सुरक्षित हाथ
रस्सी के टूटने की तरह, डॉग मर्की के जीवन के धागे एक-एक कर टूट रहे थे। “मेरी माँ ने कैंसर से अपनी लंबी लड़ाई हार गयी थी; एक लम्बे समय का प्रेम प्रसंगयुक्त संबंध विफल हो रहा था; मेरी आमदनी समाप्त हो रही थी ; मेरा व्यवसाय धुंधला रहा था . . . l मेरे आसपास और मेरे भीतर भावनात्मक और आत्मिक अंधकार गहरा और दुर्बल करने वाला और गहन प्रतीत होता है , ”पादरी और मूर्तिकार ने लिखा। ये सामूहिक घटनाएं, एक तंग अटारी में रहने के साथ मिलकर, वह जगह बन गईं जहां से उनकी मूर्तिकला द हाइडिंग प्लेस उभरी। यह मसीह के बलवन्त, कीलो से ज़ख्मी खुले हुए हाथों को एक सुरक्षित जगह के रूप में दर्शाती है।
डौग ने अपनी कलाकृति की बनावट को इस प्रकार से समझाया: "मूर्तिकला मसीह का निमंत्रण है उसमें छिपने के लिए" भजन संहिता ३२ में, दाऊद ने उस व्यक्ति के रूप में लिखा जिसने परम सुरक्षित स्थान—स्वयं परमेश्वर को पाया था। वह हमें हमारे पापों से क्षमा प्रदान करता है (पद १-५) और हमें कोलाहल के बीच प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करता है (पद ६)। पद ७ में, भजनकार परमेश्वर पर अपने भरोसे की घोषणा करता है: “तू मेरे छिपने का स्थान है; तू विपत्ति से मेरी रक्षा करेगा, और मुझे छुटकारे के गीतों से घेर लेगा।”
जब संकट आता है, तो आप कहाँ मुड़ते हैं? यह जानना कितना भला है कि जब हमारे सांसारिक अस्तित्व की नाजुक डोरियाँ खुलने लगती हैं, तो हम उस परमेश्वर की ओर दौड़ सकते हैं जिसने यीशु के क्षमाशील कार्य के द्वारा से अनन्त सुरक्षा प्रदान की है।
अटूट विश्वास
अरुण अपने पिता की मृत्यु के बाद उनका सामान लेने के लिए वृद्धाश्रम में गया। कर्मचारियों ने उसे दो छोटे बक्से सौंपे। उसने कहा कि उस दिन उसे यह महसूस हुआ कि खुश रहने के लिए वास्तव में बहुत सारी संपत्ति नहीं चाहिए होती।
उसके पिता, सतीश, चिन्तामुक्त और हमेशा एक मुस्कान और दूसरों के लिए एक उत्साहजनक शब्द के साथ तैयार रहते थे। उनकी खुशी का कारण एक दूसरी "संपत्ति" थी जो किसी बक्से में नहीं समा सकती थी : उनके उद्धारकर्ता, यीशु में एक अटूट विश्वास।
यीशु हमसे आग्रह करते हैं कि “अपने लिए स्वर्ग में धन इकट्ठा करो" (मत्ती 6:20)। उन्होंने यह नहीं कहा कि हम एक घर या गाड़ी नहीं खरीद सकते हैं या भविष्य के लिए धन नहीं जोड़ सकते या हमारे पास अन्य कई संपत्तियां नहीं हो सकती। परन्तु वह हमसे यह आग्रह करते है कि हम जांचे कि हमारा हृदय कहाँ केंद्रित है। सतीश का ध्यान कहाँ था? दूसरों से प्रेम करने के द्वारा परमेश्वर से प्रेम करने पर। वह उन बड़े कमरों में ऊपर और नीचे घूमते थे जहां वे रहते थे, अपने मिलने वालों का अभिवादन और उनको प्रोत्साहित करते थे । अगर किसी की आंखों में आंसू होते, तो वह एक सुकून देने वाले शब्द या सुनने वाले कान या दिल से की गई प्रार्थना करने के लिए मौजूद रहते थे। उनका मन इस बात पर केंद्रित था कि वह अपना जीवन परमेश्वर का आदर और दूसरों की भलाई करने के लिए जीएँ।
हम शायद खुद से पूछना चाहेंगे कि क्या हम कम चीजों में भी खुश रह सकते हैं जो हमें दौड़-धूप कराती हैं और हमें परमेश्वर और दूसरों से प्रेम करने के अधिक महत्वपूर्ण विषय से विचलित करती हैं। "जहाँ [हमारा] धन है, वहाँ [हमारा] मन भी रहेगा" (पद 21 )। हम जिस चीज को महत्व देते हैं, वह इस बात से झलकती है कि हम कैसे जीवन जीते हैं।
परमेश्वर में प्रोत्साहित
