उसने वाहक पट्टा(conveyor belt) पर कपकेक के प्लास्टिक के डिब्बे को रखकर खजांची की ओर भेजा l इसके बाद जन्मदिन कार्ड और चिप्स के विभिन्न पैकेट थे l उसके बाल पोनीटेल(ponytail) से बाहर, उसके थके माथे पर फैले हुए थे l उसका नन्हा बच्चा ध्यान देने के लिए चिल्ला रहा था l क्लर्क ने कुल जोड़ बताया और माँ का चेहरा उतर गया l “ओह,  मुझे लगता है कि मुझे कुछ वापस करना होगा l लेकिन ये उसकी पार्टी के लिए हैं,  उसने अपने बच्चे को देखते और अफ़सोस जताते हुए गहरी साँस ली l

उसके पीछे लाइन में खड़े,  एक अन्य ग्राहक ने इस माँ के दर्द को पहचान लिया l यह दृश्य बैतनिय्याह की मरियम के लिए यीशु के शब्दों में जाना-पहचाना है : “जो कुछ वह कर सकी, उसने किया” (मरकुस 14:8) l मरियम ने उसकी मृत्यु और गाड़े जाने से पहले बहुमूल्य इत्र से उसका अभिषेक किया, जिसके बाद शिष्यों ने उसका उपहास किया l यीशु ने उसके द्वारा किये गए कार्यों का जश्न मनाकर अपने शिष्यों को सुधारा l उसने यह नहीं कहा,  “उसने वह सब किया जो वह कर सकती थी,” बल्कि, उसने कहा, “जो कुछ वह कर सकी, उसने किया l” इत्र की अत्यधिक लागत उसका मतलब नहीं था l यह मरियम के प्रेम का उसके कार्य द्वारा दर्शाया जाना था जो मायने रखता था l यीशु के साथ रिश्ता प्रतिक्रिया में परिणित होता है l

उसी क्षण,  माँ के एतराज करने से पहले,  दूसरा ग्राहक आगे झुककर अपने क्रेडिट कार्ड को कार्ड रीडर में डालकर, खरीद के लिए भुगतान कर दिया l यह एक बड़ा खर्च नहीं था,  और उस महीने उसके पास अतिरिक्त धन था l लेकिन उस माँ के लिए,  यह सब कुछ था l शुद्ध प्रेम का एक भाव-प्रदर्शन उसकी आवश्यकता के क्षण में प्रगट हो गया l