एबेल मुताई, एक केन्याई धावक, जो एक थकानेवाले अंतरराष्ट्रीय क्रॉस-कंट्री रेस में प्रतिस्पर्धा कर रहे थे, जीत से मात्र गज की दूरी पर थे─उनकी बढ़त सुरक्षित थी। क्रम के संकेतों से भ्रमित होकर और यह सोचकर कि वह पहले ही अंतिम रेखा पार कर चुके है, मुताई रुक गए। दूसरे स्थान पर रहे स्पेनिश धावक इवान फर्नांडीज अनाया ने मुताई की गलती देखी। जीत के लिए फायदा उठाने और बोल्ट पास्ट करने के बजाय, उन्होंने मुताई को पकड़ लिया, अपना हाथ बढ़ाया और मुताई को स्वर्ण पदक जीत के लिए आगे बढ़ाया। जब पत्रकारों ने अनाया से पूछा कि वह जानबूझकर रेस क्यों हार गए, तो उन्होंने इस बात पर जोर देकर कहा कि मुताई जीत के हकदार है, न कि वह। “मेरी जीत का क्या श्रेय होगा? उस पदक का सम्मान क्या होगा? मेरी माँ उसके बारे में क्या सोचेगी?” जैसा कि एक रिपोर्ट में कहा गया है : “अनाया ने जीत पर ईमानदारी को चुना।”
नीतिवचन कहता है कि जो लोग ईमानदारी से जीने की इच्छा रखते हैं, और जो चाहते है कि उनके जीवन से विश्वास और सत्यता प्रदर्शित हो, वे अपने फ़ायदे के बजाय सत्य के आधार पर चुनाव करते हैं। “खरे लोगों की खराई उनका मार्गदर्शन करती है” (11:3)। ईमानदारी से चलने का संकल्प न केवल जीने का सही तरीका है, बल्कि यह एक बेहतर जीवन भी प्रदान करता है। नीतिवचन में आगे लिखा है : “लेकिन विश्वासघाती अपने दोहरेपन से नष्ट हो जाते हैं” (पद ३)। लंबे समय में, बेईमानी कभी भुगतान नहीं करती है।
यदि हम अपनी ईमानदारी को त्याग दे, तो छोटे समय की हमारी “जीत” वास्तव में हार का कारण बनती है। लेकिन जब निष्ठा और सच्चाई हमें ईश्वर की शक्ति में आकार देती है, तो हम धीरे-धीरे गहरे चरित्र वाले लोग बन जाते हैं जो वास्तव में अच्छा जीवन जीते हैं।
इस समय आपकी ईमानदारी की परीक्षा कैसे हो रही है? आपके सामने कौन-कौन से चुनाव है—और वे आपकी ईमानदारी को कैसे बढ़ाते हैं (या घटाते हैं)?
सत्यता के परमेश्वर, आप ईमानदार और विश्वासयोग्य हैं। मुझे और ज्यादा अपने जैसा बनाए। मुझे ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के साथ जीना सिखाएं।