Month: मार्च 2022

न्याय और यीशु

रोम के पहले सम्राट कैसर औगुस्तुस (ई.पूर्व 63─14 ई.सन्) चाहते थे कि उन्हें एक कानून-व्यवस्था शासक के रूप में जाना जाए। भले ही उसने दास श्रम, सैन्य विजय, और वित्तीय रिश्वतखोरी के बल पर अपने साम्राज्य का निर्माण किया, लेकिन उसने कानूनी नियत प्रक्रिया का एक उपाय स्थापित किया और अपने नागरिकों को लुस्टितिआ दी, एक देवी जिसे आज हमारी न्याय प्रणाली लेडी जस्टिस(न्याय की देवी) के रूप में संदर्भित करती है। उसने एक जनगणना का भी आह्वान किया जो मरियम और युसूफ को बेथलहम ले आया ताकि एक लम्बे समय से प्रतीक्षित शासक का जन्म हो सके जिसकी महानता पृथ्वी के छोर तक पहुंचेगी (मीका 5:2-4)।

न तो औगुस्तुस और न ही बाकी दुनिया यह अनुमान लगा सकती थी कि कैसे एक सर्वश्रष्ठ महान राजा जीकर और मरकर यह दिखाएगा कि वास्तव में न्याय किस प्रकार होता है। सदियों पहले, भविष्यवक्ता मीका के दिनों में, परमेश्वर के लोग एक बार फिर झूठ, हिंसा, और "गलत धन" की संस्कृति में खो गए थे (6:10-12)। परमेश्वर के प्रिय राष्ट्र ने उसकी दृष्टि खो दी थी। वह उनसे चाहता था कि वे संसार को दिखाएँ कि एक दूसरे के द्वारा सही काम करने का क्या मतलब है और उसके साथ नम्रता से चले(पद.8)।

एक दास समान राजा ने मनुष्य रूप में होकर उस तरह के न्याय को व्यक्त किया जिसे दुखित,, भूलाए गए और असहाय लोग लंबे समय से चाहते थे। यीशु में ही मीका की भविष्यवाणी पूरी हो सकी जिसके द्वारा परमेश्वर और मनुष्य, और मनुष्यों के बीच में सही संबंधो की स्थापना हो पाई। यह कैसर के बाहरी प्रवर्तन जैसी कानून-व्यवस्था से नहीं आ सकता था, बल्कि हमारे दास राजा यीशु की दया, भलाई और आत्मा की स्वतंत्रता से आया है।

खामियों के साथ

रोम के पहले सम्राट कैसर औगुस्तुस (ई.पूर्व 63─14 ई.सन्) चाहते थे कि उन्हें एक कानून-व्यवस्था शासक के रूप में जाना जाए। भले ही उसने दास श्रम, सैन्य विजय, और वित्तीय रिश्वतखोरी के बल पर अपने साम्राज्य का निर्माण किया, लेकिन उसने कानूनी नियत प्रक्रिया का एक उपाय स्थापित किया और अपने नागरिकों को लुस्टितिआ दी, एक देवी जिसे आज हमारी न्याय प्रणाली लेडी जस्टिस(न्याय की देवी) के रूप में संदर्भित करती है। उसने एक जनगणना का भी आह्वान किया जो मरियम और युसूफ को बेथलहम ले आया ताकि एक लम्बे समय से प्रतीक्षित शासक का जन्म हो सके जिसकी महानता पृथ्वी के छोर तक पहुंचेगी (मीका 5:2-4)।

न तो औगुस्तुस और न ही बाकी दुनिया यह अनुमान लगा सकती थी कि कैसे एक सर्वश्रष्ठ महान राजा जीकर और मरकर यह दिखाएगा कि वास्तव में न्याय किस प्रकार होता है। सदियों पहले, भविष्यवक्ता मीका के दिनों में, परमेश्वर के लोग एक बार फिर झूठ, हिंसा, और "गलत धन" की संस्कृति में खो गए थे (6:10-12)। परमेश्वर के प्रिय राष्ट्र ने उसकी दृष्टि खो दी थी। वह उनसे चाहता था कि वे संसार को दिखाएँ कि एक दूसरे के द्वारा सही काम करने का क्या मतलब है और उसके साथ नम्रता से चले(पद.8)।

एक दास समान राजा ने मनुष्य रूप में होकर उस तरह के न्याय को व्यक्त किया जिसे दुखित,, भूलाए गए और असहाय लोग लंबे समय से चाहते थे। यीशु में ही मीका की भविष्यवाणी पूरी हो सकी जिसके द्वारा परमेश्वर और मनुष्य, और मनुष्यों के बीच में सही संबंधो की स्थापना हो पाई। यह कैसर के बाहरी प्रवर्तन जैसी कानून-व्यवस्था से नहीं आ सकता था, बल्कि हमारे दास राजा यीशु की दया, भलाई और आत्मा की स्वतंत्रता से आया है।

