Month: अक्टूबर 2021

शब्द जो बने रहते हैं

उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में, थॉमस कार्लाइल ने दर्शनशास्त्री जॉन स्टुअर्ट मिल को समीक्षा करने के लिए हस्तलेख दी l किसी प्रकार, चाहे धोखे से या जानबूझकर, हस्तलेख आग में गिर गया l यह कार्लाइल की एकलौती प्रति थी l अविचलित, वह खोये हुए अध्यायों को फिर से लिखने लगे l महज आग उसकी कहानी को रोक नहीं सकती थी, जो उनके मस्तिष्क में अक्षुण्ण थी l बड़ी हानि के भीतर से, कार्लाइल ने अपना स्मारकीय लेखन द फ्रेंच रिवोल्यूशन(The French Revolution) उत्पादित किया l 

प्राचीन यहूदा के पत्नोमुख राज्य के गिरावट के दिनों में, परमेश्वर ने यिर्मयाह नबी से कहा, “एक पुस्तक लेकर जितने वचन मैं ने तुझसे . . . कहे हैं, सब को उसमें लिख” (यिर्मयाह 36:2) l सन्देश में निकट आक्रमण से बचने के लिए अपने लोगों को पश्चाताप करने का आह्वान करते हुए परमेश्वर के कोमल हृदय को प्रकट किया गया था (पद.3) l 

यिर्मयाह ने वही किया जो उससे बोला गया था l पांडुलिपि शीघ्र ही यहूदा के राजा यहोयाकिम के पास पहुँच गया, जिसने उसे क्रमबद्ध रूप से टुकड़े-टुकड़े करके आग में फेंक दिया (पद.23-25) l राजा के आग लगाने के अपराध के इस कृत्य ने मामले को और बदतर बना दिया l परमेश्वर ने यिर्मयाह से उसी सन्देश का एक और हस्तलिपि बनाने को कहा l उसने कहा, “[यहोयाकिम का] कोई दाऊद की गद्दी पर विराजमान न रहेगा; और उसका शव ऐसा फेंक दिया जाएगा कि दिन को धुप में और रात को पाले में पड़ा रहेगा” (पद.30) l 

आग में फेंकने के द्वारा परमेश्वर के वचन का जलाना संभव है l संभव है, लेकिन बिलकुल व्यर्थ l शब्दों के पीछे शब्द/वचन सर्वदा तक स्थिर है l 

महानतम शिक्षक

“मुझे समझ में नहीं आता है!” मेरी बेटी ने डेस्क पर अपनी पेंसिल को पटक दिया l वह गणित का एक गृहकार्य हल कर रही थी, और मैंने होमस्कूलिंग माँम/टीचर के रूप में अपना “काम” शुरू किया ही था l हम समस्या में थे l मैंने जो दशमलव को अंश में बदलना पैंतीस साल पहले सीखा था उसे याद नहीं कर पा रही थी l मैं उसे कुछ नहीं सीखा पा रही थी जो मैं पहले से नहीं जानती थी, इसलिए हमने एक ऑनलाइन टीचर को इस युक्ति को समझाते हुए देखा l 

मानव रूप में, हम उन चीजों के साथ कई बार संघर्ष करते हैं जिन्हें हम जानते या समझते नहीं हैं l लेकिन परमेश्वर नहीं l वह सर्वज्ञ है──सर्वज्ञानी है l यशायाह ने लिखा, “किसने यहोवा . . . [का] मत्री होकर उसको ज्ञान सिखाया है? उसने किससे सम्मति ली और किसने उसे समझाकर न्याय का पथ बता दिया और ज्ञान सिखाकर बुद्धि का मार्ग जता दिया है?” (यशायाह 40:13-14) l उत्तर? कोई नहीं!

मनुष्य के पास अक्ल/समझ है क्योंकि परमेश्वर ने हमें अपने स्वरुप में बनाया है l इसके बावजूद, हमारी समझ केवल उसकी एक छाप है l हमारा ज्ञान सीमित है, लेकिन परमेश्वर अनंत अतीत से अनंत भविष्य तक सब कुछ जानता है (भजन 147:5) l आज हमारा ज्ञान तकनीक की मदद से बढ़ रहा है, लेकिन फिर भी हम गलती करते हैं l यीशु, हालाँकि, “तुरंत, साथ-साथ, सुविस्तृत रूप से और सच्चाई से सब कुछ” जानता है जैसा कि धर्मविज्ञानी कहते हैं l 

चाहे मनुष्य जितना भी ज्ञान में विकास कर ले, हम कभी भी मसीह के सर्वज्ञानी दर्जा को पार नहीं कह सकते हैं l हमें हमारी समझ को आशीष देने और हमें यह सिखाने के लिए कि अच्छा और सच्चा क्या है उसकी हमेशा ज़रूरत पड़ेगी l  

