सब कुछ खोना
इससे खराब समय नहीं हो सकता था l पुल, स्मारक और बड़ी इमारतें बनाकर छोटी सफलता प्राप्त करने के बाद, सीज़र नया प्रयास करना चाहता था l इसलिए उसने अपना पहला व्यवसाय बेच कर पैसा बैंक में जमा कर, जल्द ही इसे फिर से निवेश करने की योजना बना रहा था l तब ही, सरकार ने निजी बैंक खातों में रखी संपत्तियों को जब्त कर लिए l एक पल में, सीजर की जीवन भर की बचत चली गयी l
अन्याय को शिकायत का कारण न मानकर, सीजर ने परमेश्वर के मार्गदर्शन में पुनः आरम्भ किया l
एक भयानक पल में, अय्यूब ने अपनी संपत्ति से कहीं अधिक खो दिया l उसने अपने अधिकाँश सेवकों और अपने सभी बच्चों को खो दिया (अय्यूब 1:13-22) l फिर उसका स्वास्थ्य बिगड़ गया (2:7-8) l अय्यूब की प्रतिक्रिया हमारे लिए एक असामयिक उदाहरण बनी हुयी है l उसने प्रार्थना की, “मैं अपनी माँ के पेट से नंगा निकला और वहीं नंगा लौट जाऊँगा; यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (1:21) l अध्याय समाप्त होता है, “इन सब बातों में भी अय्यूब ने न तो पाप किया, और न परमेश्वर पर मुर्खता से दोष लगाया” (पद.22) l
अय्यूब की तरह, सीज़र ने परमेश्वर पर भरोसा करके कुछ ही वर्षों में अधिक सफल व्यवसाय खड़ा कर लिया l उसकी कहानी अय्यूब के परिणाम के समान है (देखें अय्यूब 42) l लेकिन भले ही सीज़र कभी भी आर्थिक रूप से ठीक नहीं हुआ, वह जानता था कि उसका असली खज़ाना वैसे भी इस पृथ्वी पर नहीं था (मत्ती 6:19-20) l वह अभी भी ईश्वर पर भरोसा करता रहेगा l
निराशा के साथ पेश आना
“जीवन भर की यात्रा” के लिए पूरे साल पैसे जुटाने के बाद, अमेरिका के ओक्लाहोमा हाई स्कूल के वरिष्ठ नागरिक हवाई अड्डे पहुँचकर यह जाने कि उनमें से कई ने एक फर्जी एयरलाइन से टिकट खरीदे थे l एक स्कूल प्रशासक ने कहा, “यह पीड़ादायक है l” फिर भी, भले ही उन्हें अपनी योजना बदलनी पड़ी विद्यार्थियों ने “इसका अधिकतम लाभ उठाने” का निर्णय लिया l उन्होंने पास के आकर्षणों में दो दिनों का आनंद लिया, जिन्होंने टिकट दान किये l
विफल या बदली हुयी योजनाओं से निपटना निराशाजनक या दिल तोड़ने वाला भी हो सकता है l खासकर जब हम योजना बनाने में समय, पैसा या भावनाओं का निवेश किए हों l राजा दाऊद की “इच्छा तो थी कि (वह) यहोवा के वाचा के संदूक के लिए . . एक भवन [बनाए]” ( 1 इतिहास 28:2), परन्तु परमेश्वर ने कहा : “तू मेरे नाम का भवन बनाने न पाएगा . . . तेरा पुत्र सुलैमान ही मेरे भवन . . . को बनाएगा” (पद. 3, 6) l दाऊद निराश नहीं हुआ l इस्राएल पर राजा होने के लिए उसने परमेश्वर की स्तुति की, और सुलैमान को मंदिर की योजनाओं को पूरा करने के लिए दिया (पद.11-13) l उसने उसे उत्साहित किए : “हिवाव बाँध और दृढ़ होकर इस काम में लग जा . . . क्योंकि यहोवा परमेश्वर . . . तेरे संग है” (पद. 20) l
योजनाएँ विफल होने का, चाहे कोई भी कारण हो, हम अपनी निराशा परमेश्वर के सामने लाएँ क्योंकि उसको [हमारा] ध्यान है” (1 पतरस 5:7) l वह अनुग्रह के साथ हमारी निराशा को दूर करने में हमारी सहायता करेगा l
विनम्र लेकिन आशान्वित
चर्च आराधना के अंत में पास्टर के निमंत्रण पर, लेट्रीस आगे गयी l जब उसे मंडली का अभिवादन करने के लिए आमंत्रित किया गया, तो उसके द्वारा बोले गए वज़नी और अनोखे शब्दों के लिए कोई भी तैयार नहीं था l वह केंटकी, अमेरिका से स्थानांतरित हो गयी थी, जहाँ दिसम्बर 2021 में विनाशकारी बवंडर ने उसके परिवार के सात सदस्यों की जान ले ली थी l “मैं अभी भी मुस्कुरा सकती हूँ क्योंकि परमेश्वर मेरे साथ है,” उसने कहा l यद्यपि आजमाइश से घायल हुयी, उसकी गवाही उन लोगों के लिए एक शक्तिशाली प्रोत्साहन थी जो स्वयं की चुनौतियों का सामना कर रहे थे l