प्रेम गीत

शनिवार की दोपहर एक शांत नदी के किनारे एक पार्क। दौड़ने वाले(joggers) गुजरते हैं, मछली पकड़ने की छड़ें चक्कर खाति हैं, पक्षी मछली और बचे हुए भोजन के लिए लड़ रहे होते हैं,  और मेरी पत्नी और मैं उस जोड़े को देख रहे होते। वे सांवले थे , शायद अपने चालीसवें दशक में होंगे। वह बैठी हुई उसकी आँखों में टकटकी लगाए देखती, जबकि वह बिना किसी शर्मीलेपन का संकेत देते हुए, उसके लिए अपनी ही भाषा में एक प्रेम गीत गाता, जो हवा द्वारा ले जाया जाकर हम सभी को सुनाई देता।  

इस आनंदमय दृश्य ने मुझे सपन्याह की पुस्तक के बारे में सोचने पर मजबूर किया। सबसे पहले आपको आश्चर्य हो सकता है कि क्यों। सपन्याह के दिनों में, परमेश्वर के लोग झूठे देवताओं (1:4-5) को दण्डवत करने के द्वारा भ्रष्ट हो गए थे, और इस्राएल के भविष्यद्वक्ता और याजक अब अभिमानी और अपवित्र (3:4) थे। अधिकांश पुस्तक में, सपन्याह न केवल इस्राएल पर बल्कि पृथ्वी के सभी राष्ट्रों पर परमेश्वर के आने वाले न्याय की घोषणा करता है (पद.8)।

तौभी सपन्याह कुछ और भी देख पता है। उस अन्धकार के  दिन में से एक ऐसे लोग निकलेंगे जो पूरे हृदय से परमेश्वर से प्रेम करते होंगे  (पद. 9-13)। इन लोगों के लिए परमेश्वर उस दूल्हे के समान होगा जो अपने प्रियतम से प्रसन्न होता है : "वह अपने प्रेम के मारे चुपका रहेगा; फिर ऊंचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा" (पद.17)।

सृष्टिकर्ता, पिता, योद्धा, न्यायाधीश। पवित्रशास्त्र परमेश्वर के लिए कई नाम का उपयोग करता है। लेकिन हममें से कितने लोग परमेश्वर को एक गायक के रूप में देखते हैं जिसके होठों पर हमारे लिए एक प्रेम गीत है?

असमंजस से निपटना

हम एक ऐसे संसार में रहते हैं जो कागजी तौलिए से लेकर जीवन बीमा तक कई तरह के विकल्प प्रदान करता है। 2004 में, एक मनोवैज्ञानिक ने द पैराडॉक्स ऑफ चॉइस(The Paradox of Choice) नामक एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि चुनाव करने की स्वतंत्रता हमारी भलाई के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन बहुत से विकल्प अधिभार और निर्णय ना ले पाने का कारण बन सकते हैं। जबकि यह तय करते समय दांव निश्चित रूप से कम होता है कि कौन सा कागज़ का तौलिया खरीदना है, पर हमारे जीवन की क्रियाओं को प्रभावित करने वाले प्रमुख निर्णय लेते समय निर्णय लेना दुर्बल हो सकता है। तो हम कैसे अनिर्णय को दूर कर सकते हैं और यीशु के लिए जीने में आत्मविश्वास से आगे बढ़ सकते हैं?

मसीह में विश्वासियों के रूप में, परमेश्वर की बुद्धि मांगने से हमें कठिन निर्णयों का सामना करने में सहायता मिलती है। जब हम जीवन में कुछ भी तय कर रहे होते हैं, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, पवित्रशास्त्र हमें निर्देश देता है कि "[अपने] पूरे मन से यहोवा पर भरोसा रखो, और [अपनी] समझ का सहारा न लो" (नीतिवचन  3:5)। जब हम अपने निर्णय पर भरोसा करते हैं, तो हम भ्रमित हो सकते हैं और एक महत्वपूर्ण विवरण को खोने या गलत चुनाव करने के बारे में चिंता कर सकते हैं। जब हम उत्तर के लिए परमेश्वर की ओर देखेंगे, तथापि, वह "[हमारे] मार्ग सीधे कर देगा" (पद. 6)। हमारे दैनिक जीवन में निर्णय लेते समय वह हमें स्पष्टता और शांति प्रदान करेगा। 

परमेश्वर नहीं चाहता कि हम अपने निर्णयों के भार से लकवाग्रस्त या अभिभूत हों। हम उस ज्ञान और दिशा में जो वह हमें देता है शांति पा सकते हैं जब हम प्रार्थना में अपनी चिंताओं को उसके पास लाते हैं।