जब मेरे एक मित्र ने हमारी दस साल पुरानी दोस्ती बिना कोई कारण बताएं तोड़ दी, तो मैं लोगों से दूरी बनाने की अपनी पुरानी आदत में पुनः लौट गया l अपने दुख से संघर्ष करते हुए, मैंने अपनी अलमारी से सी.एस.लिउईस की लिखी किताब द फोर लव्ज़(The Four Loves) निकाली l लिउईस ध्यान देता है कि प्रेम अतिसंवेदनशीलता की मांग करता है l वह कहता है कि जब कोई प्रेम करने का जोखिम उठाता है तो “कोई सुरक्षित निवेश नहीं” होता है l वह सलाह देता है कि “किसी चीज़ से” प्रेम करने का “[भावी परिणाम] हृदय का अत्यधिक दुखित होना/निचोड़ा जाना और संभवतः टूटना है l” उन शब्दों को पढ़ने से उस वृतांत को पढ़ने का मेरा दृष्टिकोण बदल गया कि किस प्रकार पतरस का यीशु का एक बार नहीं बल्कि तीन बार इनकार करने के बाद, यीशु अपने पुनरुत्थान के बाद अपने शिष्यों के समक्ष एक बार नहीं बल्कि तीन बार प्रकट होता है (यूहन्ना 21:1-14) l

यीशु ने कहा “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इन से बढ़कर मुझसे प्रेम रखता है?” (21:15)।

धोखा और अस्वीकृति के डंक के अनुभव के बाद, यीशु ने पतरस से भय के जगह साहस, निर्बलता की जगह सामर्थ्य, निराशा की जगह निःस्वार्थता से बात की l अपने प्रेम करने की इच्छा की पुष्टि के द्वारा उसने क्रोध की जगह करुणा को प्रदर्शित किया।

पवित्रशास्त्र प्रगट करता कि पतरस आहत हुआ क्योंकि यीशु ने उससे तीसरी बार पूछा, “क्या तू मुझसे प्रीति रखता है?” (पद.17) l लेकिन जब यीशु ने पतरस से दूसरों से प्रेम(पद. 15-17)   एवं उसका अनुसरण करके (पद.19) अपना प्रेम प्रमाणित करने को कहा, तो उसने अपने सभी शिष्यों से बिना किसी शर्त के प्रेम का जोखिम उठाने को आमंत्रित किया l हममें से प्रत्येक को उत्तर देना होगा जब यीशु पूछेगा, “क्या तुम मुझसे प्रीति रखते हो?” हमारा उत्तर असर डालेगा कि हम दूसरों से किस तरह प्रेम करते हैं l