सन् 2010 में, सुमात्रा के इंडोनेशियाई द्वीप पर सूनामी आया, जिसमें चार सौ से अधिक लोग मारे गए। परन्तु यदि सुनामी की चेतावनी प्रणाली ठीक से काम कर रही होती तो उन मौतों को रोका या कम किया जा सकता था। सूनामी का पता लगाने वाले तंत्र (buoys) अलग हो गए थे और बहकर दूर चले गए थे।

यीशु ने कहा कि उसके चेलों की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने साथी चेलों को उन बातों के बारे में चेतावनी दें जो उन्हें आत्मिक रूप से हानि पहुँचा सकती हैं, जिसमें वह पाप भी शामिल है जिसका पश्चाताप नहीं किया गया है। उसने एक ऐसी प्रक्रिया को रेखांकित किया जिसमें एक विश्वासी जिसने दूसरे के विरुद्ध पाप किया हो, वह विनम्रतापूर्वक, निजी तौर पर, और प्रार्थनापूर्वक अपराधी विश्वासी के पाप की ओर “संकेत” कर सकता है (मत्ती 18:15)। यदि वह व्यक्ति पश्चाताप करे, तो उस संघर्ष को सुलझाकर सम्बन्ध को बहाल किया जा सकता है। यदि वह विश्वासी पश्चाताप करने से इन्कार करता है, तो “एक या दो अन्य लोग”उस संघर्ष को सुलझाने में सहायता कर सकते हैं (पद 16)। यदि वह पापी व्यक्ति फिर भी पश्चाताप नहीं करता, तो इस मुद्दे को “कलीसिया” के सामने लाया जाना चाहिए (पद 17)। यदि वह अपराधी फिर भी पश्चाताप न करे,तो उस व्यक्ति को मंडली की संगति से निकाल देना चाहिए, परन्तु निश्चित रूप से उसके लिए अब भी प्रार्थना की जा सकती है और उस पर मसीह का प्रेम प्रकट किया जा सकता यीशु में विश्वासियों के रूप में,

आइए हम उस ज्ञान और साहस के लिए प्रार्थना करें जिसकी हमें आवश्यकता है, अपश्चातापी पाप के खतरों के बारे में एक दूसरे को प्यार से चेतावनी  देने के लिए और हमारे स्वर्गीय पिता और अन्य विश्वासियों के लिए पुनःस्थापन की खुशियों के बारे में बताने के लिए। जब हम ऐसा करेंगेतो यीशु “वहाँ … [हमारे] साथ” होगा (पद 20)।