1925 में, एक महत्वाकांक्षी लेखक, लैंगस्टन ह्यूज, जो एक होटल में सहायक वेटर के रूप में काम कर रहे थे,  ने पाया कि एक कवि जिन्हें वह बहुत पसंद करते थे (वेचल लिंडसे) वहाँ एक अतिथि के रूप में रह रहे थे। ह्यूज ने हिचकते हुए लिंडसे को अपनी खुद की कुछ कविताएँ पहुँचा दी, जिनकी लिंडसे ने बाद में एक सार्वजनिक पठन दौरान उत्साहपूर्वक प्रशंसा की। लिंडसे के प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप ह्यूज को विश्वविद्यालय की छात्रवृत्ति प्राप्त हुई, जिससे वह अपने स्वयं के सफल लेखन आजीविका के रास्ते पर आगे बढ़ गए।

थोड़ा सा प्रोत्साहन बहुत आगे बढ़ा सकता है, खासकर तब जब परमेश्वर उसमें हो। पवित्रशास्त्र एक घटना के बारे में बताती है जब दाऊद राजा शाऊल से भाग रहा था, जो “उसकी जान लेने” की कोशिश कर रहा था। शाऊल के पुत्र योनातान ने दाऊद को ढूंढ़ निकाला, “और परमेश्वर [में] ढाढ़स दिलाया l उसने उससे कहा, ‘मत डर; क्योंकि तू मेरे पिता शाऊल के हाथ न पड़ेगा; और तू ही इस्राएल का राजा होगा’” (1 शमूएल 23:15-17)।

योनातान सही था। दाऊद को राजा होना था। योनातान द्वारा दिए गए प्रभावी प्रोत्साहन का मूल सरल वाक्यांश “परमेश्वर [में]” (पद 16 )पाया जाता है। यीशु के द्वारा, परमेश्वर हमें “अनंत शांति और उत्तम आशा” दी है (2 थिस्सलुनीकियों 2:16)। जब हम अपने आप को उसके सामने नम्र करते हैं, तो वह हमें इस प्रकार ऊंचा करता करता है जैसा कोई नहीं कर सकता।

हमारे चारों ओर ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर द्वारा दिए गए प्रोत्साहन की आवश्यकता है। यदि हम भी उन्हें वैसे ही ढूंढ़ते हैं जैसे योनातान ने दाऊद को ढूंढा और कोमल वचन या कार्य के द्वारा उन्हें धीरे से परमेश्वर की ओर केंद्रित करते है, तो वह बाकी का काम पूरा करेगा। इस जीवन में चाहे जो भी हो, अनंत काल में एक उज्ज्वल भविष्य उन लोगों की प्रतीक्षा करता है जो उस पर भरोसा करते हैं।