एक ओर्का व्हेल, जिसे शोधकर्ताओं ने “ग्रैनी” नाम दिया है, जाहिर तौर पर “ग्रैंडबेबी व्हेल” के जीवन में अपने भूमिका के महत्व को जानती थी। हाल ही में युवा व्हेल की माँ मर गयी थी, और अनाथ व्हेल इतनी बड़ी नहीं थी कि बिना सुरक्षा और सहारे के बढ़ सके। भले ही ग्रैनी 80 वर्ष की (या उससे अधिक), उसके साथ थी उसे वह सिखाने के लिए जो उसे जानना जरूरी था। ग्रैनी कुछ मछलियों को खुद खाने के बजाय छोट्टे व्हेल के लिए इकट्ठा करती। ताकि वह न केवल भोजन करता बल्कि यह भी सीखता की क्या खाना है और सैलमन (मछली) कहाँ ढूँढनी है जो उसके जीने के लिए जरूरी है। 

हम जो कुछ जानते हैं उसे आगे बढ़ाने का एक अलग आदर और आनंद हमारे पास भी है—जो हमारे बाद आ रहे है उनके साथ हम परमेश्वर के अद्भुत कामों और स्वभाव को बाँट सकते हैं। उम्र में बढ़ता भजनकार परमेश्वर से कहता है “… मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्न होनेवालों को तेरा पराक्रम न सुनाऊँ।”(भजन 71:18)। जो वह परमेश्वर के बारे में जनता है उसे वह दिल से दूसरों के साथ बाँटना चाहता है–“धर्म का काम, और तेरे किए हुए उद्धार का वर्णन …”—जो हमें फलने-फूलने के लिए आवश्यक है (v.15)।

भले ही हमारे पास बुढ़ापे के पक्के बाल न हो (v.18), यह घोषणा करना कि हमने परमेश्वर के प्रेम और विश्वासयोग्यता को कैसे अनुभव किया है किसी को उनके साथ उसकी यात्रा में लाभ दे सकता है। उस बुद्धि को बाँटने की हमारी इच्छा वह जो उस व्यक्ति को विपत्ति के समय भी मसीह में जीने और बढ़ने के लिए आवश्यक हो सकता है (v.20)।