प्रसिद्ध अमेरिकी प्रचारक बिली ग्रैहम ने एक बार बाइबल को पूरी तरह से सच मानने के अपने संघर्ष का वर्णन किया l एक रात जब वे सैन बेर्नारडिनो पहाड़ पर एक रिट्रीट सेन्टर में चांदनी में अकेले टहल रहे थे, वे अपने घुटनों पर आ गए और बाइबल को एक पेड़ के ठूंठ पर रख दी और “हकलाते हुए” केवल एक प्रार्थना बोल पाए l “ओ, परमेश्वर! इस पुस्तक में अनेक बातें हैं जो मैं समझ नहीं पाता हूँ l”

अपने भ्रम को स्वीकार करने के द्वारा, ग्रैहम ने कहा कि आख़िरकार पवित्र आत्मा ने “मुझे बोलने के लिए स्वतंत्र कर दिया l ‘पिता, मैं इसे आपके वचन के रूप में स्वीकार करने जा रहा हूँ──विश्वास से!’” जब वे उठ खड़े हुए, उनके पास अभी भी प्रश्न थे, लेकिन उन्होंने कहा, “मैं जानता था कि मेरी आत्मा में एक आत्मिक युद्ध लड़ा गया था और जीता गया था l”

युवा नबी यिर्मयाह भी आत्मिक युद्ध लड़ा था l इसके बावजूद उसने निरंतर पवित्रशास्त्र में उत्तर खोजता था l “जब तेरे वचन मेरे पास पहुंचे, तब मैं ने उन्हें मानो खा लिया, और तेरे वचन मेरे मन के हर्ष और आनंद का कारण हुए” (यिर्मयाह 15:16) l उसने कहा, “यहोवा का वचन . . . मेरी हड्डियों में धधकती हुई आग [है]” (20:8-9) l उन्नीसवीं शताब्दी का प्रचारक चार्ल्स स्पर्जन ने लिखा, “[यिर्मयाह] हमें एक रहस्य में ले चलता है l उसका बाहरी जीवन, विशेषकर उसकी विश्वासयोग्य सेवा, उसके द्वारा प्रचारित किए जानेवाले वचन के आंतरिक प्रेम के कारण था l”

हमारे संघर्षों के बावजूद हम भी वचन की बुद्धिमत्ता द्वारा अपने जीवन को आकर दे सकते हैं l हम विश्वास से, हमेशा की तरह, निरंतर अध्ययन कर सकते हैं l