शनिवार की दोपहर एक शांत नदी के किनारे एक पार्क। दौड़ने वाले(joggers) गुजरते हैं, मछली पकड़ने की छड़ें चक्कर खाति हैं, पक्षी मछली और बचे हुए भोजन के लिए लड़ रहे होते हैं,  और मेरी पत्नी और मैं उस जोड़े को देख रहे होते। वे सांवले थे , शायद अपने चालीसवें दशक में होंगे। वह बैठी हुई उसकी आँखों में टकटकी लगाए देखती, जबकि वह बिना किसी शर्मीलेपन का संकेत देते हुए, उसके लिए अपनी ही भाषा में एक प्रेम गीत गाता, जो हवा द्वारा ले जाया जाकर हम सभी को सुनाई देता।  

इस आनंदमय दृश्य ने मुझे सपन्याह की पुस्तक के बारे में सोचने पर मजबूर किया। सबसे पहले आपको आश्चर्य हो सकता है कि क्यों। सपन्याह के दिनों में, परमेश्वर के लोग झूठे देवताओं (1:4-5) को दण्डवत करने के द्वारा भ्रष्ट हो गए थे, और इस्राएल के भविष्यद्वक्ता और याजक अब अभिमानी और अपवित्र (3:4) थे। अधिकांश पुस्तक में, सपन्याह न केवल इस्राएल पर बल्कि पृथ्वी के सभी राष्ट्रों पर परमेश्वर के आने वाले न्याय की घोषणा करता है (पद.8)।

तौभी सपन्याह कुछ और भी देख पता है। उस अन्धकार के  दिन में से एक ऐसे लोग निकलेंगे जो पूरे हृदय से परमेश्वर से प्रेम करते होंगे  (पद. 9-13)। इन लोगों के लिए परमेश्वर उस दूल्हे के समान होगा जो अपने प्रियतम से प्रसन्न होता है : “वह अपने प्रेम के मारे चुपका रहेगा; फिर ऊंचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा” (पद.17)।

सृष्टिकर्ता, पिता, योद्धा, न्यायाधीश। पवित्रशास्त्र परमेश्वर के लिए कई नाम का उपयोग करता है। लेकिन हममें से कितने लोग परमेश्वर को एक गायक के रूप में देखते हैं जिसके होठों पर हमारे लिए एक प्रेम गीत है?