“मुझे उसकी योजना समझ में नहीं आती है l मैंने अपना पूरा जीवन उसको दे दिया l और ऐसा हो रहा है!” एक माँ को बेटे का यह सन्देश मिला जब एक पेशेवर एथलीट के रूप में सफल होने का उसका सपना अस्थायी रूप से विफल हो गया l हम में से किसके पास किसी प्रकार का अप्रत्याशित, निराशाजनक अनुभव नहीं हुआ है जो हमारे मन को विस्मयबोधक और प्रश्नों के साथ अतिश्रम में भेजता है? एक परिवार सदस्य स्पष्टीकरण के बिना बातचीत बंद कर देता है;  स्वास्थ्य लाभ उल्टा हो जाता है; एक कंपनी अप्रत्याशित रूप से स्थानांतरित हो जाती है; एक जीवन बदलने वाली दुर्घटना हो जाती है l 

अय्यूब 1-2 अय्यूब के जीवन में त्रासदियों और असफलताओं की एक श्रृंखला दर्ज करती है l  मानवीय रूप से, अगर कोई ऐसा व्यक्ति था जो मुसीबत से मुक्त जीवन के लिए योग्य था, तो वह अय्यूब था l “एक पुरुष था; वह खरा और सीधा था और परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था” (अय्यूब 1:1) l लेकिन जीवन हमेशा उस तरह से काम नहीं करता है जैसे हम चाहते हैं──यह अय्यूब के लिए नहीं था, और हमारे लिए भी नहीं है l जब उसकी पत्नी ने उसे “परमेश्वर की निंदा कर, और . . . मर [जाने]” की सलाह दी! (2:9), उसके लिए अय्यूब के शब्द हमारे लिए भी जब चीजें होती हैं──बड़ी या छोटी──विवेकी, शिक्षाप्रद और उपयुक्त हैं जो हम निश्चय ही सामना नहीं करते l “ ‘क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें”’ इन सब बातों में भी अय्यूब ने अपने मुँह से कोई पाप नहीं किया” (पद.10) l 

परमेश्वर की सामर्थ्य से, उस पर हमारा विश्वास और श्रद्धा तब भी बनी रह सकती है, जब हम यह नहीं समझ सकते कि जीवन के कठिन दिनों में वह कैसे काम करता है l