स्थाई पता
अभी हाल ही में हम अपने पुराने घर से कुछ दूर अपने अन्य घर में आए हैं l निकट होने के बावजूद भी, हमें आर्थिक लेन-देन के समय के कारण एक सामान ले जानेवाले ट्रक में अपना सारा सामान लोड करना पड़ा l पुराने घर के बेचने और नया घर खरीदने के बीच, हमारा साज-सामान ट्रक पर ही रखा रहा और हमारे परिवार ने अस्थायी निवास ढूंढ लिया l उस समय के दौरान, मैं यह जानकार चकित हुयी कि किस प्रकार “घर में” हमने हमारे भौतिक घर से विस्स्थापन महसूस की─केवल इसलिए क्योंकि मैं अपने सबसे प्रियों के साथ थी : मेरा परिवार l
अपने जीवन में कुछ समय, दाऊद के पास एक भौतिक घर नहीं था l उसने राजा शाऊल के कारण भगोड़ा का जीवन जीया l सिंहासन पर परमेश्वर के नियुक्त उत्तराधिकारी के रूप में, शाऊल, दाऊद को ख़तरा के रूप में देखता था और उसकी हत्या करने की कोशिश की l दाऊद अपने घर से भाग गया और जहां भी उसे आश्रय मिला वह सो गया l यद्यपि उसके साथ साथी थे, दाऊद की दिली इच्छा “यहोवा के भवन में” रहने की थी─उसके साथ स्थायी सहभागिता का आनंद लेने के लिए (भजन 27:4) l
चाहे हम कहीं भी हैं, यीशु हमारा निरंतर साथी है, हमारे “घर” का अहसास है l वह हमारे वर्तमान परेशानियों में है और वह उसके साथ रहने के लिए हमारे लिए घर भी तैयार कर रहा है (यूहन्ना 14:3) l इस पृथ्वी के नागरिक होकर अनिश्चितता और परिवर्तन का अनुभव के बावजूद, हम प्रति दिन और हर जगह उसके साथ अपनी संगति में स्थायी रूप से निवास कर सकते हैं l
परमेश्वर केंद्रित
जब मैं सगाई की अंगूठियों की खरीदारी कर रहा था, तो मैंने बिल्कुल सही हीरे की तलाश में कई घंटे बिताए। मैं इस विचार से त्रस्त था, क्या होगा अगर मैं सबसे उत्तम पाने से चूक गया?
आर्थिक मनोवैज्ञानिक बैरी श्वार्ट्ज के अनुसार, मेरा ज़्यादातर अनिर्णय होना इशारा करता है कि मैं वह हूं जिसे वह "संतोषकर्ता" के विपरीत "अधिकतम" कहता है। एक संतोष करने वाला व्यक्ति इस आधार पर चुनाव करता है कि उसकी जरूरतों के लिए कुछ पर्याप्त है या नहीं। अधिकतमकर्ता? हमारी ज़रूरत हमेशा उत्तम चुनाव करने की रहती है (दोषी!)। हमारे सामने कई विकल्पों के कारण अनिर्णय का संभावित परिणाम? चिंता, अवसाद और असंतोष। वास्तव में, समाजशास्त्रियों ने इस घटना के लिए एक और वाक्यांश गढ़ा है: चूक जाने का डर।
हमें निश्चित रूप से पवित्रशास्त्र में अधिकतमकर्ता या संतोषकर्त्ता शब्द नहीं मिलेंगे। लेकिन हम इसी प्रकार का विचार ज़रूर पाते है। 1 तीमुथियुस में, पौलुस ने तीमुथियुस को चुनौती दी कि वह इस दुनिया की वस्तुओं के विपरीत परमेश्वर में मूल्य खोजें। दुनिया द्वारा पूरे होने के लिए किए गए वादे कभी भी भरपूरी से पूरे नहीं हो सकते। पौलुस चाहता था कि तीमुथियुस इसके बजाय अपनी पहचान को परमेश्वर में बढ्ने दे: "संतोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है" (6:6)। पौलुस एक संतुष्ट व्यक्ति की तरह लगता है जब वह आगे कहता है, "यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर संतोष करना चाहिए" (पद 8)।
जब मैं उन असंख्य तरीकों के बारे में सोचता हूं, जिन्हें दुनिया पूरा करने का वादा करती है, तो मैं आमतौर पर बेचैन और असंतुष्ट हो जाता हूं। लेकिन जब मैं परमेश्वर पर ध्यान केंद्रित करता हूं और अधिकतम करने के लिए अपने बलपूर्वक आग्रह को त्याग देता हूं, तो मेरी आत्मा वास्तविक संतोष और शांति की ओर बढ़ती है।
वास्तविक आतिथ्य
अतिथि के रूप में आप अक्सर तमिलनाडु के कई घरों में यह सुनेंगे l यह तमिल लोगों का अपने मेहमान के प्रति देखभाल और नेकी दिखाने का तरीका है। आपका उत्तर चाहे कुछ भी हो, लेकिन वे हमेशा आपको कुछ खाने के लिए या कम से कम एक गिलास पानी या कुछ पीने के लिए देंगे l तमिल लोगों का मानना है कि सच्ची नेकी केवल आदर्श अभिवादन नहीं है लेकिन वास्तविक आतित्थ्य प्रगट करने के लिए शब्दों के पार भी जाना है l
रेबेका भी नेक बनने के विषय सब कुछ जानती थी l उसके दैनिक कार्य में शहर के बाहर कुएं से जल भरकर भारी घड़े को घर ले जाना भी शामिल था l जब अब्राहम के सेवक ने, जो अपनी लम्बी यात्रा के कारण बहुत प्यासा था, उसके घड़े से थोड़ा पानी माँगा, वह उसे जल देने में हिचक महसूस नहीं की(उत्पत्ति 24:17-18) l
