हमारी तरह, हमारे लिए
प्रीति ने देखा कि उसकी बेटी मॉल में अपनी टोपी नहीं उतारना चाह रही थी और समझ गयी कि इलाज के एक हिस्से के अंतर्गत अत्यधिक कीमोथेरेपी से उत्पन्न गंजेपन के विषय संकोची थी l अपनी बेटी की मदद करने के लिए कृतसंकल्प, उसने अपने लम्बे, शोभायमान बालों को मुंडवाने का पीड़ादायक चुनाव किया ताकि वह अपनी बेटी के साथ तादात्म्य स्थापित कर सके l
प्रीति का अपनी बेटी से प्रेम परमेश्वर का उसके पुत्र और पुत्रियाँ के लिए प्रेम को प्रदर्शित करता है l क्योंकि हम, उसकी संतान, “मांस और लहू के भागी हैं (इब्रानियों 2:14), यीशु हमारी तरह बन गया और मानव देह धारण किया और [हमारा] “सहभागी” हो गया, ताकि मृत्यु . . . को निकम्मा कर दे (पद.14) l “उसको चाहिए था, कि सब बातों में [हमारे] . . . समान बने” (पद.17) ताकि हमारे लिए परमेश्वर के साथ सब बातों को सही कर दे l
प्रीति अपनी बेटी को उसके संकोच पर जीत दिलाने में मदद करना चाहती थी और इसलिए खुद को अपनी बेटी की “तरह” बना डाली l यीशु ने हमें हमारी अत्यधिक बड़ी समस्या पर जीत दिलाने में मदद की─दासत्व से मृत्यु l उसने खुद को हमारे समान बनाकर, हमारे पाप का परिणाम अपने ऊपर उठाकर हमारे स्थान पर मृत्यु सहकर हमारे लिए जीत हासिल की l
यीशु का हमारे मनुष्यत्व को स्वेच्छा से साझा करने की इच्छा न केवल परमेश्वर के साथ सही सम्बन्ध सुनिश्चित किया लेकिन संघर्ष के हमारे क्षणों में उस पर भरोसा करने में योग्य बनाता है l जब हम आजमाइश और कठिनाई का सामना करते हैं, तो हम सामर्थ और सहयोग के लिए उस पर टिक सकते हैं क्योंकि वह “सहायता कर सकता है” (पद.18) l एक प्रेमी पिता की तरह, वह हमें समझता और हमारी चिंता करता है।
हर पल का सदुपयोग
उत्तरी कैरोलिना के विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी के लेखागार(archive) में पॉकेट घड़ी की ठहरी हुए सुइयाँ एक डरावनी कहानी सुनाती हैं l वे सुइयाँ ठीक क्षण(8.19 और 56 सेकंड) अंकित करती हैं जब घड़ी का मालिक एलिशा मिशेल जून 27, 1857 की सुबह अपालाचिया पहाड़ में एक जलप्रपात से फिसल मर गए l
मिशेल, विश्वविद्यालय में प्रोफेसर, उस शिखर पर जहाँ वे थे खुद के किए गए (सही) दावे के बचाव के लिए डेटा जुटा रहे थे─आज जो उनके नाम से पुकारा जाता है, माउंट मिशेल─ मिसीसिपी के पूर्व में सबसे ऊंचा है l उनकी कब्र पर्वत के शिखर पर स्थित है l यह उस जगह से बहुत दूर नहीं जहां से वह गिरे थे।
अभी हाल ही में जब मैं उस पर्वत शिखर पर गया, मैंने मिशेल की कहानी और स्वयं की नश्वरता और हममें से हर एक के पास इतना ही समय है पर विचार किया l फिर मैंने यीशु मसीह के उन शब्दों पर ध्यान दिया जो उसने अपनी वापसी के विषय चेलों से जैतून के पहाड़ पर कहे थे : “इसलिए तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा”(मत्ती 24:44)।
यीशु मसीह स्पष्टता से संकेत करता हैं कि हममें से कोई भी नहीं जानता कि वह किस घड़ी लौटेगा और सर्वदा के लिए अपना राज्य स्थापित करेगा अथवा कब वह हमें इस संसार को छोड़ने और उसके पास जाने के लिए l परंतु वह हमसे तैयार रहने और “जागते”(पद.42) रहने के लिए कहता है l
टिक . . . टिक . . . l हममें से प्रत्येक के जीवन की “घड़ी के पुर्जे” चलते रहते हैं─लेकिन कितने समय तक? हम अपने करुणामाय उद्धारकर्ता के साथ अपने पलों को प्रेम में जीते हुए उसका इंतज़ार और उसके लिए कार्य करते रहें l
एक गधे पर सवार राजा
वह रविवार का दिन था─जिसे हम अब खजूर का रविवार कहते हैं। इसमें कोई संशय नहीं कि यह यीशु मसीह का यरूशलेम में पहली बार प्रवेश नहीं था। एक धर्मनिष्ठ यहूदी होने के नाते वह इस शहर में हर वर्ष तीन महापर्वों के लिए जाता रहा होगा(लूका 2:41-42; यूहन्ना 2:13; 5:1) पिछले 3 वर्षों में, यीशु ने यरूशलेम में सेवा और लोगों को शिक्षा दी थी। परंतु इस रविवार को उसका शहर में आना मौलिक रूप से भिन्न था l
उस समय यरूशलेम में एक छोटे गधे पर सवारी करना जब हज़ारों उपासक शहर में आ रहे थे, यीशु आकर्षण का केंद्र था (मत्ती 21:9-11)। जबकि पिछले 3 वर्षों में उसने सबके सामने अपने आपको कम प्रगट किया तो क्यों अब उसने हजारों लोगों के सामने प्रमुखता का स्थान प्राप्त करना चाही? अपनी मृत्यु से मात्र 5 दिन पहले वह लोगों द्वारा स्वयं को राजा कहलवाना क्यों स्वीकार करना चाहता था?
