मेरे पुराने मित्र और मेरी मुलाकात हुए कुछ वर्ष बीत गए थे l उस समय के दौरान, उसने कैंसर निदान प्राप्त कर उपचार आरम्भ किया l उनके राज्य की एक अनपेक्षित यात्रा ने मुझे उनसे पुनः मिलने का अवसर दिया l मैं रेस्टोरेंट में गया, और हम दोनों रोने लगे l बहुत समय बीत गया था जब हम एक ही कमरे में रहा करते थे, और अब मौत कोने में छिपी हुयी हमें जीवन की संक्षिप्तता याद दिला रही थी l रोमांच और हंसी खेल और खिलखिलाहट और हानि—और अत्यधिक प्यार से भरी लम्बी मित्रता से हमारी आँखों में आँसू छलक पड़े l
यीशु भी रोया l यूहन्ना का सुसमाचार उस पल को अंकित करता है, जब यहूदियों ने कहा, “हे प्रभु, चलकर देख ले” (11:34), और यीशु अपने अच्छे मित्र लाजर की कब्र के सामने खड़ा था l फिर हम उन दो शब्दों को पढ़ते हैं जो हम पर उन गहराइयों को प्रकट करते हैं जिनसे मसीह हमारी मानवता को साझा करता है : “यीशु रोया” (पद. 35) l क्या उस क्षण में बहुत कुछ चल रहा था, जो यूहन्ना ने लिखा और नहीं लिखा? हाँ l यद्यपि मेरा यह भी मानना है कि यीशु के प्रति यहूदियों की प्रतिक्रिया बता रहा है : “देखो, वह उससे कितना प्रेम रखता था!” (पद. 36) l वह रेखा हमारे लिए उस मित्र को रोकने और उसकी उपासना करने के लिए पर्याप्त आधार से अधिक है जो हमारी हर कमजोरी को जानता है l यीशु मांस और लहू और आँसू था l यीशु उद्धारकर्ता है जो प्यार करता है और समझता है l
आपने पिछली बार कब यीशु की मानवता पर विचार किया था? यह जानना कि यीशु आपके आंसुओं को समझता और साझा करता है किस प्रकार आज आपको उत्साहित करता है?
यीशु, बचाने वाले और मेरे आंसूं को साझा करनेवाले होने के लिए धन्यवाद l