जब मैं अपनी सबसे प्रिय मित्र के साथ दोपहर का भोजन करने के बाद घर लौट रही थी, मैंने ऊंची आवाज़ में उसके लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया l वह मुझे जानती है और मुझे उन बातों के बावजूद प्यार करती है जो मैं अपने बारे में पसन्द नहीं करती l वह एक छोटे समूह के लोगों में से एक है जो मुझे जैसी मैं हूँ स्वीकार करती है──विचित्रता, आदतें, और गड़बड़ियाँ l फिर भी, मेरी कहानी में ऐसे हिस्से हैं जो मैं उससे और दूसरों से जिन्हें मैं प्यार करती हूँ साझा नहीं करना चाहती──उन समयों में जब मैं वीरांगना/नायिका बिलकुल नहीं थी, समय जब मैं आलोचनात्मक या कठोर या प्रेमरहित थी l 

लेकिन परमेश्वर मेरी पूरी कहानी अवश्य जानता है l यद्यपि मैं दूसरों के साथ बात करने में हिचकिचाता हूँ वह ही है जिससे मैं स्वतंत्र रूप से बात कर सकता हूँ l 

भजन 139 के परिचित शब्द उस निकटता का वर्णन करते हैं जिसका आनंद हम अपने अधिराजा के साथ लेते हैं l वह हमें पूर्ण रूप से जानता है! (पद.1) l वह “[हमारे] पूरे चालचलन का भेद जानता है” (पद.3) l वह हमें हमारे समस्त भ्रम, हमारे बेचैन विचार, और संघर्षों और आजमाइशों के साथ अपने पास बुलाता है l वह आगे बढ़कर हमारी कहानी के उन हिस्सों को पुनर्स्थापित और फिर से लिखता है जो हमें दुखित करते हैं क्योंकि हम उससे भटक गए हैं l 

किसी और की तुलना में जो कभी हमें जान सकता है, परमेश्वर हमें बेहतर जानता है, और इसके बावजूद . . . वह हमसे प्रेम करता है! जब हम हर दिन अपने को उसे समर्पित करते हैं और उसे और अधिक पूर्णता से जानने की खोज जरते हैं, वह अपनी महिमा के लिए मेरी कहानी को बदल सकता है l रचयिता वह ही है जो उसे निरंतर लिख रहा है l