राजा के मेज़ पर

पशु चिकित्सक ने कहा, “वह बच जाएगा, लेकिन उसका एक पैर काटना होगा l” मेरा मित्र जिस आवारा मिश्रित जाति का कुत्ता लेकर आया था उसको कार ने कुचल दिया था l “क्या आप इसके मालिक हैं?” सर्जरी का बिल बड़ा होगा, और उसके ठीक होते समय उसको देखभाल की ज़रूरत होगी l “मैं मौजूद हूँ,” मेरे मित्र ने उत्तर दिया l उसकी दयालुता ने उस कुत्ते को एक स्नेही घर में एक भविष्य दिया l 

मपीबोशेत ने खुद को एक “मरे हुए कुत्ते” के समान देखा, जो कृपा के योग्य नहीं था (2 शमूएल 9:8) l एक दुर्घटना के कारण दोनों पैरों से लंगड़ा, वह दूसरों पर सुरक्षा और प्रबंध के लिए निर्भर था (4:4 देखें) l इसके अलावा, उसके दादा, राजा शाऊल की मृत्यु के बाद, शायद उसे डर था कि नया राजा, दाऊद, सिंहासन के सभी शत्रुओं और विरोधियों को मारने का आदेश देगा, जैसा कि उस काल में सामान्य चलन था l 

फिर भी, अपने मित्र, योनातान से प्रेम के कारण, दाऊद ने निश्चित किया कि योनातान का बेटा, मपीबोशेत हमेशा सुरक्षित रहेगा और उसके अपने पुत्र के सामान उसकी देखभाल होगी (9:7) l उसी तरह, हम जो एक समय परमेश्वर के शत्रु थे, मृत्यु के लिए चिन्हित, यीशु द्वारा बचा लिए गए हैं और स्वर्ग में हमेशा के लिए उसके साथ स्थान प्राप्त किये हैं l परमेश्वर के राज्य में भोज में खाने का अर्थ यही है जिसका वर्णन लूका अपने सुसमाचार में करता है (लूका 14:15) l हम यहाँ हैं──राजा के बेटे और बेटियाँ! कितना असाधारण, अयोग्य अनुग्रह जो हमने पाया है! आइये हम कृतज्ञता और आनंद में परमेश्वर के निकट जाएँ l 

दूसरों के लिए

कोविड-19 महामारी के दौरान, कई सिंगापुरी संक्रमित होने से बचने के लिए घर में ही रहे l लेकिन भरोसा करते हुए कि सब सुरक्षित है, मैं आनंदपूर्वक तैरता रहा l 

मेरी पत्नी, हालाँकि, भयभीत थी कि मैं एक सार्वजनिक तरणताल में संक्रमित हो सकता हूँ और अपनी वृद्ध माँ को संक्रमित कर सकता हूँ──जो, दूसरे वरिष्ठों की तरह, इस वायरस के चपेट में आ सकती थी l “क्या आप मेरे लिए, कुछ समय के लिए तैरना छोड़ सकते हैं?” उसने कहा l 

पहले, मैं बहस करना चाहता था कि जोखिम बहुत कम था l फिर मुझे एहसास हुआ कि यह उसकी भावनाओं से कम मायने रखता है l मैं तैरने पर जोर क्यों दूँ──शायद ही एक ज़रूरी चीज़──जब इसने व्यर्थ उसको चिंतित किया?  

रोमियों 14 में, पौलुस कुछ ऐसे मामलों को संबोधित किया जैसे कि मसीह में विश्वासियों को कुछ ख़ास भोजन खाना चाहिए या ख़ास त्योहारों को मानना चाहिए l वह चिंतित था कि कुछ लोग अपने विचार दूसरों पर थोप रहे थे l 

पौलुस ने रोम में चर्च को, और हमें, याद दिलाया, कि मसीह में विश्वासी स्थितियों को दूसरे तरीके से देख सकते हैं l हमारी पृष्ठ्भूमि भी विविध हैं जो हमारे दृष्टिकोण और प्रथाओं को रंग देती हैं l उसने लिखा, “हम एक दूसरे पर दोष न लगाएँ, पर तुम ठान लो कि कोई अपने भाई [या बहिन] के सामने ठोकर खाने का कारण न रखे” (पद.13) l

परमेश्वर के अनुग्रह से हमें बहुत स्वतंत्रता मिलती है, जब यह सह विश्वासियों के प्रति उसके प्रेम को वक्त करने में मदद करता है l हम इस स्वतंत्रता का उपयोग नियमों और प्रथाओं को अपने स्वयं के विश्वासों से ऊपर दूसरों की आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कर सकते हैं जो कि सुसमाचार में पाए गए आवश्यक सत्य के विपरीत नहीं है (पद.20) l