न बदलनेवाला परमेश्वर
एक प्रतिष्ठित तस्वीर भूरे रंग की पृष्ठभूमि पर बूट के चिन्ह को दिखाता है। यह अंतरिक्ष यात्री बज़ एल्ड्रिन का पदचिह्न है, जिसे उन्होंने 1969 में चंद्रमा पर छोड़ा था। वैज्ञानिकों का कहना है कि इतने सालों के बाद भी पदचिन्ह अभी भी है, अपरिवर्तित है। हवा या पानी के बिना, चंद्रमा पर कुछ भी नष्ट नहीं होता है, इसलिए चंद्र परिदृश्य पर जो कुछ भी होता है, वह वहीं रहता है।
स्वयं परमेश्वर की निरंतर उपस्थिति पर मनन करना और भी अधिक अद्भुत है। याकूब लिखता है, “क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिसमें न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, और न ही वह परछाई के समान बदलता है।” (याकूब 1:17) प्रेरित इसे हमारे अपने संघर्षों के संदर्भ में कहते हैं: “... जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो,” (पद 2)। क्यों? क्योंकि हम एक महान और न बदलने वाले परमेश्वर के द्वारा प्रेम किए गए हैं!
मुश्किलों के समयों में, हमें परमेश्वर के निरंतर प्रावधान को याद करना चाहिए। शायद हम महान भजन “महान है तेरा विश्वासयोग्यता”( “Great Is Thy Faithfulness”) के शब्दों को याद कर सकते हैं: “तू कभी प्रभु बदलता नहीं; / ना बदलता, ना दया मिटता है; / जैसा तू है सदा रहेगा भी।” हाँ, हमारे परमेश्वर ने हमारे संसार पर अपना स्थायी पदचिन्ह छोड़ा है। वह हमेशा हमारे लिए रहेगा। उसकी विश्वासयोग्यता महान है।
अपने पड़ोसी से प्रेम रखना
युवा ग्रुप में यह एक मजेदार खेल था, लेकिन यह हमारे लिए एक पाठ था: पड़ोसी बदलने के बजाय, उनसे प्रेम करना सीखें जो आपके पास है। सब कोई एक बड़े गोले में बैठा है, सिवाय एक व्यक्ति के जो घेरे के बिच में खड़ा रहता है। वह खड़ा व्यक्ति बैठे हुए में से किसी एक से पूछता है, “क्या तुम अपने पड़ोसी से प्रेम करते हो” बैठा हुआ व्यक्ति उस प्रश्न को दो तरीकों से जवाब दे सकता है: हाँ या नहीं। उसे निर्णय लेने का मौका मिलता है यदि वह अपने पड़ोसी को किसी और से बदलना चाहता है।
क्या हम नहीं चाहते की वास्तविक जीवन में भी हम अपना “पड़ोसी” चुन सकें? खासकर जब हमारे पास एक ऐसा सहकर्मी है जिसके साथ हमारी पटती न हो या पड़ोस का कोई पड़ोसी जो गलत समय पर मैदान का घास काटना पसंद करता है। हालाँकि, हमें अपने कठिन पड़ोसियों के साथ जीना सीखना होगा।
जब इस्राएली प्रतिज्ञा किए हुए देश में गये, परमेश्वर ने उन्हें अपने लोगों के रूप में जीने के लिए महत्वपूर्ण शिक्षा दिए। उन्हें कहा गया “परन्तु एक दूसरे से अपने समान प्रेम रखना;” (लैव्यव्यवस्था 19:18), जिसमें बकवाद या अफवाहें न फैलाना, अपने पड़ोसियों का फायदा न उठाना, और अगर हमारे पास उनके खिलाफ कुछ है तो उनसे सीधा मिलना (पद 9-18) शामिल है।
जबकि सबसे प्रेम करना कठिन है, दूसरों के साथ प्रेमपूर्ण तरीके से व्यवहार करना संभव है क्योंकि यीशु हम में और हमारे द्वारा कार्य करता है। जब हम उसके लोगों के रूप में अपनी पहचान को जीने की कोशिश करते हैं तो परमेश्वर हमें ऐसा करने के लिए बुद्धि और क्षमता प्रदान करेंगे।
हमारा शरणस्थान
