श्वेता का परिवार उसकी आँखों के सामने बिखर रहा था l उसका पति अचानक घर छोड़कर चला गया था, और वह और उसके बच्चे दुविधाग्रस्त’ और क्रोधित थे l उसने उसे अपने साथ उनकी शादी पर परामर्श/सलाह लेने के लिए चलने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं गया क्योंकि उसने दावा किया कि समस्याएँ उसकी (श्वेता की) थीं l घबराहट और निराशा तब शुरु हुयी जब उसने महसूस किया कि शायद वह कभी नहीं लौटेगा l क्या वह अकेले अपना और अपने बच्चों का ख्याल रख पाएगी?

अब्राहम और सारा की एक दासी हाजिरा ने भी उन विचारों का सामना कियाl परमेश्वर की प्रतिज्ञा के अनुसार कि वह उन्हें एक पुत्र देगा उसकी प्रतीक्षा में अधीर होकर(उत्पत्ति 12,15)सारा ने अपने पति को अपनी दासी हाजिरा दे दी,और हाजिरा ने इश्माएल को जन्म दियाI (16:1-4, 15) हालाँकि,जब परमेश्वर ने अपना वादा पूरा किया और सारा ने इसहाक को जन्म दिया, तो पारिवारिक तनाव इस कदर बढ़ गया कि अब्राहम ने हाजिरा को अपने बेटे इश्माएल के साथ बस थोड़े पानी और भोजन के साथ खुद से दूर कर दियाI (21:8-21) क्या आप उसकी हताशा की कल्पना कर सकते हैं? जल्द ही रेगिस्तान में उनकी खाद्य सामग्री ख़त्म हो गयी l नहीं जानते हुए कि क्या करना है और ना ही अपने बेटे को मरते हुए देख, हाजिरा इश्माएल, हाजिरा इश्माएल को एक झाड़ी के नीचे रखकर दूर चली गयी l वे दोनों सिसकने लगे l परन्तु “परमेश्वर ने उस लड़के की सुनीI” (पद.17) उसने उनकी पुकार सुनी, उनकी ज़रूरतें पूरी की,और उनके साथ रहाl 

जब हम खुद को अकेला महसूस करते हैं तब हताशा का समय हमरे लिए ईश्वर को पुकारने का कारण बनता है l यह जानकर कितना सुकून मिलता है कि उन क्षणों के दौरान और हमारे पूरे जीवन में, वह हमें सुनता है, हमारे लिए प्रबंध करता है, और हमारे निकट रहता है l