1960 के दशक के मध्य में,  दो लोगों ने मानव मानस पर अंधेरे के प्रभावों पर शोध में भाग लिया l उन्होंने अलग-अलग गुफाओं में प्रवेश किया,  जबकि शोधकर्ताओं ने उनके खाने और सोने की आदतों पर नज़र रखी l एक 88 दिनों तक,  दूसरा 126 दिनों तक पूर्ण अंधेरे में रहा l  प्रत्येक ने अनुमान लगाया कि वे कितने समय तक अंधेरे में रह सकते हैं और महीनों तक परे रहे l एक ने सोचा कि वह केवल एक झपकी ले रहा था,  केवल यह जानने के लिए कि वह 30 घंटे तक सोया l अंधेरा गुमराह करता है l

परमेश्वर के लोगों ने खुद को आसन्न निर्वासन के अंधेरे में पाया l इस बात से अनिश्चित रहकर, उन्होंने इंतजार किया कि क्या होनेवाला था l यशायाह ने उनके भटकाव के लिए रूपक के तौर पर और परमेश्वर के न्याय के बारे में बोलने के तरीके के रूप में अंधेरे का उपयोग किया (यशायाह 8:22) l इससे पहले,  मिस्रियों पर एक महामारी के रूप में अंधेरा आया था (निर्गमन 10:2129) l अब इस्राएल ने खुद को अंधेरे में पाया l

लेकिन एक रोशनी आनेवाली थी l “जो लोग अंधियारे में चल रहे थे उन्होंने बड़ा उजियाला देखा;  और जो लोग घोर अन्धकार से भरे हुए मृत्यु के देश में रहते थे, उन पर ज्योति चमकी” (यशायाह 9:2) l उत्पीड़न समाप्त होनेवाला था, और भटकाव खत्म होनेवाला था l एक बालक  सब कुछ बदलने और एक नया दिन लाने के लिए आनेवाला था─क्षमा और छुटकारे का दिन (पद. 6) l

सचमुच यीशु आया! और यद्यपि संसार का अंधकार गुमराह करनेवाला हो सकता है, हम मसीह में मिलने वाले क्षमा,  छुटकारा, और ज्योति में आराम का अनुभव करें l