पहली बार जब मैं कम से कम 14,000 फीट ऊंचे पहाड़ पर अपने बेटों को एक लम्बी पैदल सैर पर ले गया──वे घबरा गए l क्या वे पूरा कर पाएंगे? क्या वे चुनौती के लिए तैयार थे? मेरा छोटा बेटा कई बार लम्बे अवकाश के लिए रुका l “डैड, मैं और नहीं चल सकता हूँ,” उसने बार-बार कहा l लेकिन मेरा विश्वास था कि यह जांच उनके लिए अच्छा हो सकता था, और मैं चाहता था कि वे मुझ पर भरोसा रखें l शिखर से एक मील दूर, मेरा बेटा जो आगे नहीं जाना चाहता था थकान के बाद पुनः ऊर्जा प्राप्त करके शिखर पर हमसे पहले पहुँच गया l वह बहुत आनंदित था कि भय के बीच भी उसने मुझ पर भरोसा किया l
मैं इसहाक का अपने पिता पर भरोसा रखने से अचंभित हूँ जब वे पहाड़ पर चढ़ रहे थे l उससे कहीं अधिक, मैं अब्राहम का परमेश्वर पर भरोसा रखने से अभिभूत हूँ जब वह अपने पुत्र पर छुरी उठा’ ली (उत्पत्ति 22:10) l अपने भ्रमित और अत्यंत कष्टदायी हृदय के साथ भी, अब्राहम ने आज्ञा मानी l सौभाग्य से, एक स्वर्गदूत ने उसे रोक दिया l “उस लड़के पर हाथ न बढ़ा,” परमेश्वर के संदेशवाहक ने कहा (पद.12) l परमेश्वर कभी भी इसहाक की मृत्यु नहीं चाहता था l
जब हम सावधानी से इस अनूठी कहानी से हमारी अपनी कहानी के साथ तुलना करते हैं, आगे की पंक्ति पर ध्यान देना अति महत्वपूर्ण है : “परमेश्वर ने अब्राहम [की] परीक्षा की” (पद.1) l अपनी जांच से, अब्राहम ने सीखा कि वह परमेश्वर पर कितना अधिक भरोसा करता था l उसने उसके प्रेमी हृदय और अथाह प्रबंध को देखा l
हमारे भ्रान्ति, अंधकार, और जांच में, हम अपने विषय और परमेश्वर के विषय सच्चाई को सीखते हैं l और हम यह भी पाएंगे कि हमारी जांच हमें उसमें और गहरे भरोसे में ले जाता है l
आप कैसे विश्वास करते हैं कि परमेश्वर ने आपको जांचा है? वह अनुभव कैसा था, और आप उससे क्या सीखते हैं?
हे परमेश्वर, मुझे नहीं मालूम कि मैं जो अनुभव कर रहा हूँ वह आपकी जांच है या नहीं, लेकिन ऐसे या वैसे, मैं आप पर भरोसा करना चाहता हूँ l मैं अपना भावी जीवन आपको देता हूँ l