1925 में, एक महत्वाकांक्षी लेखक, लैंगस्टन ह्यूज, जो एक होटल में सहायक वेटर के रूप में काम कर रहे थे, ने पाया कि एक कवि जिन्हें वह बहुत पसंद करते थे (वेचल लिंडसे) वहाँ एक अतिथि के रूप में रह रहे थे। ह्यूज ने हिचकते हुए लिंडसे को अपनी खुद की कुछ कविताएँ पहुँचा दी, जिनकी लिंडसे ने बाद में एक सार्वजनिक पठन दौरान उत्साहपूर्वक प्रशंसा की। लिंडसे के प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप ह्यूज को विश्वविद्यालय की छात्रवृत्ति प्राप्त हुई, जिससे वह अपने स्वयं के सफल लेखन आजीविका के रास्ते पर आगे बढ़ गए।
थोड़ा सा प्रोत्साहन बहुत आगे बढ़ा सकता है, खासकर तब जब परमेश्वर उसमें हो। पवित्रशास्त्र एक घटना के बारे में बताती है जब दाऊद राजा शाऊल से भाग रहा था, जो "उसकी जान लेने" की कोशिश कर रहा था। शाऊल के पुत्र योनातान ने दाऊद को ढूंढ़ निकाला, "और परमेश्वर [में] ढाढ़स दिलाया l उसने उससे कहा, ‘मत डर; क्योंकि तू मेरे पिता शाऊल के हाथ न पड़ेगा; और तू ही इस्राएल का राजा होगा’” (1 शमूएल 23:15-17)।
योनातान सही था। दाऊद को राजा होना था। योनातान द्वारा दिए गए प्रभावी प्रोत्साहन का मूल सरल वाक्यांश "परमेश्वर [में]" (पद 16 )पाया जाता है। यीशु के द्वारा, परमेश्वर हमें "अनंत शांति और उत्तम आशा" दी है (2 थिस्सलुनीकियों 2:16)। जब हम अपने आप को उसके सामने नम्र करते हैं, तो वह हमें इस प्रकार ऊंचा करता करता है जैसा कोई नहीं कर सकता।
हमारे चारों ओर ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर द्वारा दिए गए प्रोत्साहन की आवश्यकता है। यदि हम भी उन्हें वैसे ही ढूंढ़ते हैं जैसे योनातान ने दाऊद को ढूंढा और कोमल वचन या कार्य के द्वारा उन्हें धीरे से परमेश्वर की ओर केंद्रित करते है, तो वह बाकी का काम पूरा करेगा। इस जीवन में चाहे जो भी हो, अनंत काल में एक उज्ज्वल भविष्य उन लोगों की प्रतीक्षा करता है जो उस पर भरोसा करते हैं।
अपने वरदानों को संभालना
2013 में, ब्रिटिश अभिनेता डेविड सुशे एक प्रसिद्ध टीवी श्रृंखला के अंतिम एपिसोड का फिल्मांकन कर रहे थे और साथ ही एक नाटक में एक प्रमुख भूमिका निभा रहे थे─जब उन्होंने "जीवन में [अपनी] सबसे बड़ी भूमिका" चुनी। इन परियोजनाओं के बीच उन्होंने उत्पत्ति से लेकर प्रकाशितवाक्य तक पूरी बाइबल का एक ऑडियो संस्करण रिकॉर्ड किया─ 752, 702 शब्द─दो सौ घंटे से अधिक।
डेविड, जो एक होटल के कमरे में मिली बाइबिल में रोमियों की पुस्तक पढ़ने के बाद यीशु में एक विश्वासी बने , उन्होंने इस परियोजना को "27 साल की लंबी महत्वाकांक्षा" की पूर्ति कहा। मैं इससे बहुत प्रेरित हुई। मैंने इसके हर हिस्से पर इतनी खोज की जिसका मैं आगे बढ़ने का इंतजार नहीं कर पा रही थी। ” इसके बाद उन्होंने अपना वेतन दान कर दिया।
उनकी रिकॉर्डिंग इस बात का एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे एक वरदान का भण्डारी बनकर, और फिर उसे दूसरों के साथ बाँटकर परमेश्वर की महिमा की जाए। पहली सदी के विश्वासियों को लिखी अपनी पत्री में पतरस ने ऐसे भण्डारीपन का आग्रह किया। कैसर नहीं, परंतु यीशु की आराधना करने के कारण सताया जाना, उन्हें यह चुनौती दी गई कि वे अपने आत्मिक वरदानों को पोषित करके परमेश्वर के लिए जीने पर ध्यान केंद्रित करें। "यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले मानो परमेश्वर का वचन है" (1 पतरस 4:11 )। सभी वरदानों की तरह, हम उन्हें विकसित कर सकते हैं “जिससे सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट हो।”
ठीक वैसे ही जैसे इस अभिनेता ने अपनी योग्यता परमेश्वर को अर्पित की। हम भी ऐसा कर सकते हैं। परमेश्वर ने जो कुछ भी आपको दिया है, उसे उसकी महिमा के लिए अच्छी तरह से प्रबंधित करें।