कथबर्ट उत्तरी इंग्लैंड में अति-प्रिय व्यक्तिव है l सातवीं शताब्दी में इस क्षेत्र के अधिकाँश हिस्से में सुसमाचार प्रचार के लिए जिम्मेदार, कथबर्ट ने सम्राटों को सलाह दिया और राज्य को प्रभावित किया; और उनकी मृत्यु के बाद, उनके आदर में डरहम शहर बनाया गया l लेकिन इन से अधिक तरीकों से कथबर्ट की विरासत महान है l 

एक महामारी(plague) द्वारा उस क्षेत्र को उजाड़ने के बाद, कथबर्ट ने एक बार प्रभावित इलाके का दौरा करते हुए दिलासा दी l एक गाँव को छोड़ते समय, उन्होंने पता लगाया कि क्या प्रार्थना करने के लिए कोई बचा है l हाँ एक बची थी──एक महिला, एक बच्चे को पकड़ी हुई l उसने पहले ही एक बेटे को खो दिया था, और जिस बच्चे को पकड़ी हुई थी वह भी मरने पर था l कथबर्ट ने बुखार से पीड़ित बच्चे को अपने बाहों में उठा लिया, उसके लिए प्रार्थना की, और उसके माथे को चूमा l उन्होंने उससे कहा, “डरो मत, क्योंकि तुम्हारे घर में और किसी की भी मृत्यु नही होगी l” बताते हैं कि बच्चा जीवित रहा l 

यीशु ने महानता का सबक देने के लिए एक छोटे बच्चे को गोद में लेकर, कहा, “जो कोई मेरे नाम से ऐसे बालकों में से किसी एक को भी ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है” (मरकुस 9:37) l यहूदी संस्कृत में किसी का “स्वागत” करने का अर्थ उसकी सेवा करना था, जिस प्रकार एक मेजबान एक अतिथि की करता है l चूकिं बच्चे वयस्कों की सेवा करते थे और उनकी सेवा नहीं की जाती थी, इसलिए यह विचार चौंकाने वाला था l यीशु के बोलने का मतलब? सबसे छोटे और निम्नतम की सेवा में ही सच्ची महानता निवास करती है l 

सम्राटों का सलाहकार l इतिहास को प्रभावित करने वाला l उसके सम्मान में एक शहर का बनाया जाना l लेकिन शायद स्वर्ग कथबर्ट की विरासत को इस तरह अधिक लिपिबद्ध करता है : एक माँ पर ध्यान दिया गया l एक माथे को चूमा गया l एक नम्र जीवन अपने स्वामी को प्रतिबिंबित किया l