उत्तरी अमेरिका में एक जगह जहाँ भैंस घूमते थे। वास्तव में शुरुआत में यही था। मैदानों में भारतीयों ने जंगली भैसों का पीछा किया जब तक बाहरी लोग अपने झुण्ड और फसलों के साथ उस में प्रवेश न किये। बाद में द्वितीय विश्व युद्ध में पर्ल हार्बर के बाद वह भूमि रसायनिक उत्पादन के रूप में उपयोग किया गया, और फिर बाद में शीत युद्ध(cold war), हथियार ग़ैरफ़ौजीकरण के लिए भी। लेकिन एक दिन गंजे चिल का बसेरा वहां पाया गया, और जल्द ही वह रॉकी माउंटेन आर्सेनल नेशनल वाइल्डलाइफ रिफ्यूज का जन्म हुआ—डेनवर, कोलोराडो के महानगर के किनारों पर प्रेयरी, आर्द्रभूमि, और वुडलैंड निवास स्थान जो पंद्रह-हज़ार एकड़ में फैला हुआ है । यह अब देश का सबसे बड़े शहरी शरणस्थलों या सैंक्चुअरी में से एक है--जानवरों के तीन सौ से अधिक प्रजातियों के लिए एक सुरक्षित, संरक्षित घर, काले पैर वाले फेरेट्स से लेकर बिल खोदने वाला उल्लू से लेकर गंजा चील, और आपने यह अनुमान लगा लिया: घूमने वाला भैंस।
भजनकार हमें कहता है की “परमेश्वर हमारा शरणस्थान है” (62:8)। पार्थविक शरणस्थान के जगह से कहीं अधिक महान परमेश्वर हमारा सच्चा पवित्रस्थान, एक सुरक्षित, संरक्षित उपस्थिति है जिसमें हम “जीवित रहते, और चलते-फिरते,और स्थिर रहते हैं;” (प्रेरितों 17:28)। और वह हमारा शरणस्थान है जिस पर हम “हर समय” भरोसा रख सकते हैं (भजन 62:8)। और वह हमारा पवित्रस्थान जहां हम हिम्मत के साथ अपनी सारी प्रार्थनाएं ला सकते, मन की बातों को उंडेल सकते हैं।
परमेश्वर हमारा शरणस्थान है यह वही है जो वह आदि में थे, जो अब है, और जो हमेशा रहेंगे।
बिजली स्रोत से जुड़ा हुआ
यह जानते हुए की एक तेज तूफान (हमारे पड़ोस में असुविधाजनक रूप से यह एक सामान्य घटना है) के बाद हमारे घर में बिजली काम नहीं कर रहा था, मैंने कमरे में प्रवेश किया और अन्य दिन के समान लाइट स्विच ऑन कर दिया। बेशक, कुछ नहीं हुआ। मैं अभी भी अंधेरे से घिरा हुआ था।
यह जानते हुए की बिजली स्रोत से कनेक्शन टुटा हुआ है प्रकाश की अपेक्षा करना—यह अनुभव— स्पष्ट रूप से मुझे एक आत्मिक सत्य का याद दिलाया। कई बार भले ही हम आत्मा पर निर्भर न रहते हो लेकिन फिर भी अक्सर हम प्रकाश की अपेक्षा करते है ।
1 थिस्सलुनीकियों में पौलुस ने उस तरीके के बारे में लिखा जिसमें परमेश्वर ने सुसमाचार संदेश को आने दिया। “...न केवल शब्द मात्र ही में वरन सामर्थ्य और पवित्र आत्मा में” (1:5) और जब हम परमेश्वर के क्षमा को स्वीकार करते हैं तब विश्वासियों को भी हमारे जीवन में उनके आत्मा के सामर्थ तक पहुंच प्राप्त होता है। वह सामर्थ्य प्रेम, आनन्द, शान्ति, और धीरज जैसे गुणों को हममें विकसित करता है और कलीसिया की सेवा करने के लिए शिक्षण सहायता और मार्गदर्शन सहित हमें उपहारों से सशक्त करता है (1 कुरिन्थियों 12:28)।
पौलुस ने अपने पाठकों को चिताया की “आत्मा को बुझाना” सम्भव है (1 थिस्सलुनीकियों 5:19)। हम परमेश्वर के उपस्थिति को अनदेखा करके या उसके विश्वास को अस्वीकार करके आत्मा के सामर्थ्य को सीमित कर सकते हैं (युहन्ना 16:8)। लेकिन हमें उनसे अलग रहना आवश्यक नहीं है। परमेश्वर का सामर्थ्य हमेशा उनके बच्चों के लिए उपलब्ध होता है।