मत्ती कहता है कि 500 वर्ष पुरानी भविष्यवाणी की पूर्णता के लिए ऐसा हुआ (मत्ती 21:4-5) कि यरूशलेम में परमेश्वर का चुना हुआ राजा “धर्मी और उद्धार पाया हुआ, [फिर भी] दीन और गधे . . . पर चढ़ा हुआ आएगा” (जकर्याह 9:9; और उत्पत्ति 49:10-11 भी देखें)।
एक जयवंत राजा का इस तरह किसी शहर में प्रवेश करना वास्तव में एक असाधरण तरीका था l विजेता राजा आमतौर पर बहुत बड़े घोड़ों पर सवार होकर शहर में प्रवेश करते थे l परंतु यीशु एक जंगी घोड़े पर सवार होकर नहीं आया l यह प्रगट करता है कि यीशु किस प्रकार का राजा था। वह बड़ी दीनता और नम्रता के साथ आया l यीशु युद्ध करने नहीं परंतु शांति के लिए आया, परमेश्वर और हमारे बिच शांति स्थापित करने के लिए आया (प्रेरितों 10:36; कुलुस्सियों 1:20)।
चैटी बस(Chatty Bus)
2019 में ऑक्सफोर्ड बस कंपनी ने एक नयी “चैटी बस (Chatty बस)” का लोकार्पण किया जो तुरंत लोकप्रिय हो गयी, बस जिसमें नियुक्त लोग रूचि रखने वाले यात्रियों से बात कर सकें l इस बस मार्ग की पहल सरकार की रिसर्च के प्रतिउत्तर में थी जिसमें यह पाया गया कि 30 फीसदी ब्रिटनवासी कम से कम सप्ताह में एक दिन व्यर्थ संवाद करते हुए यात्रा करते हैं l
हममें से कई लोग कदाचित अकेलेपन का अनुभव किये हैं जिनके साथ आवश्यकता के समय किसी ने बातचीत नहीं की l जब मैं अपने जीवन में विशेष संवादों के महत्व पर विचार करता हूँ, मुझे वे चर्चाएँ याद आती हैं जो अनुग्रह से परिपूर्ण थीं l वे समय मेरे जीवन में आनंद और प्रोत्साहन लेकर आए, और वे घनिष्ठ सम्बन्ध बनाने में मदद किये l
कुलुस्से की कलीसिया को लिखी अपनी पत्री के अंत में, पौलुस अपने पाठकों को यीशु में विश्वासियों के लिए सच्चे जीवन के सिद्धांतों से उत्साहित करता है, जिसमें हमारे संवाद के वे तरीके शामिल हैं जो उन सभी के समक्ष प्रेम प्रगट कर सकते हैं जिनसे हमारा सामना होता है l प्रेरित यह लिखते हुए, “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित हो” (पद 4-6) अपने पाठकों को याद दिलाता है कि न केवल शब्दों द्वारा परंतु शब्दों की गुणवत्ता─"अनुग्रह से परिपूर्ण"─जो उन्हें दूसरों को वास्तविक प्रोत्साहन देनेवाले बनाएगा l
अगली बार जब आपको किसी से बातचीत द्वारा गहराई से जुड़ने का अवसर मिले─एक दोस्त, एक सहकर्मी या फिर आपके साथ बस में बैठे एक यात्री या फिर वेटिंग रूम में बैठे हुए किसी व्यक्ति के साथ─कोई ऐसा अवसर ढूंढ लें जिसके कारण साथ बिताया गया समय आप दोनों के जीवन के लिए आशीष का कारण बनें।