हमारा बेटा अपने जीवन का आरंभिक काल एक बालाश्रम में बिताया इससे पूर्व कि हम उसे दत्तक लेते l साथ में घर जाते समय जीर्ण-शीर्ण ईमारत को छोड़ने से पहले हमने उससे अपने समान इकठ्ठा करने को कहा l दुःख की बात है कि उसके पास कुछ नहीं था l हमने उसके पहने हुए कपड़ों की जगह उसे नए पहनाए जो हम उसके लिए लाए थे और कुछ कपड़े दूसरे बच्चों के लिए छोड़ दिये l यद्यपि मुझे इस बात का दुःख था कि उसके पास कितना कम था, मैं आनंदित थी कि अब हम उसकी भौतिक और भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करने में मदद कर सकेंगे l 

कुछ वर्षों के बाद, हमने एक व्यक्ति को ज़रूरतमंद परिवारों के लिए दान मांगते देखा l मेरा बेटा उसे अपने स्टफ्ड एनिमल्स(stuffed animals) और कुछ सिक्के देने को इच्छुक था l उसकी पृष्ठ्भूमि को देखते हुए, हो सकता है कि वह अपने सामानों को कसकर पकड़ने के लिए (संभवतः) अधिक प्रवृत्त रहा हो l 

मुझे लगता है कि उसके उदार प्रत्युत्तर का कारण शुरूआती चर्च के समान था : “सब पर बड़ा अनुग्रह था, जिससे उनके बीच कोई भी ज़रूरतमंद नहीं था (प्रेरितों 4:33-34) l लोग अपनी इच्छा से अपनी संपत्ति बेचकर एक दूसरे की ज़रूरतों का प्रबंध करते थे l 

जब हम दूसरों की ज़रूरतों के विषय जागरूक हो जाते हैं, भौतिक या अमूर्त, परमेश्वर का अनुग्रह बहुत सामर्थ्य से हममें काम करे ताकि हम उसी तरह प्रत्युत्तर दें जैसे उन्होंने दिया था, ज़रुरतमन्दों को अपनी इच्छा से देना l यह हमें यीशु में “एक चित्त और एक मन” के विश्वासियों के रूप में परमेश्वर के अनुग्रह का माध्यम बनाता है, (पद.32) l