लेकिन रिबका ने इससे भी अधिक की l जब उसने देखा कि उसके ऊँट भी प्यासे हैं, वह उनके लिए और जल लाने के लिए तैयार हुयी (पद.19-20) l वह सहायता करने में हिचकिचायी नहीं, यदि उसे एक अतिरिक्त बार (या उससे अधिक बार) भी भारी घड़ा लेकर उस कुएं पर जाना पड़ता l
कई लोगों के लिए जीवन कठिन है और अक्सर दया का एक व्यवहारिक भाव उनकी आत्मा को प्रोत्साहित एवं उठा सकता है l परमेश्वर के प्रेम का वाहिका होकर एक सशक्त उपदेश देना या एक कलीसिया रोपना हमेशा नहीं होता l कभी-कभी, यह केवल किसी को एक गिलास पानी देना हो सकता है l
पार्किंग स्थल झगड़ा
पार्किंग स्थल का दृश्य देखने में हास्यास्पद होता यदि वह उतना त्रासदीपूर्ण नहीं होता l दो वाहन चालक एक कार के रास्ता रोकने के कारण ऊंची आवाज में झगड़ा कर रहे थे, जिसमें वह एक दूसरे को बुरा भला कह रहे थे।
इसे इस बात ने और भी ख़ास दर्दनाक बना दिया कि यह झगड़ा चर्च के पार्किंग स्थल में हो रहा था l शायद अभी-अभी इन दो आदमियों ने प्रेम, धीरज, या क्षमा के विषय उपदेश सुना था, लेकिन उस क्रोध के क्षण में वे सब कुछ भूल गए थे l
गुज़रते हुए, मैंने अपना सिर हिलाया─फिर तुरंत अनुभव किया कि मैं भी बेहतर नहीं था l मैंने भी बाइबल को बहुत बार पढ़ा था, कुछ क्षण बाद केवल एक निर्दय विचार के साथ पाप में गिरने के लिए? कितनी बार मैंने उस व्यक्ति की तरह व्यवहार किया था जो “उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है l इसलिए कि वह अपने आप को देखकर चला जाता और तुरंत भूल जाता है कि मैं कैसा था”(याकूब 1:23-24)?
याकूब अपने पढ़ने वालों से अपील कर रहा था कि न केवल पढ़ें और परमेश्वर के निर्देशों पर विचार करें, बल्कि उसके कहे अनुसार करें भी (पद.22) l उसने ध्यान दिया कि एक संपूर्ण विश्वास का अर्थ वचन को जानना और उसे कार्य रूप देना है l
जो वचन में लिखा है उसे जीवन की परिस्थितियां लागू करने में कठिन बना सकती हैं। परंतु यदि हम पिता से सहायता मांगते हैं तो वह अवश्य ही अपने वचन को मानने में एवं अपने कार्य द्वारा उसे प्रसन्न करने में मदद करेगा l
एक अच्छा काम
किशोर के रूप में, स्पर्जन ने परमेश्वर के साथ कुश्ती की l वह चर्च जाते हुए बड़े हुए थे परंतु वहां जो उपदेश होते थे वे उनको अरोचक और अर्थहीन लगते थे l उनके लिए परमेश्वर पर विश्वास करना एक संघर्ष था, उनके अपने शब्दों में, “चार्ल्स, ने विरोध और विद्रोह किया l” एक रात एक भयंकर बर्फानी तूफ़ान ने उन्हें एक छोटे मैथोडिस्ट चर्च में आश्रय लेने को विवश किया l चर्च के पासवान का उपदेश व्यक्तिगत रूप से उनकी ओर निर्देशित महसूस हुआ l उसी क्षण, परमेश्वर कुश्ती मैच जीत गया, और चार्ल्स ने अपना हृदय यीशु को दे दिया
स्पर्जन ने बाद में लिखा, “मेरा मसीह के साथ आरम्भ करने से बहुत पहले, उसने मेरे साथ आरम्भ किया l” वास्तव में, परमेश्वर के साथ हमारा जीवन उद्धार पाने के क्षण से आरंभ नहीं होता है। भजनकार इस प्रकार लिखता है कि परमेश्वर ने हमारे भीतरी अंगों को बनाते हुए “[हमें] माता के गर्भ में रचा” (भजन 139:13) l पौलुस प्रेरित लिखते हैं, “परन्तु परमेश्वर की, जिसने मेरी माता के गर्भ ही से मुझे ठहराया और अपने अनुग्रह से बुला लिया” (गलातियों 1:15) l जब हमारा उद्धार होता है तब परमेश्वर हममें काम करना बंद नहीं करता: “जिस ने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा” (फिलिप्पियों 1:6)।
हम सब वे कार्य हैं जो एक प्रेमी परमेश्वर के हाथ में प्रगति पर हैं l वह हमें हमारे विद्रोही द्वंद से निकाल कर अपने स्नेही गोद में ले लेता है। परंतु उस समय हमारे साथ उसका उद्देश्य केवल एक आरम्भ है l “क्योंकि परमेश्वर ही है, जिस नें अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है”(फिलिप्पियों 2:13)। विश्राम निश्चित है, हम उसके अच्छे कार्य हैं बावजूद इसके कि हमारी उम्र कितनी है या हम जीवन के किस पड़ाव पर हैं l