भजन 22 में दाऊद के शब्द (जो यीशु की पीड़ा की ओर संकेत करते हैं) एक प्रताड़ित व्यक्ति के हैं जो परमेश्वर द्वारा त्यागा हुआ महसूस करता है (पद.1), दूसरों द्वारा तिरस्कृत और उपहास किया जाता है (पद.6-8), और आक्रमणकारियों से घिरा हुआ है (पद. 12-13) l उसने कमज़ोर और थका हुआ महसूस किया (पद.14-18)—लेकिन वह निराश नहीं था l “परन्तु हे यहोवा, तू दूर न रह! हे मेरे सहायक, मेरी सहायता के लिए फुर्ती कर!” (पद.19) l आपकी वर्तमान चुनौती—हालाँकि संभवतः दाऊद या लेट्रीस की तरह एक ही किस्म की नहीं है—उतनी ही असली है l और पद 24 के शब्द उतने ही अर्थपूर्ण हैं : “उसने दुखी को तुच्छ नहीं जाना; . . . पर जब उसने उसकी दोहाई दी, तब उसकी सुन ली l” और जब हम परमेश्वर की सहायता का अनुभव करते हैं, तो आइए हम उसकी भलाई की घोषणा करें ताकि दूसरे इसके बारे में सुन सकें (पद.22) l
कितना अच्छा मित्र
मेरे पुराने मित्र और मेरी मुलाकात हुए कुछ वर्ष बीत गए थे l उस समय के दौरान, उसने कैंसर निदान प्राप्त कर उपचार आरम्भ किया l उनके राज्य की एक अनपेक्षित यात्रा ने मुझे उनसे पुनः मिलने का अवसर दिया l मैं रेस्टोरेंट में गया, और हम दोनों रोने लगे l बहुत समय बीत गया था जब हम एक ही कमरे में रहा करते थे, और अब मौत कोने में छिपी हुयी हमें जीवन की संक्षिप्तता याद दिला रही थी l रोमांच और हंसी खेल और खिलखिलाहट और हानि—और अत्यधिक प्यार से भरी लम्बी मित्रता से हमारी आँखों में आँसू छलक पड़े l
यीशु भी रोया l यूहन्ना का सुसमाचार उस पल को अंकित करता है, जब यहूदियों ने कहा, “हे प्रभु, चलकर देख ले” (11:34), और यीशु अपने अच्छे मित्र लाजर की कब्र के सामने खड़ा था l फिर हम उन दो शब्दों को पढ़ते हैं जो हम पर उन गहराइयों को प्रकट करते हैं जिनसे मसीह हमारी मानवता को साझा करता है : “यीशु रोया” (पद. 35) l क्या उस क्षण में बहुत कुछ चल रहा था, जो यूहन्ना ने लिखा और नहीं लिखा? हाँ l यद्यपि मेरा यह भी मानना है कि यीशु के प्रति यहूदियों की प्रतिक्रिया बता रहा है : “देखो, वह उससे कितना प्रेम रखता था!” (पद. 36) l वह रेखा हमारे लिए उस मित्र को रोकने और उसकी उपासना करने के लिए पर्याप्त आधार से अधिक है जो हमारी हर कमजोरी को जानता है l यीशु मांस और लहू और आँसू था l यीशु उद्धारकर्ता है जो प्यार करता है और समझता है l
खुले दिल से उदारता
यह कहते हुए कभी कोई नहीं मरा, “मैं आत्म-केन्द्रित, स्वयंसेवी, एवं आत्म-रक्षक जीवन जीकर बहुत खुश हूँ,” लेखक पार्कर पामर ने एक आरंभिक संबोधन में कहते हुए, स्नातकों से “खुले हृदय से उदारता के साथ [खुद को] संसार की सेवा में पेश करने” का आग्रह किया l
लेकिन, पार्कर ने जारी रखा, इस तरह जीने का अर्थ सीखना भी होगा कि “आप कितना कम जानते हैं और असफल होना कितना सरल है l” खुद को संसार की सेवा में पेश करने के लिए “शुरू करनेवाले मस्तिष्क” विकसित करने की ज़रूरत हैं जो “सीधे अपने अनजाने में चले, और बार-बार असफल होने का जोखिम उठाए—उसके बाद सीखने के लिए बार-बार उठ खड़ा हो l”
जब हमारा जीवन अनुग्रह की नींव पर निर्मित होगा तब ही “खुले दिल की उदारता” के ऐसे जीवन को चुनने का साहस पा सकते हैं l जैसा कि पौलुस ने अपने शिष्य तीमुथियुस को समझाया, हम आत्मविश्वास से “प्रज्वलित कर” सकते हैं (2 तीमुथियुस 1:6) और परमेश्वर के उपहार पर जीवित रह सकते हैं जब हम याद करते हैं कि यह परमेश्वर का अनुग्रह है जो हमें बचाता है और हमें एक उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए बुलाता है (पद. 9) l यह उसकी शक्ति है जो हमें आत्मा की “सामर्थ्य और प्रेम और संयम” (पद.7) के बदले कायर जीवन जीने के प्रलोभन का विरोध करने का साहस देती है l और यह उसका अनुग्रह है जो हमें तब उठाता है जब हम गिरते हैं, ताकि अपने जीवन को उसके प्रेम में स्थापित करने की आजीवन यात्रा जारी रख सकें (पद.13-14) l