशाली और प्रभावी प्रचारकों में से एक थे, जिन्होंने हजारों को यीशु में विश्वास करने में अगुवाई की l लेकिन उनका जीवन विवाद से परे नहीं था l घर के बाहर प्रचार करने की उनकी पद्धति (बड़ी भीड़ को समायोजित करने के लिए) की कभी-कभी उन लोगों द्वारा आलोचना की जाती थी जिन्होंने उनके उद्देश्यों पर सवाल उठाए और उन्हें लगा कि उन्हें चर्च की इमारत की चार दीवारों के भीतर ही प्रचार करना चाहिए l व्हाइटफील्ड के समाधी-लेख(epitaph) दूसरों के कठोर शब्दों के जवाब पर प्रकाश डालते हैं : “मैं अपने चरित्र को साफ़ करने के लिए न्याय के दिन तक प्रतीक्षा करने में संतुष्ट हूँ; और मेरी मृत्यु के बाद, मैं इसके अलावा और कोई समाधी-लेख की इच्छा नहीं करता हूँ, जॉर्ज व्हाइटफ़ील्ड यहाँ दफन है─वह किस तरह का आदमी था, वह महान दिन बताएगा l’ ”
पुराने नियम में, जब दाऊद को दूसरों की कठोर आलोचना का सामना करना पड़ा, तो उसने भी खुद को परमेश्वर को सौंप दिया l जब शाऊल ने दाऊद पर बगावत का झूठा आरोप लगाया तो उसे मजबूरन समीप आनेवाली शाऊल की सेना से गुफ़ा में छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा, तो दाऊद ने वर्णन किया कि मेरा प्राण सिंहों के बीच में है . . . ऐसे मनुष्यों के बीच में जिनके दांत बर्छी और तीर हैं” (भजन 57:4) l लेकिन उस कठिन जगह पर भी, उसने परमेश्वर की ओर रुख किया और उसमें आराम पाया : “क्योंकि तेरी करुणा स्वर्ग तक बड़ी है, और तेरी सच्चाई आकाशमंडल तक पहुँचती है” (पद.10) l
जब दूसरे हमें गलत समझते हैं या अस्वीकार करते हैं, तो परमेश्वर हमारा “शरण” है (पद.1) l उसके अक्षय और करुणा से पूर्ण प्रेम के लिए सदा उसकी प्रशंसा हो l